Helicopter Parenting: सभी माता-पिता अपने बच्चों को सफल, समझदार और आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं। यही वजह है की माता-पिता अपने बच्चों से जुड़ी हर छोटी-छोटी बातों में रुचि दिखाते हैं। जैसे, बच्चे को क्या पढ़ना चाहिए, कितनी देर पढ़ना चाहिए, कब किसके साथ खेलना है, कौन उसके दोस्त हैं, माता-पिता के लिए इन सभी चीजों की जानकारी रखना गलत बात नहीं है, लेकिन जब माता-पिता हर छोटी-छोटी चीजों में बच्चों पर अपनी राय लागू करने लगते हैं या फिर उन्हें खुद का समय नहीं देते तो इससे बच्चों के विकास पर बुरा असर पड़ता है। बच्चा खुद को हर वक्त अपने माता-पिता के अधीन समझता है। वह अपना स्वतंत्र फैसला नहीं ले पता। आज हम इस लेख में इसी विषय पर बात करेंगे, माता-पिता के अत्यधिक हस्तक्षेप का बच्चों के विकास पर क्या असर पड़ता है, आईए जानते हैं।
क्या है हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग
माता-पिता का अपने बच्चों के जीवन में, निर्णय, पसंद ना पसंद, पढ़ाई, खेल, सामाजिक संबंधों, यहां तक की बच्चों के विचारों में अत्यधिक हस्तक्षेप करना हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग या ओवरपेरेंटिंग कहलाता है। हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग में माता-पिता अपने बच्चों के निर्णय स्वयं लेते हैं। पेरेंट्स अपने बच्चों को गलतियां नहीं करने देना चाहते गलती से पहले ही रोक देते हैं।
बच्चों को स्वतंत्र रूप से किसी कार्य को नहीं करने देते, हर समय बच्चों को निर्देश देते हैं तथा बार-बार टोकते हैं। यहां तक कि उनके दोस्तों के चुनाव में भी हस्तक्षेप करते हैं।
क्या कारण है अत्यधिक हस्तक्षेप का

माता-पिता का अपने बच्चों पर अत्यधिक हस्तक्षेप या कहें हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग का एक कारण उनका खुद का अनुभव भी हो सकता है। जैसे, अगर माता-पिता ने अपने बचपन में अपने माता-पिता से कम ध्यान या सुरक्षा पाया है, जिसका उन्हें अफसोस हो और वह अपने बच्चों को इन सब से बचाना चाहते हों तो वह इस तरह का बर्ताव करते हैं।
सुरक्षा की भावना: माता-पिता अपने बच्चों को पहले से ही किसी भी परेशानी से सुरक्षित रखने के लिए अपने अनुभव के अनुसार हस्तक्षेप या अपने बच्चों से जुड़े निर्णय लेते हैं।
अधिक अपेक्षा: कई बार माता-पिता अपने बच्चों से अत्यधिक अपेक्षाएं लगा लेते हैं और उसे सुनिश्चित करने के लिए वह अपने निर्णय बच्चों पर थोपते हैं।
विश्वास में कमी: कई बार माता-पिता अपने बच्चों की तुलना दूसरों से करके वह पाते हैं कि हमारा बच्चा कमजोर है। ऐसे में पेरेंट्स अपने बच्चों पर से अपना भरोसा कम कर देते हैं और उनका निर्णय स्वयं लेते हैं।
अपने सपने थोपना: माता-पिता खुद ही निर्णय ले लेते हैं कि उन्हें अपने बच्चों को क्या बनाना है और उसके अनुसार अपने निर्णय बच्चों पर लागू करते हैं।
अधिक हस्तक्षेप का बच्चे पर असर
जब माता-पिता अपने बच्चों के सभी निर्णय स्वयं लेते हैं तो बच्चे का अपने बारे में निर्णय लेने की क्षमता का विकास नहीं होता। जिससे वह हमेशा उलझन की स्थिति में रहता है तथा अपने से ज्यादा दूसरों की राय को महत्व देता है।
अपने निर्णय स्वयं ना ले पाने के कारण बच्चों में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है। वह गलतियां करने से डरता है।
बच्चा हर समय खुद पर टोका-टाकी और माता-पिता के अधिक नियंत्रण के कारण खुद को उदास तथा हताश महसूस करता है। इस स्थिति में बच्चे अपने जीवन के लक्ष्य का चुनाव खुद से नहीं कर पते है
क्या करें माता-पिता
बच्चों पर अपने निर्णय लागू करने से पहले उन्हें सुने, उनकी भावनाओं को समझे फिर अपनी राय दें।
बच्चों के छोटे-छोटे कार्य उन्हें खुद से करने दें, जरूरत पड़ने पर उन्हें सलाह दें, निर्णय नहीं।
उन्हें किसी कार्य को करने से सिर्फ इसलिए ना रोके कि वह असफल हो सकते हैं, बल्कि उन्हें गलतियां करने दें। गलतियों से डरने की बजाय सिखाना जरूरी है, यह समझ बच्चों के अंदर विकसित करें।
