Living Root Bridge Meghalaya
Living Root Bridge Meghalaya

Living Root Bridge Meghalaya: क्या आपने कभी ऐसा पुल देखा है जिसे पेड़ों की जड़ों ने बनाया हो? भारत के मेघालय में स्थित उमशियांग डबल-डेकर लिविंग रूट ब्रिज ऐसा ही एक पुल है। घने जंगल के बीच जहाँ सूरज की रोशनी पेड़ के पत्तों से छनकर आती है वहीं पर एक ख़ूबसूरत और प्राकृतिक पुल मौजूद है। कुछ लोग तो इसे देखकर यह भी कहते हैं कि यह सिर्फ़ एक पुल नहीं बल्कि प्रकृति और इंसान की समझदारी का एक ख़ूबसूरत नमूना है, जिसे देखने के लिए देश दुनिया भर से सैलानी इस जगह पर पहुंचते हैं। इस लेख में इस पुल के साथ साथ इसकी कुछ खास बातों के बारे में भी आपको जानकारी मिलेगी। 

हम सबने लोहे, स्टील और लकड़ी के पुल तो बहुतेरे देखे हैं लेकिन यह पुल किसी मशीन से नहीं बल्कि अंजीर के पेड़ों की जड़ों से बना है! खासी जनजाति के लोग इन जड़ों को धीरे-धीरे एक-दूसरे में बुनते हैं और सालों बाद यह एक मज़बूत पुल बन जाता है। इस पुल की सबसे खास बात यह है कि यह समय के साथ और भी ज़्यादा मज़बूत होता चला जाता है! इस पुल की दो परतें हैं जिसकी वजह से इसे डबल-डेकर लिविंग रूट ब्रिज कहा जाता है।

Living Root Bridge
Living Root Bridge

एडवेंचर पर्यटन के शौक़ीन लोगों के लिए यह एकदम सही है। इस पुल तक पहुँचने के लिए लगभग 3,500 सीढ़ियाँ नीचे उतरनी पड़ती हैं। यह रास्ता लंबा और थकाने वाला ज़रूर है लेकिन आसपास की हरियाली, झरने और छोटे-छोटे गाँवों को देखकर मन झूम जाता है। इस पुल के रास्ते में आपको स्थानीय लोग मिलेंगे जो बहुत प्यारे होते हैं। आसपास खाने-पीने की दुकानें दिखेंगी और कहीं-कहीं पहाड़ों के बीच से बहती नदियाँ भी।

हम आजकल हर चीज़ में सीमेंट और स्टील का इस्तेमाल करते हैं जिसकी वजह से पर्यावरण को नुकसान होता है। लेकिन इस पुल को बनाने में कोई भी कृत्रिम चीज़ इस्तेमाल नहीं किया गया है। यह पूरी तरह से प्राकृतिक तरीके से विकसित हुआ है। मज़बूती इतनी कि यह सौ साल से भी ज़्यादा समय तक टिका रह सकता है। दुनिया में बहुत कम ऐसे पुल हैं जो बिना किसी बाहरी सामग्री के बनाए गए हों और फिर भी इतने मज़बूत हों।

यह पुल सिर्फ़ घूमने की जगह नहीं बल्कि यहाँ रहने वाली खासी जनजाति की संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है। पीढ़ी दर पीढ़ी ये लोग अपने बच्चों को सिखाते हैं कि कैसे इन पेड़ों की जड़ों को सही दिशा में बढ़ाया जाए ताकि आने वाले वर्षों में वे एक मज़बूत पुल का रूप ले सकें। यह ज्ञान सदियों से चला आ रहा है और आज भी यहाँ के लोग इसे सहेजकर रख रहे हैं यह एक बहुत बड़ी बात है। 

डबल-डेकर लिविंग रूट ब्रिज तो खूबसूरत है ही। इसके आसपास का इलाका भी किसी जन्नत से कम नहीं है। घने जंगल, चमचमाते झरने, ठंडी हवा और तरह-तरह के पक्षियों की चहचहाहट मिलकर इसे ख़ास बना देते हैं। इस पुल के पास में एक जगह ऐसी है जहाँ का पानी इतना साफ़ और नीला होता है कि आप उसमें अपनी परछाई तक देख सकते हैं। इसलिए, आपको इस जगह पर एक बार जरूर जाना चाहिए। 

संजय शेफर्ड एक लेखक और घुमक्कड़ हैं, जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में हुआ। पढ़ाई-लिखाई दिल्ली और मुंबई में हुई। 2016 से परस्पर घूम और लिख रहे हैं। वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन एवं टोयटा, महेन्द्रा एडवेंचर और पर्यटन मंत्रालय...