Summary: बच्चों की हर बात मानना प्यार या गलती
बच्चों की हर बात मानना प्यार नहीं, बल्कि Over-Permissive Parenting है, जो उन्हें अनुशासन, जिम्मेदारी और भावनात्मक स्थिरता से दूर कर सकती है।
Over-Permissive Parenting: दुनिया के सभी माता-पिता अपने बच्चों को खुश देखना चाहते हैं। सभी माता-पिता की कोशिश होती है, वह अपने बच्चों को सभी खुशियां दे पाए जिसका वह हकदार है। यही कारण है कि कई माता-पिता प्यार को मना ना करना समझ बैठते हैं और अपने बच्चों की हर अच्छी-बुरी जिद्द को पूरा कर देते हैं। लेकिन क्या माता-पिता द्वारा इस तरह का प्रेम बच्चों के भविष्य के लिए सही है। आईए जानते हैं इस लेख में इस तरह के प्रेम से बच्चों पर क्या नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और किस तरह बच्चों का भविष्य भी खतरे में पड़ता है।
क्या है ओवर प्रीमेसिव पेरेंटिंग

माता-पिता जब बच्चों को जरूरत से ज्यादा स्वतंत्रता देते हैं। बच्चे की हर छोटी-बड़ी अच्छी-बुरी मांगों को बिना विचार या देरी के पूरा करते हैं। बच्चे के लिए नियम या अनुशासन तय नहीं कर पाते। बच्चों को उनकी सीमाओं का भान नहीं करवाते तो इस तरह की पेरेंटिंग स्टाइल को ओवर प्रीमेसिव पेरेंटिंग कहा जाता है।
इस तरह की पेरेंटिंग में अक्सर माता-पिता इस गलतफहमी में रहते हैं कि वह अपने बच्चों की मांगों को पूरा कर, उन्हें प्यार दिखा रहे हैं। पर हकीकत में वह अपने बच्चों का व्यक्तित्व कमजोर बना रहे होते हैं, साथ ही उनके भविष्य के विकास में भी रूकावट बन रहे होते हैं।
माता-पिता बच्चों की हर बात पर हां क्यों कहते हैं
बहुत से माता-पिता बच्चों को किसी चीज या बात के लिए ‘ना’ कहने का अर्थ प्यार कम देने से लगा लेते हैं। पर प्यार का अर्थ हर बात के लिए ‘हां’ कहना नहीं है बल्कि बच्चों को अनुशासित जीवन सीखना है।
वर्तमान समय में माता-पिता दोनों काम करते हैं जिसकी वजह से वह अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते। माता-पिता अपने इस गिल्ट को कम करने के लिए बच्चों की सभी मांगों को पूरा कर देते हैं।
कई बार बच्चों की तुलनात्मक प्रवृत्ति माता-पिता पर भी हावी होती है। उस बच्चे के पास ये है मेरे को भी दिलवाओ जैसी स्थिति में माता-पिता बच्चों की मांग पूरी करते हैं।
कई बार माता-पिता बच्चों के रोने चिल्लाने या जिद्द करने से बचना चाहते हैं और जल्द से जल्द उनकी मांग पूरी कर देते हैं।
ओवर प्रीमेसिव पेरेंटिंग का बच्चे पर बुरा प्रभाव
अगर बच्चे की सभी मांगों को माता-पिता एक बार कहने पर मान लेते हैं या पूरी कर देते हैं तो वह यह मान लेते हैं उन्हें हर चीज तुरंत मिल सकती है। वह मेहनत, इंतजार या संतुष्टि की भावना को नहीं समझते हैं और अगर आपने आगे चलकर उन्हें मना किया तो वह चिल्लाना, रोना या जिद्द करना शुरू कर देते हैं।
अगर आपने बचपन में बच्चों को ‘ना’ को स्वीकार करना नहीं सिखाया तो भविष्य में उनकी परेशानी बढ़ सकती है। वह छोटी असफलता के कारण भी तनाव की स्थिति में जा सकते हैं। बच्चे के अंदर खुद को असफलता से निकालने या कठिन परिस्थितियों को संभालने के गुण का विकास नहीं होता है।
बच्चों की हर मांग पूरी होने से बच्चा अनुशासनहीन और अहंकारी बन सकता है। वह दूसरों की सीमाओं या भावनाओं का सम्मान ना करें इसकी संभावना बढ़ जाती है।
बच्चों को प्यार के साथ अनुशासन सिखाएं
माता-पिता अपने बच्चों को प्यार और अनुशासन दोनों सिखाने के लिए जेंटल पेरेंटिंग अपना सकते हैं। जेंटल पेरेंटिंग में बच्चों को प्यार के साथ अनुशासन सिखाया जाता है। उन्हें अपने तथा दूसरों की सीमाओं के सम्मान के बारे में बताया जाता है।
क्या करें माता-पिता: बच्चों को भरपूर प्यार दें, लेकिन सीमाएं तय करें। उन्हें कब, कितना खेलना है, फोन देखना है या बड़ों से कैसा बर्ताव करना है इसके बारे में सीमाएं बिल्कुल साफ शब्दों में तय होनी चाहिए।
बच्चों को हर बार ‘हां’ कहना जरूरी नहीं है उन्हें ‘ना’ कहें साफ शब्दों में। उनके चिल्लाने या रोने पर उनकी मांगे पूरी ना करें। अगर उनकी मांग सही है तो आप तुरंत पूरा करने की बजाय समय दे। उनसे कहे कि आपकी मांगे इतने दिन, इतने महीने या इस वक्त पुरी की जाएगी। इस तरह से बच्चा धैर्य की भावना सीखता है। वह समझता है किसी चीज के इंतजार करने के महत्व को जो कि उसके भविष्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
