Lord Hanuman: महादेव का तार माना गया है। ऐसे में सच्चे मन से अगर मंगलवार के दिन उनकी उपासना की जाए तो जीवन के सभी संकट टल जाते हैं। हनुमान जी को अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता कहा जाता है। हनुमान चालीसा में दी गई एक चौपाई में भी इसका वर्णन किया गया है जिसमें हनुमानजी के बल, बुद्धि व पराक्रम के बारे में बताया गया है।
चौपाई के अनुसार “अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता” का मतलब हनुमान जी की भक्ति से व्यक्ति के जीवन में अष्ट प्रकार की सिद्धियां और नौ प्रकार की निधियां प्राप्त होती है। पुराणों के मुताबिक सिर्फ एक वहीं ऐसे देवता हैं जिन्हें अष्ट सिद्धि और नौ निधि प्राप्त है। चलिए जानते हैं आखिर क्यों हनुमान जी को कहा जाता है अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता?
अष्ट सिद्धियां और नव निधियां
शास्त्रों के अनुसार, हनुमान जी को मां जानकी ने अष्ट सिद्धियां और नौ निधियों का वरदान दिया था। कहा जाता है कि अष्ट सिद्धियां बेहद शक्तिशाली होती है। दरअसल, इन शक्तियों को संभालने की शक्ति भी सिर्फ हनुमान जी में ही थी। क्योंकि ये नौ निधियां और सिद्धियां जिसे भी मिल जाती है उसे कभी भी धन और संपत्ति की आवश्यकता नहीं रहती हैं।
आपको बता दें अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इशित्व और वशित्व ‘अष्टसिद्धियां’ कहलाती हैं। ये सिद्धियां तप साधना से ही प्राप्त होती है। वहीं नव निधियां पद्म निधि, महापद्म निधि, नील निधि, मुकुंद निधि, नंद निधि, मकर निधि, कच्छप निधि, शंख निधि और खर्व या मिश्र निधि मिलाकर कुल नव निधियां होती हैं।
पौराणिक कथा

शास्त्रों के मुताबिक भगवान शिव के 11 रुद्र अवतार हनुमान जी है। उन्हें शिव का अंश माना जाता है। कहा जाता है एक समय था जब त्रिलोक में अत्याचार तेजी से बढ़ता जा रहा था वहीं रावण की अगुवाई में राक्षसों ने आतंक मचा रखा था। इसी को देखते हुए सभी देवी देवताओं और ऋषि-मुनियों ने श्री हरि हर यानी विष्णु और शिव जी से प्रार्थना की थी। तब यह कहा गया था कि वह राम का अवतार लेकर त्रेता युग के अंतिम चरण में आएंगे। उससे पहले श्री हरि की सेवा के लिए महाबली हनुमान के रूप में उन्होंने जन्म लिया। ऐसे में उनके पिता वनराज केसरी और माता अंजना थी। जबकि पवनदेव हनुमानजी के दत्तक पिता माने गए हैं।
वहीं माता रूपी सीता जी का हरण रावण ने किया था तो राम, लक्ष्मण दोनों भाई उनकी खोज में वन में भटक गए थे। ऐसे में दोनों भाइयों पर वनराज सुग्रीव के गुप्त चरो की नजर पड़ी। उन्हीं के कहने पर हनुमान जी दोनों का भेद जानने के लिए उनके पास साधु बनकर पहुंचे थे। यही वक्त था जब पहली बार श्री राम और हनुमान जी का मिलन हुआ था। उसके बाद हनुमान जी ने लंका पहुंचकर सीता जी से भेंट की थी। इसके लिए सीता जी ने हनुमान जी की खूब प्रशंसा की और उन्हें अष्ट सिद्धि और नाम निधि का दाता बना दिया । यही वाक्य हनुमान चालीसा की चौपाई में भी बोला जाता है।
क्या है अष्ट सिद्धियां?
अणिमा: ये कभी भी अति सूक्ष्म रूप धारण करने वाली सिद्धि है।
महिमा: इसकी मदद से महाबली ने कई बार विशाल रूप धारण किया है।
गरिमा: इसकी मदद से महाबली खुद का भार किसी विशाल पर्वत के समान कर सकते हैं।
लघिमा: इस सिद्धि से महाबली स्वयं का भार बिल्कुल हल्का कर सकते हैं और पलभर में वे कहीं भी आ-जा सकते हैं।
प्राप्ति: इसकी मदद से महाबली किसी भी वस्तु को तुरंत ही प्राप्त कर लेते हैं। इतना ही नहीं इससे सभी पशु-पक्षियों की भाषा को समझा जा सकता है वहीं आने वाले समय को देख जा सकता हैं।
प्राकाम्य: इसकी मदद से महाबली पृथ्वी गहराइयों में पाताल तक जा सकते हैं, आकाश में उड़ सकते हैं और मनचाहे समय तक पानी में भी जीवित रह सकते हैं।
ईशित्व: इस सिद्धि की मदद से महाबली को दैवीय शक्तियां प्राप्त हुई हैं।
वशित्व: इस सिद्धि की मदद से महाबली जितेंद्रिय हैं और मन पर नियंत्रण रखते हैं।
क्या हैं नव निधियां?
पद्म निधि: पद्मनिधि लक्षणो से संपन्न मनुष्य सात्विक होता है।
महापद्म निधि: महाप निधि से लक्षित व्यक्ति अपने धन का दान करता है।
नील निधि: नील निधि से सुशोभित व्यक्ति सात्विक तेज से संयुक्त होता है।
मुकुंद निधि: मुकुन्द निधि से लक्षित व्यक्ति रजोगुण संपन्न होता है।
नन्द निधि: नन्दनिधि युक्त मनुष्य राजस और तामस गुणों वाला होता है।
मकर निधि : मकर निधि संपन्न व्यक्ति संग्रह करने वाला होता है।
कच्छप निधि : कच्छप निधि लक्षित मनुष्य तामस गुण वाला होता है।
शंख निधि : शंख निधि एक पीढ़ी के लिए होती है।
खर्व निधि : खर्व निधि के लोगों में स्वभाव में मिश्रित फल दिखाई देते हैं।
