वाराणसी आसपास की रहस्यमयी और अद्भुत दुनिया
यात्रा जो वाराणसी से शुरू हुई सबसे पहले मिर्जापुर पहुंची जहां पर सोनार का किला स्थित है, फिर हमने चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य में प्रवेश किया जहां पर राजदारी और देवदारी झरना है और अंत में औरवाटाँड पहुंचे।
Varanasi Tour: वाराणसी के बारे में भला कौन नहीं जानता यह एक पौराणिक नगर होते हुए भी इतना आधुनिक है कि इसे संघाई कहा जाता है, लेकिन इसके आसपास के क्षेत्र भी कम विकसित नहीं हैं। जितनी ख़ूबसूरती काशी में है, उससे भी कहीं ज़्यादा उसके आसपास के दूरदराज के क्षेत्रों में है, लेकिन ये जगहें वाराणसी से इतनी दूर हैं कि एक-दो दिन का अलग से समय निकालना पड़ेगा। आप चाहें तो दो-तीन दिन वाराणसी घूमने के बाद एक गाड़ी बुक करके उन अनजान रास्तों पर निकल जाएं , जिनके बारे में आपने अभी तक सिर्फ़ सुना है। यह यात्रा वाराणसी से शुरू होकर सबसे पहले मिर्जापुर पहुँचेगी, जहां पर सोनार का किला स्थित है। इस रहस्यमयी क़िले को देखने के बाद आप चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य जा सकते हैं, जहां पर राजदारी और देवदारी झरना स्थित है और अंत में औरवाटाँड पहुंचकर यात्रा को खत्म करें। यह सभी की सभी जगहें बहुत ही सुंदर और आपकी यात्रा को यादगार बना देंगी। आइए इन जगहों के बारे में जानते हैं।
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Varanasi Tour: चंद्रकांता सर्किट

वाराणसी से निकलने के बाद वाराणसी छूट जाता है, ऐसा लगता है कि अब हम पूर्वांचल में आ गए हैं। फिर चाहे बोली और भाषा हो या फिर खानपान अथवा मिज़ाज। लोग और लोक दोनों ही बदल जाता है और रास्ते ऐसे जैसे कि हम किसी और ही दुनिया में आ गए हैं। ऐतिहासिक रूप से वाराणसी के आसपास का क्षेत्र जितना समृद्ध है भौगोलिक रूप से उतना ही मनोहारी और चुनौतिपूर्ण। इस जगह को चंद्रकांता संतति की रहस्यमयी दुनिया से जोड़कर देखा जाता है, क्योंकि देवकी नंदन खत्री ने इसी जगह को केंद्र में रखकर चंद्रकांता की तिलिस्मी और जादुई दुनिया रची बसी थी। वर्तमान में उत्तर प्रदेश पर्यटन इसे चंद्रकांता सर्किट के रूप में विकसित करके आसपास के स्थानों को वापस में जोड़ने का काम कर रहा है।
चुनार का किला

वाराणसी से निकलने के बाद लगभग डेढ़ से दो घंटे की यात्रा के बाद आप गंगा नदी के किनारे पर बसे चुनार किले पर पहुंच जायेंगे। देखकर आपको सहज ही अंदाज़ा हो जाएगा कि यह जगह और इसकी बनावट सचमुच अद्भुत है। ऐसा बताया जाता है कि चुनार किले का इतिहास महाभारत काल से भी पुराना है, सम्राट कालयवन, उज्जैन के प्रतापी सम्राट विक्रमादित्य, पृथ्वीराज चौहान से लेकर इस पर सम्राट अकबर और शेरशाह सूरी जैसे शासकों ने शासन किया था।
चुनारगढ़ किले के निर्माण को लेकर बहुत सारे संशय और संदेह है, वास्तव में इसका निर्माण किस शासक ने कराया है इसका कोई प्रमाण नहीं है। कुछ ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि इस पहाड़ी पर महाभारत काल में सम्राट काल्यवन का कारागार था, फिर सम्राट विक्रमादित्य का समय आया। विक्रमादित्य के बड़े भाई जिन्हें हम सब राजा भतृहरि के नाम से जानते हैं वह अपना राजपाठ का त्याग करके सन्यासी हो गये और गुरु गोरखनाथ से ज्ञान लेने के बाद चुनारगढ़ आये और यहाँ तपस्या करने लगे। घना जंगल होने के कारण यहाँ जंगली जानवरों का खतरा बहुत ज्यादा था, सम्राट विक्रमादित्य ने उनकी रक्षा के लिये इस जगह का जीर्णोद्धार करा किले का निर्माण कराया।
इस किले में राजा भर्तृहरि का समाधि स्थल, सोनवा मंडप और कुछ गहरी और रहस्यमयी सुरंगों को देखकर आपको सहज ही अंदाज़ा लग जाएगा कि यह जगह इतनी दूर दराज होते हुए भी काफी महत्वपूर्ण है। फिर आगे आप कर्मनाशा और चंद्रप्रभा नदी की खूबसूरती को निहारने के लिए औरवाटांड़ की तरफ बढ़ेंगे तो बीच रास्ते में ही चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य का दीदार हो जायेगा और फिर इस जगह का रहस्य एक के बाद एक दृश्यों के माध्यम से खुलता जायेगा।
चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य

चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य अपनी ख़ूबसूरती के लिए जाना जाता है। इस जगह पर आने के बाद आप हरे भरे और घने जंगलों से होकर गुज़रते हैं और ऊंची ऊंची पहाड़ियां और खूबसूरत झरने देख सकते हैं। इन पहाड़ियों में मानव सभ्यता का वर्षों पुराना इतिहास दबा पड़ा है। इस जगह पर जगह जगह पत्थर की गुफाएं दिख जाती हैं जिसमें हज़ारों साल पहले बनाई गई रॉक पेंटिंग अभी भी देखी जा सकती है।
इस जगह पर बहाने वाली चंद्रप्रभा नदी की वजह से इसका नाम चंद्रप्रभा वन्यजीव अभयारण्य रखा गया है। यह अभ्यारण्य बहुत सारे जंगली जानवरों और पक्षियों का घर है। इस जगह पर बहुत सारे जानवरों और पक्षियों का दीदार हो सकता है। बर्ड लवर्ज़ के लिए यहाँ एक बर्ड पार्क भी बनाया गया है, जहां पर पक्षियों को विभिन्न प्रजतियां देखी जा सकती हैं। नौगढ़ और विजयगढ़ का किला भी इसी अभ्यारण्य में स्थित है जिसे देखने की इच्छा हर उस सैलानी की रहती है जो चंद्रकांता की रहस्यमयी और तिलस्मी दुनिया से वाकिफ़ है।
राजदारी जलप्रपात

कर्मनाशा की सहायक चंद्रप्रभा नदी पर स्थित राजदारी और देवदारी नामक दो प्राकृतिक जलप्रपात हैं। यह दोनों ही काफ़ी ख़ूबसूरत और मन को मोहने वाले जलप्रपात हैं। इस जगह पर समय व्यतीत करना बहुत ही ज्यादा सुकून देता है। चारो तरफ़ शांत प्राकृतिक वातावरण और गिरते हुए जलप्रपात की ध्वनि मन को जितना सकून देती है उतना ही रोमांचित भी करती है। इस जगह को सैलानी अच्छी तरह से देख सकें इसके लिए इस जगह पर कई व्यू पॉंट्स भी बनाये गए हैं। इस जगह पर एक सुंदर सा पार्क और बच्चों के लिए कुछ झूले भी लगे हुए हैं।
औरवाटांड़ जलप्रपात
नौगढ़ कस्बे से कुछ ही दूरी पर औरवाटांड़ जलप्रपात आता है जोकि कर्मनाशा नदी पर स्थित है। यह जलप्रपात इतना ख़ूबसूरत है कि इसे जिले के विशेष पर्यटन स्थलों में गिना जाता है। इस जगह पर कर्मनाशा नदी का सौंदर्य देखते ही बनता है। जलप्रपात के पास खड़े होकर पहाड़ियों को देखना अद्भुत रोमांच पैदा करता है। इस पूरी ट्रिप के दौरान आपको खेत खलिहान और गांव घर के साथ साथ जो जैव विविधता देखने को मिलती है वह आपकी यात्रा के अनुभवों में हमेशा हमेशा के लिए शामिल हो जायेगी।
इस जगह पर कैसे पहुंचे?

इस जगह पर आने की सोच रहे हैं तो निकटतम हवाई अड्डा वाराणसी लगभग 95 किलोमीटर दूर है l ट्रेन द्वारा आने पर निकटतम रेलवे स्टेशन मुगलसराय पड़ेगा जो लगभग 50 किलोमीटर दूर है l सड़क के द्वारा मुगलसराय से चकिया के लिए आवागमन के तमाम साधन मौजूद हैं। यह एक दिन की ट्रिप होती है, अगर आप कहीं बाहर से आ रहे हैं तो ठहरने के लिहाज़ से वाराणसी आपके लिए उपयुक्त रहेगा। इस जगह पर आपके मुताबिक और आपके बजट में आपको सुविधा मिल जाएगी और आप वाराणसी में रहते हुए कई अन्य जगहों को भी आसानी से एक्सप्लोर कर सकते हैं।
