सपनों को देखने की कोई उम्र नहीं होती: No Age to Dream
No Age to Dream

No Age to Dream: कुछ लोग लीक से हटकर रास्ता बनाते हैं और फिर उसी दिशा में चलकर अपना पूरा सफर तय करते हैं। ऐसे विरले लोग कम होते हैं जो बिना किसी ‘गॉड फादर’ के दुनिया और समाज के बीच अपनी एक खास जगह बनाते हैं। आज इस कॉलम में चर्चा करेंगे ऐसी ही कुछ महिलाओं के बारे में-

हर मुश्किल में डटी रहीं- मुक्ता सिंह

No Age to Dream
Mukta Singh

58 साल की मॉडल मुक्ता सिंह का भी सपना कुछ ऐसा ही था जो उनके घर की परिस्थितियों की वजह से बेशक उस समय पूरा नहीं हो पाया लेकिन उस सपने को मुक्ता ने मारा नहीं बल्कि उम्र बढ़ने के साथ अपने सपनों के उस कैनवस पर उम्मीदों का रंग पोतती रहीं। आज 60 साल की उम्र में वह एक मॉडल के तौर पर स्थापित नाम बन चुकी हैं। यों भी देखा जाए तो उन्होंने 58 साल की उम्र में अपने करिअर की शुरुआत की। जिस उम्र में लोग रिटायर होने का सोचकर यह मान लेते हैं कि अब तो जीवन बीत गया है।

मुक्ता की कहानी एक आम सी हिंदुस्तानी लड़की की कहानी है। शादी के बाद अपने परिवार में बिजी होने वाली मुक्ता जितना हो सका उतनी सक्रिय रह पाईं। वह एक कलाकार भी हैं और जितना हो सका उतनी वे सक्रिय रहने की कोशिश भी अपनी ओर से करती रहीं। यही वजह है कि जब एक बार परिवार की किसी शादी में उन्हें मॉडलिंग का ऑफर हुआ तो इस मौके को मानों उन्होंने जी लिया हो। आमतौर पर महिलाएं इस उम्र में समाज से कट जाती हैं लेकिन मुक्ता आज भी बहुत जीवट हैं। वे सामाजिक कार्यों में व्यस्त होने के साथ मॉडलिंग के जरिए अपना शौक भी पूरा कर रही हैं।

आज वह 60 साल की हैं। अगर उनकी सफलता की कहानी की बात करें तो उसमें एक बात साफ तौर पर नजर आती है कि जीवन में कभी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। ऐसा नहीं होता कि आपके जीवन में कोई समय आएगा ही नहीं, समय आता है बस उसके अनुसार हमें तैयार रहना होता है। मुक्ता ने भी ऐसा ही किया वह बेशक एक हाउसवाइफ थीं लेकिन अपनी फिटनेस के प्रति वह पूरी तरह सजग। एक अच्छे वक्त के लिए वह खुद को तैयार कर रहीं थीं और आज वह उस मुकाम पर खड़ी हैं जहां सपनों के महल पर खड़ी होकर विजयी पताका लहरा रही हैं। वह अपनी उम्र को छिपाती नहीं बल्कि गर्व से अपनी झुॢरयों और सफेद बालों के साथ एक अदा से मुस्कुराती नजर आती हैं।

प्लान बी से पाई सफलता-गरिमा अरोड़ा

ऐसा बहुत बार होता है कि जब हम किसी क्षेत्र में जाते हैं तो हमें यह अहसास होता है कि यह चीज हमारे लिए सही नहीं है। परिवार के दबाव या फिर कुछ नया करने के जोखिम के डर से हम अपना मन मसोस कर रह जाते हैं और खुद को हालात के हवाले कर देते हैं लेकिन मास्टर शेफ ऑफ इंडिया में जज के तौर पर आई गरिमा अरोड़ा ने खुद के सपनों पर कभी हालात को हावी नहीं होने दिया।

एक लेखक के तौर पर उन्होंने अपने करिअर की शुरुआत की। छह महीने काम करने के बाद उन्हें लगा कि वह शायद इसके लिए नहीं बनी। अपनी नौकरी छोड़ी और चली गईं विदेश पाककला में निपुण होने। उन्हें भी कहां इस बात का अहसास था कि यह कदम उनके जीवन में मील का पत्थर साबित होगा।

वह आज मिशेलन अवॉर्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला शेफ बन चुकी हैं। उनके खाने का जायका सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में उनके टैलेंट के साथ महक रहा है। बहुत कम उम्र में ही गरिमा ने वो सभी कुछ हासिल किया है जिसके बारे में शायद उन्होंने कभी सोचा है। होटल इंडस्ट्री में हमेशा से ही पुरुषों का बोलबाला रहा है लेकिन गरिमा ने पुरुषों को पीछे छोड़ इस क्षेत्र में अपना दबदबा बना लिया है। साथ ही वे पाक कला में तरह-तरह के प्रयोग कर उन्हें भी अपने खाने का मुरीद बना रही हैं।

मास्टशेफ में पुरुषों के वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में मजबूती से खड़ी नजर आती हैं। मूलत पंजाब की गरिमा का जन्म और लालन-पालन मुंबई में हुआ है। महज 30 साल की उम्र में इन्होंने मिशेलन अवॉर्ड जीता था। इनका एक रेस्त्रां थाईलैंड के बैंकॉक शहर में है। जहां आप इंडियन थाई कुजींस का आनंद ले सकते हैं। गरिमा की खासियत यह है कि भारतीय व्यंजन में उन्होंने काफी प्रयोग किया, जो लोगों को पसंद भी आता है। इंडियन फ्लेवर के साथ विदेशी पाककला में वह माहिर हैं।

मास्टशेफ में वह जज के तौर पर अपने बेबाक अंदाज के साथ नजर आ रही हैं। सौम्यता के साथ उनके अक्रामक तेवर भी दर्शक पसंद कर रहे हैं। बहुत छोटी हैं गरिमा लेकिन उनके आंखों के सपने बहुत बड़े हैं। पुरुषों के दबदबे वाले इस क्षेत्र में वह अपने टैलेंट की वजह से बहुत मजबूती के साथ खड़ी हैं। गरिमा की सफलता ने इस बात को भी साबित किया कि जरूरी नहीं है कि आपने एक बार जो करियर बना लिया आप जिंदगी भर उसे ढोते रहें। जिंदगी आपको हमेशा एक दूसरा मौका देती है और उस दूसरे मौके के लिए प्लान बी के साथ मैदान में उतरना समझदारी है।

जिंदगी में आधा भरा गिलास देखना कोई इनसे सीखे उर्मिला बेन आशेर

urmila ben asher

कुछ लोग अपने हालात से हारकर समय के हवाले खुद को कर देते हैं तो कुछ अपनी विषम से विषम स्थित में भी हालात का सामना कर तूफानों को भी हरा देने का जज्बा रखते हैं। 78 साल की उॢमला बेन आशेर भी कुछ ऐसी ही हैं। अपनी इस जिंदगी में उन्होंने बहुत कुछ खोया जो उनके जीवन को दु:खों के पहाड़ में बदल सकता था।

एक मां के लिए उसके तीन बच्चों और पति का जाना इतना भी आसान नहीं होता। लेकिन आज जब आप इस यूट्यूबर को देखेंगे तो इस बात का सहज अंदाजा लगा पाएंगे कि सभी कुछ बस इंसान की चाहत पर निर्भर करता है।

अपने पोते के साथ गुजराती कुजींस का रेस्त्रां चलाने वाली उॢमला के बिजनेस का टर्नओवर आज लाखों में है। वह सुबह 8 बजे अपने काम की शुरुआत करती हैं। ऐसा नहीं है कि उनकी जिंदगी बेहद आसान और सहज है। अपने तीन बच्चों को खोने के बाद भी बस हिम्मत और आशा की डगर पर वह चलती चली गईं। उनके जीवन का एक ही दर्शन है जीवन चलते रहने का नाम है। उनके मन में बहुत कुछ करने की उमंगें हैं।

अगर उनके बिजनेस की सफलता की बात करें तो उनका खाना बनाने का पारंपरिक अंदाज और उनके बोलने की शैली बहुत निराली है। वह सुबह 8 बजे काम पर आती हैं और दिन भर रेस्त्रां के लिए अपने हाथ से कुजींस बनाती हैं। उनकी सफलता का एक ही राज है वह है उनकी मौलिकता जैसे कि वो यूट्यूब पर भी खाना बनाना सिखाती हैं तो नीचे बैठकर ही खाना बनाती हैं। उनका यह बेहद साधारण अंदाज लोगों को पसंद आता है। सच है कि जो लोग जड़ों से जुड़े होते हैं वह मजबूती से खड़े होते हैं। अपनी ऊर्जा से अपने आस-पास का माहौल खुशनुमा और सकारात्मक रखती हैं। न कोई बड़ी डिग्री और न ही कोई बड़ा बैकग्राउंड, ऐसी स्थिति में भी उॢमला बेन ने अपने रेस्त्रां की शुरुआत की और खास बात यह है कि वे हर रोज नई ऊर्जा के साथ अपने काम की शुरुआत करती हैं।