Eve Teasing: हम प्रोग्रेसिव होने की बात करते हैं। मॉडर्न बनते हैं लेकिन बात जब दुनिया में महिलाओं की स्थिति की आती है, तो हम कहते हैं कि हम काफी दूर आ चुके हैं। जब भी हम अपने घर से बाहर बेटियों को भेजते हैं, हमें लगातार उनकी सुरक्षा की चिंता लगी रहती है। आए दिन लड़कियों को हैरेसमेंट झेलना पड़ता है, यह भी एक वजह है बेटियों को घर से बाहर भेजने से पहले उसके पेरेंट्स दस बार सोचते हैं। लेकिन खुद से यह सवाल पूछना जरूरी है कि क्या यह सही है। जवाब मिलेगा कि बिल्कुल नहीं।
बेटियों को रोकना या दायरे को सीमित करना बिल्कुल भी ठीक नहीं है। इससे बेहतर तो यह है कि हम अपने बेटों को अधिक जिम्मेदार होना और अपनी आजादी का सदुपयोग करना सिखाएं। यहां कुछ टिप्स दिए जा रहे हैं, जिनकी मदद से आप अपनी बेटियों को सेक्सुअल हैरेसमेंट और ईव टीजिंग से कैसे बचें सिखा सकते हैं।
जागरूकता है जरूरी
सबसे पहले तो बेटियों के लिए ये जानना जरूरी है कि उनके साथ गलत हो रहा है। सेक्सुअल हैरेसमेंट, ईव टीजिंग के बारे में उन्हें बताएं और समझाएं कि इसका क्या मतलब होता है। उन्हें बाहर निकलने से रोकने की वजय जिंदगी जीना सिखाएं। उन्हें समझाएं और सिखाएं कि ऐसी स्थिति में उन्हें क्या करना चाहिए।
दुनिया से उनके कम्यूनिकेशन को सीमित करने की कोशिश बिल्कुल न करें क्योंकि ऐसा करके आप उनके मनोबल को गिराती हैं और उन्हें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि समस्या का कारण वह खुद हैं।

अलर्ट रहना
हैरेसमेंट का अनुभव लड़कियों और महिलाओं के लिए आम बात है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इसे झेलना सीख जाएं। इसके लिए अलर्ट रहने की जरूरत है, न सिर्फ खुद को लेकर बल्कि अपने आस-पास को लेकर भी सजग रहें। अपनी बच्ची को चौकस रहना सिखाएं ताकि वह किसी भी आने वाली परेशानी को पहले ही समझ जाए।
उसे आंख बंद करना नहीं सिखाएं
अमूमन हम अपनी बेटियों को हैरेसमेंट को लेकर आंख बंद करने को कह देते हैं। ताकि गर्मागर्मी से बचा जा सके। यह सही नहीं है। जब भी बात ईव टीजिंग की आती है, तो यह पावर का मामला होता है। ईव टीजिंग करने वाले को महसूस होता है कि वह ऐसा करने के बाद आसानी से बच सकता है। अगर आपने ऐसे इंसान को जाने दिया, चाहे फिर वो आपके करीबी रिश्तेदार या घर को कोई घास क्यों न हो, तो वो ऐसा बार-बार करेगा।
बेटी का हमेशा दें साथ
कभी भी अपनी बेटी को छोड़ें नहीं, उसे हमेशा यह समझाएं कि चाहे कुछ भी हो जाए, आप हमेशा उसका साथ देंगी। इसके लिए आप उसे साफ शब्दों में बता दें। यदि आपको ऐसा लग रहा यही कि आपकी बेटी शांत है, या अच्छा महसूस नहीं कर रही है, तो उससे इस बारे में बात करें। यदि उसके कहने पर आपको लगता है कि तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत है, तो तुरंत करें। इसे इग्नोर नहीं करें।

कभी भी उसे दोष न दें
कई बार ऐसा होता है कि हम दोषी को दोष न देने की बजाय विक्टिम को दोष देने लगते हैं। यह बिल्कुल भी सही नहीं है, इस तरह से आपकी बेटी आगे से आपको कुछ भी बताने से पहले दस बार सोचेगी। संभव है कि बताए ही नहीं। हमारा समाज कपड़े, जेस्चर और अपीयरेन्स को बहुत वैल्यू देता है, जो कि कई बार परेशानी भरा हो सकता है।
आपकी बेटी चाहे जो भी पहनती हो, जैसे भी बात करती हो, यदि वह सेक्सुअल हैरेसमेंट की विक्टिम है, तो उसको दोष बिल्कुल मत दीजिए, न ही उसे जज कीजिए। यह जान लीजिए कि इस वजह से उसका कॉन्फिडेन्स पहले ही कम हो चुका है, आप उसे दोषी ठहराकर उसके कॉन्फिडेन्स को चकनाचूर कर देंगी। बल्कि उसके साथ जो हुआ है, उसके खिलाफ एक्शन लीजिए। यह जान लीजिए कि बच्चे के पास सिर्फ उसके पेरेंट्स ही सपोर्ट सिस्टम होते हैं। उससे यह मत छीनिए।
बच्चे को शिक्षित कीजिए
बच्चे के बड़े होने का इंतजार करने से बेहतर है कि उसे शुरू से ही समझाना शुरू कर दीजिए। अपनी बेटी को बताना न भूले कि सेक्सुअल एब्यूज क्या है। सुनिश्चित कीजिए कि आपके बच्चे को बॉडी बाउंड्रीज के बारे में पता हो। उसे बताइए कि उसे कोई भी बिना कपड़े के नहीं देख सकता है। उसे बताइए कि कोई अनजान व्यक्ति उसे टच कर रहा है, तो यह गलत क्यों है। प्राइवेट पार्ट्स को प्राइवेट क्यों कहा जाता है, यह भी उसे बचपन से ही बताएं और समझाएं।
कोड वर्ड
छोटे बच्चे एब्यूज और डिसकम्फर्ट को समझा पाने में असमर्थ होते हैं। इसलिए उन्हें कोड वर्ड दें कि ताकि वे जब भी असुरक्षित महसूस करें तो आपको बता सकें।
ना कहना भी है सही
अपने बच्चे को ना कहने की छूट दें। उसे बताएं कि चाहे जो भी हो, भले ही वह नजदीकी रिक्षेतदार हो या दोस्त, यदि उसे अनकम्फर्टेबल लग रहा है, तो उसे ना कहने की आजादी है। इस तरह से आप उसे ‘कॉन्सेंट’ शब्द के बारे में समझा सकती हैं।