बेटी जब बहु बनती है तब उसे सीख दी जाती है कि ससुराल में तुम्हें एक और मां मिलेगी। और नई नवेली दुल्हन तमाम सीखों का पिटारा लिए ढेर सारी उम्मीदों के साथ नए घर में पहुँचती है। पर अक्सर हकीक़त इन बातों से कुछ इतर होती है। कई बार सास का इमोशनल ड्रामा के बर्ताव को देखते हुए बहु पाती है कि सास सिर्फ सास होती है वह अच्छी बुरी तो हो सकती है पर वह मां नहीं हो सकती। इस सोच तस्दीक ऐसी सासों द्वारा कर दी जाती है जो बहू को नीचा दिखाने का मौका तलाशती है। इनका रिश्ता बहू के साथ बिल्कुल दफ्तर के उन सह कर्मियों की तरह ही समझिए जोकि लेग पुलिंग का मौका नहीं छोड़ना चाहतीं।
सभी मामलों में यही राय बनें जरूरी नहीं पर कई मामलों में ऐसा होता है कि सास का व्यवहार बिन मौसम बारिश की तरह नजर आता है। जिसमें पल में धूप और पल में बूंदे होती हैं। ऐसे में बहू भ्रमित रहती है कि ससुराल में मौजूद वह औरत कब उसकी मां है और कब सास। ऐसे में सास बहू को नीचा दिखाने का एक मौका भी नहीं छोड़ती। ध्यान रखिए कि दो निगाहें आप पर हमेशा हैं जो आपके उठने-बैठने, खाने-पीने सरीखी तमाम गतिविधियों पर पैनी निगाह रखे हुए है और कमी मिलते ही आपको कटघरे में खड़ा कर दिया जाएगा। कई मामलों में जिंदगी के लगभग हर मोड़ पर जाने-अनजाने सास यह अहसास करा ही जाती है कि वह बहू के पति की मां है उसकी नहीं। लिहाजा, बहू के हिस्से जो आता है वह सिर्फ और सिर्फ उम्मीद। यानी बहू घर में सिर्फ दूसरों की उम्मीदों को पूरा करने के लिए होती है। वह दूसरों से खुद के लिए थोड़ी भी उम्मीद न करें।
उपाय हैं यह
सास का बर्ताव पल में शोला, पल में माशा की तर्ज पर चलता है। मुमकिन है कि सास एकदम से आपके साथ बेहद अच्छा व्यवहार करने लगें ऐसे में जरूरी है कि आप सजग रहें। यदि आप सजग नहीं रहती तो मुमकिन है कि वह आपकी कमियों, बातों को आपके खिलाफ हथियार की तरह प्रयोग कर दें। बेहतर होगा कि आप मानकर चलिए कि कभी भी सास मिज़ाज बदल सकता है। सास आपको घर के बाकी सदस्यों की तरह अपनाएगी इसकी सम्भावना भी कम है। लिहाजा, उम्मीदों का बोझ मत पालिए। और सिर्फ और सिर्फ अपने कर्तव्यों को निवर्हन करती रहिए। अपनी गतिविधियों में घर के बाकि सदस्यों को भी शामिल कीजिए ताकि कमियों का ठिकरा सिर्फ और सिर्फ आपके सिर पर न फूटने पाए।
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