पिता मदद को आ जाएं तो बच्चे को सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है। भारत की शान बढ़ाने वाली कई महिला खिलाड़ियों की जिंदगी भी इन शब्दों को साकार करती हैं। इन सभी की सफल होने की लड़ाई इनके पिता ने भी उतनी ही लड़ी है, जितनी इन्होंने खुद। इन्होंने जहां शारीरिक मेहनत की है तो पिता ने भी अपने योगदान ने इनके करियर को बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। कभी पैसों की कमी पूरी की तो कभी सामाजिक अवहेलनाओं को सहने का ढांढस भी बंधाया। लेकिन बेटियों को सफलता पाठ से डिगने नहीं दिया। सफलता की रह पर बेटियों का ऐसा सहारा बने कि उन्हें टॉप पर पहुंचा कर ही दम लिया। ये सारे पिता उन लोगों के लिए आदर्श हैं, जो बेटियों के पिता होने पर गर्व महसूस करते हैं। साथ ही उन पिताओं के लिए बदल जाने की प्रेरणा भी हैं, जो बेटियां होने को दुर्भाग्य मानते हैं। खेलों की दुनिया में बेटियों को सितारों की तरह चमकाने में अपना जीवन लगा देने वाले पिताओं के संघर्ष की कहानी जान लीजिए-

पीवी रमना, सिंधु की ताकत-
कम ही लोग जानते हैं कि 2016 के ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली आंध्र प्रदेश की पीवी सिंधु के पिता भी खिलाड़ी हैं। उनके पिता पीवी रमना अर्जुन पुरुस्कार विजेता हैं। वो वॉलीबॉल के नेशनल लेवल के खिलाड़ी रहे हैं। बाद में उन्होंने रेलवे के नौकरी भी की। फिर जब सिंधु को बैडमिंटन में आगे बढ़ने की बारी आई तो उन्होंने एक लंबी छुट्टी भी ली। सिंधु कहती हैं कि रोज मुझे गोपीचन्द सर की एकेडमी जाने के लिए 120 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता था। पर ये काम आसान नहीं था। इसी वक्त मेरे पिता ने रेलवे से कई बार लंबी छुट्टी सिर्फ इसलिए ली कि वो मुझे समय पर एकेडमी पहुंचा सके। दरअसल एकेडमी तक जाने के लिए एक तरफ से 30 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती थी। ऐसा दिन में दो बार करना होता था। इसके लिए सुबह 3 बजे से भी पहले उठना होता था ताकि 4 बजे वो वहां पहुंच सके। सिंधु जागती थीं इसलिए उनके पिता भी जागते थे। ऐसे कई और उदाहरण हैं जो दिखते हैं कि जितना संघर्ष सिंधु कर रही थीं, इस यात्रा में उतना ही उनके पिता ने भी किया है।

इमरान थे पीछे ताकि सानिया रहें आगे-
सानिया मिर्जा के पिता इमरान मिर्जा एक मध्यमवर्गीय परिवार से नाता रखते हैं। लेकिन टेनिस के महंगा खेल माना जाता है। एक समय ऐसा भी था, जब सानिया की ट्रेनिंग के लिए लाखों खर्च हुआ करते थे और इमरान का वेतन था सिर्फ 10000 रुपए। इस समय स्पोंसर ढूंढने का काम और सानिया की ट्रेनिंग पर कोई असर न पड़ने देने का काम इमरान अकेले ही कर लिया करते थे। उन्होंने सामाजिक अवहेलनाओं का भी सामना किया। जैसे एक बार सानिया के आंटी-अंकल ने कहा था। खिला तो रहे हैं ऐसा न हो लड़की काली हो जाए फिर इससे शादी कौन करेगा। इतना ही नहीं इमरान ने कई सारे मनोबल तोड़ देने वाले तानों को सानिया तक नहीं आने दिया और बाद में सानिया ने भी उनका खूब नाम रोशन किया, सामाजिक नियमों की दुहाई देने वाले लोगों का मुंह बंद ही कर दिया। सानिया दुनिया की नंबर 1 खिलाड़ी भी रही हैं। एक बार की बात खुद सानिया बताती हैं कि जिन दिनों पेरेंट्स मेरी ट्रेनिंग, घर और काम के बीच व्यस्त थे, उन्हीं दिनों रिश्तेदार अक्सर ये कहते थे कि लड़की के लिए इतनी मेहनत क्यों? कोई मार्टिन हिंगिस तो बन नहीं जाएगी। मगर इस वक्त पिता ही थे जिनका मानना था कि इन सबकी परवाह नहीं करनी है और मेहनत पर ध्यान देना है। देखिए फिर एक समय वो भी आया जब सानिया ने 3 ग्रैंड स्लैम जीते, वो भी मार्टिना हिंगिस के साथ। दुनिया में देश और परिवार का परचम भी लहराया, वो देश की शान बनीं।

खेल न रुके इसलिए पीएफ से निकाले पैसे-
देश की नामी एथलीट में ओलंपिक पदक विजेता साइना नहवाल का नाम भी आता है। जो लोग साइना नेहवाल को जानते हैं, वो उनके पिता के योगदान को भी जरूर पहचानते हैं। उनके संघर्ष कुछ कम नहीं हैं। शुरुआती दिनों की दिक्कतों का सामना तो उन्होंने किया ही। बाद में भी वो साइना के साथ डट कर खड़े रहे। जैसे साइना जब भी राज्य से बाहर किसी मैच के लिए जाती तो उनके पिता साथ ही जाते। कई बार तो ट्रेन और होटल के खर्चों के लिए उन्होंने अपने पीएफ से भी पैसे निकाले। लेकिन साइना की ट्रेनिंग और खेल रुकने नहीं दिया। जब 8 साल की उम्र में लाल बहादुर शास्त्री स्टेडियम में साइना ने अपनी ट्रेनिंग शुरू की तो उनका घर वहां से 20 किलोमीटर दूर था और उन्हें ट्रेनिंग के लिए सुबह 6 बजे पहुंचना होता था। इस वक्त भी पिता साथ, खुद स्कूटर पट बैठाकर उन्हें छोड़ने जाते।

दीपा का कमाल, पिता थे साथ-
दीपा करमाकर ऐसी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने पूरे 52 साल बाद ओलंपिक खेलों में पहली भारतीय महिला एथलीट के तौर पर प्रवेश कर इतिहास रच दिया था। ये वही दीपा हैं, जिन्हें बचपन में प्रोफेशनल सुविधाएं नहीं मिलीं तो स्कूटर की गद्दी पर प्रेक्टिस किया करती थीं। उस स्तर से साल 2016 के ओलंपिक तक पहुंचने का सफर दीपा के लिए बिलकुल भी आसान नहीं था। पर उनके पिता दुलाल करमाकर और कोच ने इसे आसान बनाने के लिए जान लगा दी। एक खास बात और है दीपा दुनिया की उन 5 महिलाओं में से एक हैं, जिन्होंने प्रोडुनोवा वाल्ट नाम का कठिन स्टंट किया है। आजतक ये स्टंट पूरी दुनिया में सिर्फ इन्हीं महिलाओं ने किया है। 6 साल की उम्र में कोचिंग शुरू करने वाली दीपा के पिता वेट लिफ्टर रहे हैं। जब दीपा ने खेलने की शुरुआत की तो तंगहाली के दिन थे। पर दुलाल ही थे जो दीपा को पीछे नहीं हटने दे रहे थे। कई दफा दीपा के पास जूते नहीं होते थे तो कई बाद कॉस्टयूम भी नहीं होता था। लेकिन दुलाल को भरोसा था कि एक दिन मेहनत और संघर्ष अपना रंग दिखाएंगे। वही हुआ भी।
