वाटर प्यूरीफायर जो बनाए पानी को शुद्ध: Water Purification
Water Purification

Water Purification: आजकल बाजार में पानी को शुद्ध बनाने के लिए कई ब्रांड व प्रकार के ‘वाटर प्यूरीफायर’मौजूद हैं, जिसमें कुछ ऐसे हैं जो बिजली द्वारा चालित हैं, तथा कुछ नहीं । अपने बजट व घर में आने वाले पानी की क्वालिटी को देखते हुए वाटर प्यूरीफायर खरीदें ताकि सेहत सुरक्षित रहे।

Also read: विचारों को शुद्ध बनाओ

वह समय लद गए जब पानी को साफ करने के लिए लोग पानी की टोंटी अथवा मटके पर कपड़ा बांधकर पानी भरते थे अथवा पानी में फिटकरी घुमाते थे ताकि पानी में मौजूद अशुद्धि नीचे बैठ जाए। धीरे-धीरे समय बदला और जैसे-जैसे तकनीकि विकास होता जा रहा है उसी तरह पानी भी अशुद्ध होता जा रहा है। पानी की अशुद्धता का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है और इसमें मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया के कारण पानी से होने वाली बिमारियां जैसे-हैजा, टायफाइड, डायरिया, एमीबिक डिसेंट्री, हेपेटाइटिस आदि से शरीर ग्रसित हो जाता है। इन सबसे बचाव के लिए जरूरी है कि शुद्ध पानी पिया जाए।

शुद्ध पानी यानी जो पानी गंध रहित व अच्छे स्वाद वाला हो। कहा जाता है कि एक लीटर पानी में 300 मिलीग्राम से ज्यादा खरापन व 500 मिलीग्राम घुलनशील अशुद्धि से अधिक नहीं होनी चाहिए। पानी में मौजूद आयरन, क्लोराइड्ïस फ्लोराइड्स आदि का एक सीमा में रहना तो सही है पर इनकी अधिकता से शरीर रोग ग्रसित हो जाता है। अत: पानी जो पिया जाए वह शुद्ध व सुरक्षित हो इसके लिए पानी की क्वालिटी, प्रदूषण के प्रकार व स्तर को जानना साफ करने का सही तरीका चुनना बहुत जरूरी है।

एक समय था जब कैंडल व टेप अटैचमेंट फिल्टर का बोलबाला था। सुदूर उत्तर पूर्ण में तो कैंडल फिल्टर का प्रयोग बहुत किया जाता था। टेप अटैचमेंट फिल्टर घर से बाहर बहुत काम आते थे। जब भी पानी भरना हो टेप में लगाया और पानी भर लिया। कैंडल में बहुत छोटे-छोटे छेद होते हैं, जिनसे साफ पानी ही नीचे दूसरे खाली डिब्बे में जाता है। पर इनको साफ करने से कैंडल के महीन छेद बड़े होने लगते हंै तथा पानी में गंदगी रह जाती है। यह दोनों प्रकार के फिल्टर सिर्फ धूल-मिट्ïटी आदि को ही रोक पाते हैं। बैक्टीरिया व वायरस पानी में मौजूद रहते हैं। अत: यह आज के समय में पानी को शुद्ध करने के लिए प्रभावशाली नहीं रहे हैं। वैसे यह बाजार में दो से तीन हजार रुपये तक में मिल जाते हंै।

शुद्ध जल की प्राप्ति के लिए आज के समय में सबसे प्रचलित व सुरक्षित तरीका है ‘इलेक्ट्रॉनिक वाटर प्यूरीफायर। यह प्यूरीफायर अल्ट्रावॉयलेट किरणों (यू.वी.) के सिद्धांत पर बनाए गए हैं और भारत में आज से लगभग 27 साल पहले एक्वागार्ड के नाम से इलेक्ट्रॉनिक वाटर प्यूरीफिकेशन सिस्टम की शुरुआत हुई थी। भारत में ही नहीं वरन अंतर्राष्टï्रीय स्तर पर भी इसकी मांग व अधिकांश लोगों द्वारा इसका प्रयोग किया जा रहा है। समय के साथ-साथ इसकी तकनीक भी बहुत आधुनिक होती जा रही है। अब इसमें यू.वी. के साथ-साथ ई-बॉइल टेक्नोलॉजी भी आ गई है। इससे पानी की हर बूंद उतनी ही शुद्ध होती है। जितना बीस मिनट उबालने पर पानी शुद्ध होता है। यह बिमारियों के रोगाणु व वायरस को प्रभावशाली ढंग से नष्टï करता है। मुख्यत: यह पानी को तीन स्टेज में साफ करता है। पहला- फिल्टर कैंडल, दूसरा- कार्बन कैंडल और तीसरा- अल्ट्रावॉयलेट किरणें।
अशुद्ध पानी में यू.वी. किरणों के पड़ने से उपस्थित विषाणुओं की जनन शक्ति समाप्त हो जाती है और विषाणु स्थायी रूप से अपंग हो जाते हैं, जिससे वे किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं फैला सकते।
अल्ट्रावॉयलेट किरणें सूर्य की किरणों की तरह ही प्राकृतिक व अशुद्धियां मसलन धूल, कीटाणु व आर्गेनिक अशुद्धिओं जैसे- क्लोरीन व दुर्गंध को समाप्त किया जा सकता है। पर इनमें एक कमी है आजकल बाजार में कई ब्रांडों के इलेक्ट्रॉनिक वाटर प्यूरीफायर मौजूद हैं जैसे-यूरेका फोर्ब्स केनस्टार आदि। मोटे रूप से इनकी कीमत पांच हजार से लेकर 10,000 तक है।

1. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन जैसे किसी प्राधिकरण द्वारा प्रमाणित हो।
2. पानी के शुद्धिकरण के साथ खारेपन को दूर करने की क्षमता हो।
3. क्वालिटी का स्टैंप हो व आई.एस.ओ. द्वारा प्रमाणित हो।
4. जरूरत पड़ने पर अच्छी सर्विस मिलती हो।
5. बाजार में उस ब्रांड की सम्मान जनक स्थिति हो।
6. शॉप पर टी.डी.एच चैक करने का साधन उपलब्ध हो। साथ ही घर पर भी पानी का परीक्षण और प्रदर्शन करने वाला योग्य प्रशिक्षक हो।

Water Purification
Reverse osmosis purifier providing complete protection

पूर्ण रूप से शुद्ध जल का मतलब है कि वह धूल-मिट्ïटी, गंदगी व बैक्टीरिया के अलावा कीटनाशक से भी मुक्त हो। इस दिशा में सबसे प्रभावी तकनीक आजकल ‘रिवर्स ऑसमोसिसÓ (आर.ओ) मेम्ब्रेन तकनीक है जो बैक्टीरिया के साथ-साथ कीटनाशकों से भी जल को मुक्त करता है। आर. ओ. सिस्टम पानी के वास्तविक स्वाद को बनाए रखने के साथ इसको पूरी तरह शुद्ध व सुरक्षित बनाए रखता है। इस तकनीक को ऐसे इलाके में उपयोग में लाना जरूरी होता है जहां पानी में टीडीएस (टोटल डिसॉल्वड सॉल्ट्ïस) की मात्रा ज्यादा होती है, मतलब पानी खारा होता है। आर. ओ. टीडीएस का स्तर कम करके स्वाद में सुधार लाता है।

पानी को शरीर में कई जटिल क्रियाएं निभानी पड़ती हैं इसलिए पानी का संतुलन बनाए रखना बड़ा जरूरी हो जाता है। पानी की अधिकता या कमी दोनों ही खतरनाक हो सकते हैं। केवल मात्रा ही नहीं शरीर में पानी की गुणवत्ता पर भी पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। अशुद्ध जल का सेवन करने से शरीर की सभी क्रियाओं पर बुरा असर पड़ता है और कई जल जनित रोग भी हो जाते हैं।
प्रदूषित जल में अनेक ऐसे जीव रहते हैं जो कृमि संक्रमण फैलाते हैं। थ्रेडवर्म, टेपवर्म व राउंडवर्म आदि नामों से पहचाने जाने वाले यह जीव शरीर में प्रवेश करके, पाचन तंत्र को बिगाड़ देते हैं।
प्रदूषित पानी के इस्तेमाल से कई त्वचा व नेत्र रोग हो सकते हैं। त्वचा रोगों में दाद, खुजली, फोड़े व त्वचा का संक्रमण हो सकता है तथा नेत्र रोगों में, आंखों में सूजन, जलन, लाली आना तथा रोहे आदि की परेशानी हो सकती है।
हैजा, अतिसार, पेचिस, टायफाइड व गेस्ट्रोएंट्राइटिस नामक रोग भी इसी प्रदूषित जल की ही देन है। जल में उपस्थित प्रोटोजोआ की वजह से थम्ब्राोसिस व अमीबिक यकृत एप्सिस आदि रोग हो सकते हैं। पानी में कई कारणों से रसायनिक पदार्थ पाए जाते हैं। अगर वे जरूरत से ज्यादा हो जाएं तो नई अनोखी बिमारियों की वजह बन जाते हैं और कभी-कभी तो महामारी का रूप भी धर लेते हैं, जैसे- ब्लू बेबी, मिनिमाना व आउच-आउच रोग आदि।
जब गंदा पानी किसी एक जगह एकत्र हो जाए तो वहां मच्छर पनपने लगते हैं। यही गंदे मच्छर डेंगू, मलेरिया, फाइलेरिया आदि संक्रामक रोग फैला देते हैं।
प्रदूषित व अस्वच्छ जल अच्छे-खासे शरीर को बिमारियों का अड्डा बना देता है। यह एक ऐसा धीमा जहर है जो धीरे-धीरे शरीर को खोखला करता रहता है। यदि समय रहते इस ओर ध्यान न दिया जाए तो काफी खतरनाक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं इसलिए शुद्ध जल का सेवन करें व उसे स्वच्छ बनाए रखने में पूरा योगदान दें।