Shiva Nandi Katha

देवों के देव महादेव भगवान शिव की महिमा अपरंपार है। सभी देवों में भगवान शिव का स्थान सबसे ऊंचा है। भगवान शिव सृष्टि के संहारक और पालक कहलाते हैं। भगवान शिव अपने भक्तों की सच्ची पुकार सुनकर ही उनकी हर मुराद पूरी करते हैं। महादेव का स्वभाव बड़ा ही भोला है, इसलिए उनका एक नाम भोलेनाथ भी है। धार्मिक शास्त्रों में उल्लेख है कि जो भी भक्त भगवान शिव की पूजा अर्चना करता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। शिव मंदिर में शिवलिंग पर नियमित रूप से जल चढ़ाने से महादेव अति प्रसन्न होते हैं। महादेव के साथ भगवान गणेश, माता पार्वती व नंदी की पूजा का विधान है। आपने देखा होगा कि शिव मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव के अलावा गणेश, माता पार्वती आदि की मूर्ति विराजमान रहती हैं, परंतु नंदी की प्रतिमा गर्भगृह के बाहर रहती है। आज हम आपको बताएंगे कि आखिर नंदी शिव मंदिर में बाहर क्यों विराजमान रहते हैं।

भगवान शिव व नंदी से जुड़ी पौराणिक कथा

Shiva Nandi Katha

पौराणिक कथा के अनुसार, शिलाद नाम के मुनि ने संतान प्राप्ति की कामना के साथ भगवान इंद्रदेव को रिझाने के लिए तपस्या किया। परंतु, इंद्रदेव ने संतान का वरदान देने में असर्मथता जताते हुए भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अनुरोध किया। इसके बाद शिलाद मुनि ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की। जिसके बाद शिवजी प्रकट हुए और उन्होंने शिलाद को स्वयं के रूप में प्रकट होने का वरदान दिया। महादेव के वरदान के बाद शिलाद मुनि को नंदी के रूप में संतान प्राप्त हुई। शिवजी के आशीर्वाद के कारण नंदी अजर अमर हो गए। उन्होंने संपूर्ण गणों, गणेश व वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक कराया। जिसके बाद नंदी नंदीश्वर कहलाए। भगवान शिव ने नंदी को वरदान दिया कि जहां उनका निवास होगा, वहां स्वयं भी निवास करेंगे। मान्यता है कि तब से ही शिव मंदिर में भगवान शिव के सामने नंदी विराजमान रहते हैं।

नंदी के दर्शन और महत्व

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नंदी भगवान शिव की सवारी है। नंदी को भगवान शिव ने अनेक वरदान दिए थे। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव के साथ नंदी की पूजा करने का भी विधान है। भगवान शिव नंदी के माध्यम से ही भक्तों की पुकार सुनते हैं। कहते हैं कि जो भी भक्त नंदी के कान में अपनी इच्छा बोलता है, वह भगवान शिव पूरी करते हैं। नंदी के नेत्र अपने इष्ट के स्मरण करते हुए का प्रतीक हैं। नंदी के नेत्र सीख देते हैं कि अगर भक्ति के साथ मनुष्य में क्रोध, अहम व दुर्गुणों को पराजित करने का सामर्थ्य न हो तो भक्ति का लक्ष्य प्राप्त नहीं होता। भगवान शिव व नंद्री की पूजा अर्चना करने से जीवन के समस्त दुख दूर होते हैं और सुख—समृद्धि आती है।

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