Summary: जब संकल्प बना संजीवनी, हनुमान जी का साहस और समर्पण
हनुमान जी का पर्वत रूप भारतीय आस्था की सबसे प्रेरणादायक कथाओं में से एक है। जानिए कैसे संजीवनी की खोज में हनुमान जी ने द्रोणाचल पर्वत उठाकर दिखाया कि सच्ची भक्ति केवल आराधना नहीं, बल्कि कर्म और साहस का रूप होती है।
Hanuman Parvat Katha: भारतीय पुराणों में ऐसे अनगिनत प्रसंग हैं, जो यह बताते हैं कि जब मनुष्य में भक्ति और कर्तव्य की भावना अटूट होती है, तो असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। इन कहानियों में सबसे प्रेरणादायक प्रसंगों में से एक है हनुमान जी द्वारा संजीवनी पर्वत लाने की कथा।
यह केवल एक पौराणिक घटना नहीं, बल्कि साहस, निष्ठा और संकल्प का प्रतीक है। हनुमान जी का यह कार्य आज भी इस बात का प्रमाण है कि जब लक्ष्य भगवान की सेवा और मानवता की रक्षा हो, तब प्रकृति की सारी शक्तियां आपके साथ हो जाती हैं।
मकरी अप्सरा का उद्धार और नई यात्रा की शुरुआत
कालनेमि का वध और मकरी अप्सरा का उद्धार करने के बाद हनुमान जी की दृष्टि एक ही उद्देश्य पर केंद्रित थी लक्ष्मण जी को पुनर्जीवित करने के लिए संजीवनी बूटी लाना। वायु वेग से वे ऋषभ और कैलाश पर्वत के बीच स्थित द्रोणाचल पर्वत पर पहुंचे। वह पर्वत मानो दिव्यता का सजीव रूप था जगमगाती औषधियां, गंधर्वों का संगीत, और कंदराओं में तप करते ऋषि-मुनि, सब मिलकर एक अलौकिक वातावरण बना रहे थे।
संजीवनी की कठिन खोज और समय का दबाव
हनुमान जी ने वैद्य सुषेण के बताए अनुसार पर्वत पर औषधियों की खोज शुरू की। चारों ओर विविध जड़ी-बूटियां थीं, परंतु संजीवनी बूटी कौन-सी है, यह पहचान पाना कठिन था। रात्रि तेजी से बीत रही थी। यदि प्रभात से पहले वे औषधि लेकर लंका नहीं पहुंचते, तो लक्ष्मण जी के प्राण बचाना असंभव था। यही विचार उन्हें व्याकुल कर रहा था। समय बीतने के साथ उनका मन और भी दृढ़ हो उठा..अब कुछ करना ही होगा।
निर्णय का क्षण

जब औषधि पहचानने का कोई उपाय नहीं सूझा, तो हनुमान जी ने वह किया जो केवल वही कर सकते थे पूरा पर्वत ही उखाड़ लिया! उन्होंने अपनी अपार शक्ति से द्रोणाचल को जड़ से उखाड़कर अपने दाहिने हाथ की हथेली पर रख लिया। पर्वत हिल उठा, उसकी चोटियां टूटकर बिखर गईं, और आकाश में एक दिव्य प्रकाश फैल गया। यह दृश्य देखकर देव, दानव, यक्ष और गंधर्व सभी विस्मित रह गए।
आकाश में उड़ता द्रोणाचल
रात्रि के अंधकार में जब हनुमान जी पर्वत लेकर लंका की ओर उड़ चले, तो वह दृश्य अद्भुत था। ऐसा लगता था मानो आकाश में एक विशाल दीपक प्रज्वलित हो उठा हो। यह केवल एक यात्रा नहीं थी, बल्कि समय से संघर्ष की प्रतीक थी.. एक भक्त अपने आराध्य के प्रिय भाई के प्राण बचाने के लिए ब्रह्मांड की सीमाओं को लांघ रहा था।
हनुमान का पर्वत रूप
हनुमान जी का यह रूप केवल बल का प्रतीक नहीं, बल्कि समर्पण की पराकाष्ठा है। पर्वत रूपी उनके इस स्वरूप का ध्यान करने से व्यक्ति के भय, रोग और संकट दूर हो जाते हैं। यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि जब हम अपने कर्तव्य के प्रति सच्चे होते हैं, तो परिस्थितियाँ चाहे कितनी कठिन क्यों न हों, समाधान अवश्य निकलता है।
हनुमान जी की यह लीला हमें यह प्रेरणा देती है कि सच्ची भक्ति केवल आराधना में नहीं, बल्कि कर्म में छिपी है। जब लक्ष्य पवित्र हो और मन में विश्वास अटल, तब हर पर्वत उठाया जा सकता है।
रामदूत पवनपुत्र हनुमान जी के इस पर्वत-विराट स्वरूप का ध्यान आज भी हर संकट में शक्ति, विश्वास और संजीवनी प्रदान करता है।
