Women Life Journey: जीवन में जो भी हम सच्चे मन से चाहते हैं वो हमें मिल ही जाता है। बस शर्त यह होती है कि उसे पाने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी होती है। इस अंक में हम ऐसी ही तीन महिलाओं की कहानियां आपके समक्ष लेकर आए हैं जो साधारण परिवार से होते हुए भी असाधारण काम कर रही हैं।
भारत की पहली रॉकेट वुमेन

जुलाई में जब चंद्रयान 3 इसरो की ओर से अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक भेजा गया उस समय हर भारतीय के लिए यह एक गर्व का क्षण था लेकिन इस लॉन्च को सफल बनाने में डॉक्टर रितु करिधल श्रीवास्तव के योगदान को कोई नहीं भूल सकता। उन्होंने इस लॉन्च टीम में प्रमुख की भूमिका निभाई थी। आज दुनिया उन्हें रॉकेट वुमन ऑफ इंडिया के नाम से जानती है। वह इसरो में सीनियर साइंटिस्ट की भूमिका निभा रही हैं। हालांकि, इसरो तक पहुंचना उनके लिए इतना आसान नहीं था, वो भी उस लड़की के लिए जो कि बंगलुरु से बहुत दूर लखनऊ में बैठकर इसरो जाने के सपने बुन रही हो। विज्ञान की छात्रा रितु को शोध में बहुत रुचि थी। अखबारों में इसरो से संबंधित चीजों को वो बहुत ध्यान से देखा करती थीं। यह बात सच है कि जब आपको लगन होती है तो परिस्थितियां आपके अनुसार बनने लगती हैं। जब वो स्नातकोत्तर कर रही थीं तो उन्होंने इसरो में नौकरी का विज्ञापन देखा और उसमें आवेदन कर दिया। हालांकि उस वक्त उन्हें वह नौकरी नहीं मिल पाई लेकिन स्नातकोत्तर पूरा करने के बाद उन्हें वहां से साक्षात्कार के लिए बुलाया गया और इस तरह उनके सपनों को मंजिल मिल गई। यह बात 1997 की है।
रितु ने लखनऊ विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान (फिजिक्स) में बीएएसी करने के बाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से एरोस्पेस इंजीनियरिंग से एमई किया। बहरहाल, सुॢखयों में आने से पहले 1997 से लेकर 2023 तक वह बहुत से मिशन का हिस्सा रहीं। वरिष्ठ वैज्ञानिक बनने का सफर इतना आसान नहीं होता। किसी में बड़े स्तर पर किसी में छोटे स्तर पर लेकिन बस हर मिशन से वो सीखती चली गईं। 2013 में मंगलयान मिशन की डिप्टी ऑप्ररेशन डायरेक्टर और चंद्रयान 2 की मिशन डायरेक्टर रितु के लिए कुछ बड़े सपने उनका इंतजार कर रहे थे। साल 2023 में चंद्रयान मिशन ने साबित कर दिया कि रितु प्रतिभा का एक सागर हैं।
विभिन्न प्रयोग और शोध कार्यों के उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, इसमें इसरो यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड, इसरो टीम अवॉर्ड, एएसआई अवॉर्ड इत्यादि शामिल हैं। एक मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाली रितु आज वो नाम है जो चमक रहा है लेकिन जिंदगी में इनकी भी परेशानियां कम नहीं हैं। वो कॉलेज में ही थी, जब उनके माता-पिता गुजर गए थे। बड़ी संतान होने के कारण छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी उन पर ही थी। हालांकि, आज वह अपने करियर और व्यक्तिगत जीवन में सफल हैं। उनके दो प्यारे से बेटे हैं और पति के साथ खुशहाल जिंदगी गुजार रही हैं। सच कहें तो उनके व्यक्तित्व की खास बात उनकी सादगी है।
जीवन सदैव अवसर देता है

अगर आपके मन में कुछ भी अच्छा करने की चाहत होती है न तो जीवन आपको वो करने का मौका जरूर देता है। कुछ ऐसा ही मौका मिला नागपुर की नुपुर पोहरकर को। नुपुर वह महिला हैं जिन्होंने अपनी शिक्षा और अपने अनुभव के आधार पर एक अलग करियर चुना। नुपुर नागपुर की रहने वाली हैं लेकिन उन्होंने उत्तराखंड के कुमाऊ क्षेत्र में चम्पावत जिला के एक छोटे से गांव खेतीखान को अपना कार्यक्षेत्र चुना। यहां रहकर वह महिलाओं के जीवन में बदलाव लाने का प्रयास कर रही हैं। एसबीआई फाउंडेशन यूथ फॉर इंडिया प्रोग्राम के तहत जब वह इस गांव में आईं तो यहां की महिलाओं की आर्थिक स्थिति देखकर वह काफी परेशान हो गई थीं, फिर धैर्य और बुद्धिमत्ता के साथ उन्होंने निर्णय लिया कि वह उन सभी महिलाओं की जिंदगी को एक नई ऊर्जा और दिशा प्रदान करेंगी। इसी निश्चय के साथ उन्होंने अपनी फैलोशिप खत्म की और यहां आकर बस गईं। यहां रहकर उन्हें एक विचार आया कि इन पहाड़ों में बसे चीड़ों के पेड़ों से महिलाएं रोजगार कर सकती हैं। दरअसल, चीड़ के पेड़ों की पाइन नीडल्स जो देखने में नुकीली सुईयों जैसी दिखती हैं। इन सुईयों से काफी सुंदर सामान बनाया जा सकता है। और, फिर इस तरह उनके दिमाग में इसे रोजगार के तौर पर बदलने का ख्याल आया। शुरुआत में इस कार्य में उनके साथ केवल 3 महिलाएं ही जुड़ी थीं लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़कर 50 से भी ज्यादा हो गई है। यह लोग इन पाइन नीडल्स से बहुत खूबसूरत सामान बनाते हैं।
गांव में नुपुर ने ‘पिरुल हैंडीक्राफ्ट’ नाम से अपनी कंपनी शुरू की है जिसका मकसद ग्रामीण महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराना है। यहां महिलाएं रोजगार और रचनात्मकता के अलग ही ताने-बाने बुन रही हैं। यहां सुविधाओं के नाम पर आपको बहुत ज्यादा कुछ नहीं मिलेगा। कुछ महीने यहां का ठंडा मौसम भी एक चुनौती है लेकिन इन सबके बावजूद आप इन महिलाओं का इस काम में जुटे रहने का जज्बा देख सकते हैं। नुपुर पेशे से एक पशु चिकित्सक हैं, लेकिन उनकी दिलचस्पी सामाजिक कार्यों में ज्यादा रही है। हालांकि जब उन्होंने इस काम की शुरुआत की थी तब वे अकेली थीं लेकिन उनके उत्साह को देखते हुए उनके साथ उनकी बहन भी इस कार्य में सहयोग करने लगीं। उनकी बहन पेशे से एक डिजाइनर हैं। नुपुर कहती हैं, ‘समाज के लिए कुछ करने का जज्बा मुझे मेरे पिता से मिला है। मेरे पिता केवल एक डॉक्टर नहीं थे वो समाज सेवा से भी जुड़े थे। उनकी यही भावना मुझे अच्छी लगती थी। मैंने भी इसे अपनाया है। गांव की महिलाएं हर महीने 5 से 10 हजार रुपये आमदनी पा रही हैं। आर्थिक रूप से स्वावलंबी होने के बाद इन महिलाओं का जीवन बदल गया है। इन रुपयों से यह महिलाएं अपने बच्चों का भविष्य बेहतर बनाने में जुटी हैं।
कथक को समर्पित जीवन

अगर आपमें सच में कुछ करने की चाह होती है तो समय परिस्थिति के कुछ मायने नहीं रह जाते। इस बात का एक सटीक उदाहरण अनुपमा झा हैं। वह वियतनाम से भारतीय शास्त्रीय कथक नृत्यांगना हैं, जिन्होंने पिछले कुछ सालों के दौरान अपने बेहतरीन प्रस्तुति से साबित किया है कथक उनके लिए भक्ति है। वह अपने निरंतर प्रयासों से इसमें अपनी साधना के रंग भर रही हैं। फिलहाल कथक को ही समर्पित ‘यज्ञसेनी’ नाम के प्रोडक्शन को लेकर आ रही हैं। जहां हर महिला के संघर्ष की कहानी कथक के माध्यम उजागर होगी। लॉकडाउन तो बहुत लोगों को बहुत कुछ सिखा गया लेकिन अनुपमा को इस लॉकडाउन ने अपनी गुरु पद्मश्री शोवना नारायण के साथ जुड़ने का अवसर दिया। उनके शिक्षण और मार्गदर्शन से वह बहुत कम समय में इस कला में पारंगत होती चली गईं। उन्होंने वर्चुअल क्लासेज की चुनौतियों के बावजूद अपना सर्वश्रेष्ठ देने में कोई कमी नहीं रखी। लगभग तीन सालों से शोवना जी रोजाना सुबह उनकी क्लासेज ले रहीं हैं, फिर चाहे वे यात्रा कर रही हों या किसी भी टाइम जोन में हो। इस स्तर की प्रतिबद्धता और समर्पण उन्हें सबसे अलग और प्रेरणादायी बनाता है। हालांकि हैरानी की बात है कि अनुपमा व्यक्तिगत रूप से अपनी गुरु से कभी नहीं मिली लेकिन उन्होंने वर्चुअल माध्यम से जो सिखाया है उसका शब्दों में बताना एक तरह से संभव ही नहीं है। लॉकडाउन के समय का बेहतरीन सदुपयोग इससे बेहतर नहीं हो सकता था।
उनका प्रोडक्शन महिला सशक्तीकरण पर आधारित है। जो कि महिलाओं की क्षमता और दृढ़ इरादे को सम्मानित करता है, जिन्होंने लिंगवाद, भेदभाव का सामना करते हुए अपने लिए समाज में विशेष स्थान बनाया है। वे कहती हैं कि ‘हर महिला में एक शक्ति है। नृत्य वह माध्यम है जहां आप अपनी बात को दूसरों के सामने सही तरीके से बता पाते हैं। मैं कोशिश करती हूं कि अपनी इस कला के माध्यम से मैं लोगों विशेषकर महिलाओं को जागरुक कर पाऊं। मेरा संदेश है कि महिलाएं सक्षम हैं, सक्षक्त हैं, वे सम्मान और एक समान अवसरों की हकदार हैं। यह नृत्य हर उस व्यक्ति को देखना चाहिए जो महिलाओं की ताकत और समानता और न्याय की आवश्यकता में भरोसा करता है।Ó पांच साल की उम्र से अनुपमा कत्थक सीख रही हैं और नृत्य को ही उन्होंने अपना सब कुछ मान लिया है। ठ्ठ
