इनफर्टिलिटी का दर्द झेल रहे कपल्स के लिए वरदान है आईवीएफ: IVF for Couples
IVF for Couples

IVF for Couples: आईवीएफ या टेस्ट ट्यूब बेबी, इसमें महिला के अंडे और पुरूष के स्पर्म को आउट ऑफ फीमेल बॉडी बाहर फर्टिलाइज किया जाता है। यानी एम्ब्रियो/भ्रूण विकसित करते हैं। इस भ्रूण कोे विशेष स्टेज पर वापस यूटरस में डाल दिया जाता है। इसके साथ ही यूटरस की लेयर को तैयार किया जाता है ताकि वो रिसेप्टिव हो जाए ताकि आईवीएफ तकनीक से तैयार भ्रूण यूटरस की लाइनिंग से जुड़ जाए और उसकी नॉर्मल ग्रोथ हो।

आधनिक युग में साइंस ने इतनी तरक्की की है कि पुराने जमाने में कई कारणों की वजह से जो महिलाएं मां नहीं बन पाती थीं, आईवीएफ उनके लिए एक बहुत अच्छी वरदान है। अगर महिला किसी वजह से नॉर्मल तरीके से प्रेगनेंट नहीं हो पाती या आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन से (जिसमें पति का स्पर्म गाढ़ा करके अंदर डालने) से भी अगर प्रेगनेंसी नहीं हो पाती या फेलोपियन ट्यूब बंद होने की वजह से दूसरी तकनीक अपनाने का कोई फायदा नहीं होता। ऐसी कंडीशन में आईवीएफ या टेस्ट ट्यूब बेबी वरदान है।

आईवीएफ प्रोसेस में दो प्रोटोकॉल इस्तेमाल किए जाते हैं- लांग प्रोटोकॉल जो पूरे 28 दिन का होता है जिसमें पहले दिन से लेकर 28वें दिन भ्रूण इम्प्लांट/ट्रांसफोर्म किया जाता है। दूसरा एंटागोनिस्ट प्रोटोकॉल जो 15 दिन में खत्म कर लिया जाता है। प्रोटोकॉल का चुनाव मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है अगर महिला को पोलिसिस्टिक ओवरी की तकलीफ हो तो एंटागोनिस्ट प्रोटोकॉल के माध्यम से आईवीएफ किया जाता है। अगर महिला की उम्र ज्यादा है, अंडे कम बन रहे हैं या मरीज की ओवेरियन रिजर्व ठीक है, तो लांग प्रोटोकॉल इस्तेमाल किया जाता है।

आईवीएफ में प्रेगनेंसी रेट को बढ़ाने के लिए कई मामलों में ज्यादा भ्रूण ट्रांसफर किए जाते हैं। हालांकि एक-दो भ्रूण ट्रांसफर किये जाते हैं। लेकिन कई स्थितियों में अगर मरीज की उम्र ज्यादा हो, पहले आईवीएफ फेल हो चुके हों या पुरूष में स्पर्म काउंट कम हैं, तो उस स्थिति में मरीज की सहमति पर 2-3 भ्रूण भी ट्रांसफर किए जाते हैं। इससे ट्विन्स या ट्रिपलेट्स प्रेगनेंसी भी हो जाती है। आईवीएफ की तैयारी कैसे करें- इसके बहुत अच्छे रिजल्ट हैं। एक साइकिल में 45-50 प्रतिशत, 3-4 साइकिल में 80-85 प्रतिशत महिलाओं को प्रेगनेंसी ठहर ही जाती है।

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आईवीएफ से पहले किन बातों का रखें ध्यान

रखें अपनी डाइट का ध्यान: अपने आहार में ऐसी चीजें ज्यादा से ज्यादा शामिल करें जिन्हें आपको पकाना न पड़े यानी कच्चा खा सकते हैं। जिसमें भरपूर मात्रा में पोषक तत्व और एंटीऑक्सीडेंट होते है-ऐसी डाइट लें जिसमें-हरी सब्जियों, फलों, सलाद, ड्राई फ्रूट्स, सीड्स शामिल हों। हाई कैलोरी डाइट, हाई शूगर डाइट से बचें। पैकेज, फास्ट, जंक फूड से परहेज करें क्योंकि इनमें मौजूद ऑयल और सॉल्ट शरीर में इंसुलिन के स्तर को बढ़ाती है जो सूजन लाती है। एल्कोहल, स्मोकिंग, बहुत ज्याद चाय-कॉफी न लें क्योंकि यह प्रेगनेंसी की दर को कम करते हैं।

रहें एक्टिव: अपनी दिनचर्या में कम से कम 30 मिनट की एक्सरसाइज जरूर करें। रोज न कर पाएं, तो कम से कम सप्ताह में 5 दिन जरूर करें। अपनी इच्छानुसार किसी भी तरह की एक्सरसाइज कर सकते हैं-वॉक, जॉगिंग, जिम, योगा, एरोबिक। एक्सरसाइज मसल्स स्ट्रैंन्थिनिंग, वनज घटाने में उपयोगी है जिससे महिला का ओवेरियन रिस्पांस अच्छा होता है, एग निर्माण प्रक्रिया में सुधार आता है।

रेगुलर हेल्थ चेकअप कराएं: रूटीन ब्लड टेस्ट कराएं जिसमें ब्लड शूगर, थायरॉयड लेवल, लिवर फंक्शन और किडनी फंक्शन टेस्ट शामिल होते हैं। इसके साथ हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस (थैलेसीमिया माइनर) और रूबैला एंटीबॉडी टेस्ट (शरीर में रूबैला आईजीजी एंटीबॉडी) की जांच जरूर करानी चाहिए जिनका असर प्रेगनेंसी और होने वाले बच्चे पर पड़ता है।

विटामिन सप्लीमेंट्स का नियमित सेवन: आईवीएफ से पहले डॉक्टर महिला को कुछ विटामिन सप्लीमेंट्स भी देते हैं-एंटीऑक्सीडेंट विटामिन, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, फोलिक एसिड, विटामिन बी 12 जो महिला की इम्यूनिटी बढ़ाने में सहायक होती हैं। अगर महिला को पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज हो, तो उन्हें इंसुलिन लेवल को कम करने के लिए इंसुलिन सेंसिटाइजर्स कहा जाता है। 35 साल के बाद आईवीएफ कराने वाली महिलाओं को कुछ दवाइयां दी जाती हैं जिनसे ओवरी में एग बनाने की क्षमता बढ़ती है।

यूटरस में प्रॉब्लम: अगर महिला को यूटरस में किसी तरह की समस्या है जैसे- यूटराइन पॉलिप, इंफेक्शन, ट्यूब खराब हो गए हो या हाइड्रो सेल्फिक्स। तो आईवीएफ कराने से पहले हिस्ट्रोस्कोपी की मदद से इन्हें ठीक किया जाता है, इंफेक्शन का इलाज किया जाता है।

रिलेक्स रहें: आईवीएफ कराने से पहले यथासंभव स्ट्रेस से दूर रहें। स्ट्रेस से कोर्टिसोल हार्मोन्स का लेवल बढ़ता है जो यूटरस में संकुचन लाता है और प्रेगनेंसी की दर को कम करता है। संभव है कि एम्ब्रियो ट्रांसप्लांट के बाद महिला को स्पॉटिंग या पेल्विक एरिया में क्रैम्प्स की शिकायत हो। लेकिन इससे घबराना नहीं चाहिए, जरूरत हो तो डॉक्टर को कंसल्ट करना चाहिए। पॉजीटिव सोच रखें, वो काम करें जिनमें आपको मजा आता है।

आईवीएफ में एम्ब्रियो ट्रांसप्लांट के बाद किन बातों का रखें ध्यान

IVF Care
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भरपूर आराम करें: जहां तक हो सके आराम करें। पूरे दिन बैड रेस्ट से बचें। अपने काम और थोड़ा-बहुत घूम सकते हैं। घर के काम में अपने पति या घर के अन्य सदस्यों की मदद लें। दवाइयां रेगुलर लें-आईवीएफ प्रोसेस के बाद कुछ दवाइयां दी जाती हैं जो एम्ब्रियो को यूटरस लाइनिंग पर ठीक तरह से चिपकाने और विकास के लिए होती हैं। जिसमें कुछ हार्मोन्स, इंजेक्शन भी होते हैं। जरूरी है कि नियत समय पर रेगुलर लें। रोजाना फोलिक एसिड, एंटीऑक्सीडेंट्स जरूर लें।

हेल्दी डाइट लें: पोषक और संतुलित आहार लें। हर तरह के मौसमी फल-सब्जियों को अपने आहार में शामिल करें। प्रोटीन, विटामिन बी, आयरन-कैल्शियम रिच डाइट लें। तला-भुना खाना अवायड करें। प्रोसेस्ड या जंक फूड न लें। मिलावट की संभावना वाले भोजन से दूर रहें क्योंकि इनमें मौजूद एंडोक्राइन ग्लैंड्स को प्रभावित करने वाले कैमिकल्स होते हैं। जिनसे शरीर का हार्मोनल प्रोफाइल को खराब करते हैं और आपको प्रेगनेंसी में दिक्कत आ सकती है।

इंटरकोर्स से बचें: कोशिश करें कि इंटरकोर्स से बचें। इससे यूटरस पर दवाब पड़ सकता है और परेशानी हो सकती है।

रोजाना प्रेगनेंसी टेस्ट करने से बचें: हर रोज प्रेगनेंसी टेस्ट करने से स्ट्रेस बढ़ता है। आईवीएफ के बाद 14-15 दिन बीतने पर बीटा एचसीजी का टेस्ट कराना चाहिए। जल्दी टेस्ट कराने से कोई फायदा नहीं होगा।

समस्या को अवायड न करें: किसी भी तरह की समस्या हो जैसे- पेट दर्द या क्रैम्प्स होना, उल्टियां, कब्ज या डायरिया, भूख न लगना, स्पॉटिंग बहुत ज्यादा होना हो तो इग्नोर न करके जल्द से जल्द डॉक्टर को संपर्क करना चाहिए।

निराश न हों: अगर किसी वजह से आईवीएफ फेल हो जाता है, तो निराश नहीं होना चाहिए। दोबारा आईवीएफ के लिए तैयार रहें।

(डॉ अंशु जिंदल, स्त्री रोग विशेषज्ञ और आईवीएफ एक्सपर्ट, मेरठ)