Hariyali Teej 2024: सावन का महीना हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है और इस महीने पड़ने वाली हरियाली तीज सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास होती है। नवविवाहित महिलाओं के लिए पहली हरियाली तीज और भी अधिक महत्वपूर्ण होती है। इस दिन वे अपने सुहाग की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए व्रत रखती हैं। नवविवाहित महिलाओं को हरियाली तीज के व्रत के दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन करना चाहिए।
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मेहंदी लगाने का महत्त्व
हरियाली तीज का त्योहार भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखता है, खासकर सुहागिन महिलाओं के लिए। इस दिन महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सज-धजकर, मेहंदी लगाकर और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि और पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। मेहंदी इस त्योहार का एक अहम हिस्सा है और इसका विशेष महत्व नवविवाहिता महिलाओं के लिए होता है।
नवविवाहिता के लिए मेहंदी सिर्फ एक सजावट नहीं होती, बल्कि यह उनके सुहाग और वैवाहिक जीवन की शुरुआत का प्रतीक होती है। मेहंदी के रंगों और डिजाइनों का गहरा संबंध भारतीय संस्कृति और रीति-रिवाजों से है। मेहंदी को ठंडक पहुंचाने वाला और बुरी नजर से बचाने वाला माना जाता है। नवविवाहिता के हाथों में सजती मेहंदी उसके सुहाग की निशानी होती है और यह उसके पति के प्रति प्रेम और समर्पण का प्रतीक भी होती है।
हरे रंग के वस्त्र पहनने का विशेष महत्व
हरियाली तीज के दिन हरे रंग के वस्त्र पहनने का विशेष महत्व है। हरा रंग प्रकृति का प्रतीक है और यह जीवन, उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस दिन नवविवाहित महिलाएं हरे रंग की साड़ी पहनकर प्रकृति के साथ अपने जुड़ाव को दर्शाती हैं। हरा रंग न केवल सुहागिन महिलाओं को सुंदर बनाता है बल्कि यह उनके वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि लाने का भी प्रतीक माना जाता है।
भगवान शिव का रंग भी हरा माना जाता है और माता पार्वती को प्रकृति की देवी भी कहा जाता है। इसलिए हरियाली तीज के दिन हरे रंग के वस्त्र पहनकर महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती को प्रसन्न करती हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। हरे रंग के वस्त्र पहनने से न केवल महिलाओं का मन प्रसन्न होता है बल्कि यह उन्हें शांति और आत्मविश्वास भी प्रदान करता है। इस प्रकार, हरियाली तीज के दिन हरे रंग के वस्त्र पहनने का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह प्रकृति के साथ जुड़ाव, सुख-समृद्धि और आशीर्वाद प्राप्त करने का एक माध्यम है।
सोलह का महत्त्व शृंगार
सोलह शृंगार को माता पार्वती का भी प्रतीक माना जाता है, जो स्त्रीत्व और सुहाग की देवी हैं। माना जाता है कि माता पार्वती सोलह शृंगार करके ही भगवान शिव को प्रसन्न करती थीं। इसलिए महिलाएं भी सोलह शृंगार करके माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने और अपने वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त करने की कामना करती हैं। सोलह शृंगार में आँखों में काजल, गालों पर सिंदूर, माथे पर बिंदी, हाथों में मेहंदी, पैरों में बिछिया, गले में मंगलसूत्र, नाक में नथ, कानों में कुंडल और कई अन्य शृंगार शामिल होते हैं। इन सभी शृंगार का अपना अलग महत्व होता है और यह महिलाओं की सुंदरता को बढ़ाते हैं। हरियाली तीज के दिन नवविवाहिताओं को सोलह शृंगार अवश्य करना चाहिए। इससे न केवल वे माता पार्वती की कृपा प्राप्त करती हैं बल्कि उन्हें अपने पति के साथ सुखी वैवाहिक जीवन भी प्राप्त होता है। सोलह शृंगार करने से महिलाओं में आत्मविश्वास भी बढ़ता है और वे खुद को और अधिक सुंदर महसूस करती हैं।
