आखिर क्यों महादेव ने इंद्रदेव को भस्म करने के लिए खोला अपना तीसरा नेत्र, जानिए यह पौराणिक कथा: Shiv Third Eye Katha
Shiv Third Eye Katha

Shiv Third Eye Katha: शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान समय समय पर अपने भक्तों के लिए अवतार लेते रहते हैं। पौराणिक काल से ही ब्रह्मा विष्णु और महेश ने रूप बदल कर धरती लोक के कल्याण हेतु अनेकों कार्य किए और राक्षसों का वध किया। जिस प्रकार भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत पिलाने के लिए मोहिनी का रूप लिया था, उसी प्रकार भगवान शिव भी भेष बदल कर देवताओं के संयम की परीक्षा लेते रहते थे। ऐसी ही एक परीक्षा शिव जी ने इंद्रलोक के राजा इंद्र की भी ली थी। भगवान शिव द्वारा ली गई परीक्षा में इंद्रदेव सफल नहीं हो पाए थे और उन्हें भगवान शिव से दंड मिलने वाला था। तो चलिए जानते हैं आखिर भगवान शिव ने कैसे इंद्र की परीक्षा ली और भगवान शिव के क्रोध से राजा इंद्रदेव को किसने बचाया।

शिव जी ने खोला अपना तीसरा नेत्र

Shiv Third Eye Katha

पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि शिव पुराण में बहगवान शिव और स्वर्गलोक के राजा इंद्रदेव के की कथा का वर्णन मिलता है। कथा के अनुसार, एक बार स्वर्ग लोक के स्वामी राजा आई दे और बृहस्पति देव भगवान शिव से मिलने के लिए कैलाश पर्वत की ओर जा रहे थे। भगवान शिव को पता था कि इंद्रदेव और बृहस्पति देव उन्हीं से मिलने आ रहे हैं तब उन्होंने दोनों देवताओं की परीक्षा लेनी की सोची। भगवान शिव एक अघोरी साधु का भेष बनाकर इंद्रदेव और बृहस्पति देव के सामने आ गए और उनका रास्ता रोक लिया।

साधु बने शिव जी के मुख पर एक दिव्य तेज चमक रहा था। एक अघोरी साधु द्वारा अपना रास्ता रोकने के कारण इंद्र देव को बहुत गुस्सा आया। इंद्रदेव ने साधु से गुस्से में कहा कि वह स्वर्ग के राजा इंद्र का रास्ता न रोकें, रास्ते के बीच में से हट जाए लेकिन साधु बने शिव जी ने इंद्रदेव की एक भी बात नहीं सुनी। क्रोधित होकर इंद्रदेव, साधु बने शिव जी के साथ युद्ध करने लगे। इंद्र देव ने अपने वज्र से साधु पर वार किया। साधु बने शिव जी ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर इंद्रदेव के वज्र को तोड़ दिया। शिव जी अपने तीसरे नेत्र से निकली प्रचंड ज्योति से इंद्रदेव को भस्म करना चाहते थे।

यह सब देखकर बृहस्पति देव को ज्ञान हो गया कि यह साधु कोई आम साधु नहीं हैं। इतना प्रचंड और विकराल रूप तो भगवान शिव का ही हो सकता है। इसलिए इंद्रदेव को भगवान शिव के क्रोध से बचाने के लिए बृहस्पति देव ने शिव स्तुति का पाठ शुरू कर दिया और भगवान शिव से इंद्रदेव की भूल के लिए क्षमा मांगने लगे। इंद्रदेव भी ने भी भगवान शिव के चरणों में गिरकर उनसे क्षमा मांगी। शिव स्तुति सुनकर भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ और इंद्रदेव को प्राणदान दिया। इसके बाद भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से निकले प्रचंड प्रकाश को समुद्र में छोड़ दिया, इस प्रकाश से एक बालक का जन्म हुआ। जिसे शिव पुत्र जालंधर के नाम से जाना जाता है।

यह भी पढ़ें: शक्ति के बिना शिव अधूरे क्यों माने जाते हैं, क्या है इसका राज, जानें महत्व: Shiv Shakti Katha