नारी विमर्श की चितेरी कथाकार मालती जोशी: Malti Joshi Life Journey
Malti Joshi Life Journey

Malti Joshi: चेहरे पर स्मित मुस्कान, चश्मे से झांकती हुई अनुभवी आंखें,बेहद सौम्य और सहज व्यक्तित्व की धनी महिला कथाकार मालती जोशी जी आकाशवाणी, दूरदर्शन व सोशल मीडिया पर कथा कथन व साक्षात्कार के जरिये साहित्य प्रेमियों से लगातार रूबरू होती रहती हैं। 89 साल की उम्र में भी वे लेखन में सक्रिय है। मालती जी की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में असंख्य कहानियां एवं हिन्दी व मराठी में साठ से भी ज्यादा कहानी संग्रह व उपन्यास अब तक प्रकाशित हो चुके हैं। उन्हें भवभूति अंलकरण, साहित्य शिखर सम्मान, सम्मान, ओजस्विनी सम्मान, दुष्यन्त कुमार सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, दिनकर संस्कृति सम्मान, मारीशस में विश्व हिन्दी सम्मेलन में पुरस्कृत होने के साथ साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिये भारत सरकार द्वारा 2018 में पद्म श्री सम्मान से भी नवाजा जा चुका है।

प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के कुछ चुन्निदा अंश-

सवाल: मालती जी आपके लेखन की शुरूआत कैसे हुई?

जवाब: विद्यार्थी जीवन काल में कविता और गीत लेखन से, सन् 1971 में धर्मयुग में पहली रचना ‘‘टूटने से जुडने तक’’ छपने के बाद मेरी लेखनी रूकी नहीं।

सवाल: आपका पहला कहानी संग्रह?

जवाब: मेरा पहला कहानी संग्रह पाषाण युग 1977 में प्रकाशित हुआ।

सवाल: आप साहित्य में किससे ज्यादा प्रेरित रही हैं?

जवाब: गीत और कविता लेखन में मीराबाई व महादेवी वर्मा से और कहानी लेखन में शरत चन्द्र, आशा पूर्णा देवी, शिवानी, मन्नू भण्डारी और सूर्य बाला मेरी पंसदीदा लेखक है।

सवाल: मराठी भाषी होते हुए भी आपने हिन्दी को ही लेखन का माध्यम बनाया। ऐसा क्यों?

जवाब: मेरा मानना है कि हिन्दी आम जन की भाषा हैं। ऐसे में हिन्दी में ही अधिक पाठक वर्ग है।

सवाल: मालती जी आपने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लिखा है पर कहानी को ही क्यों चुना?

जवाब: कहानी छोटी होती है इसलिये उसके पाठक अधिक होते हैं साथ ही कहानी हमारे मन में जल्दी उतर जाती है।

सवाल: मालती जी आप कहानियों के पात्र कहां से तलाशती हैं?

जवाब: अपने जीवन के अनुभव से, इर्द गिर्द से।

सवाल: आपकी ज्यादातर कहानियां पारिवारिक रिश्तों पर ही आधारित है। ऐसा क्यों?

जवाब: क्योंकि पारिवारिक, सामाजिक मूल्यों पर आधारित कहानियों घरेलू होने के कारण पाठकों को अपनी सी लगती हैं।

सवाल: पारिवारिक रिश्तों व अपनी सृजन यात्रा के बीच सामंजस्य कैसे बनाये रखा?

जवाब: मैंने अपने परिवार पर लेखन को कभी हावी नहीं होने दिया। मेरे पति स्व. सोमनाथ जोशी के प्रोत्साहन व सहयोग के कारण ही मैं अपनी लेखन यात्रा को जारी रख पाई हूं।

सवाल: आज के दौर के लेखन व उस दौर के लेखन में आप क्या अन्तर महसूस करती हैं?

जवाब: उस दौर का साहित्य शालीन व मर्यादित होता था पर आज का साहित्य ज्यादा बोल्ड हो रहा हैं। समय के अनुसार मान्यतायें बदल रही हैं। ऐसे में जो लोग देखेंगे वो ही आज साहित्य में परोसा जा रहा है।

सवाल: लेखक और पाठक के बीच रिश्ता?

जवाब: लेखक और पाठक के बीच बेहद आत्मीय रिश्ता होता है। पाठकों का स्नेह ही लेखक के लिये सबसे बड़ा पुरस्कार है।

सवाल: आप कहानियों में नारी मुक्ति, आधुनिकता की सीमायें कैसे तय करती हैं?

 जवाब: मैं नारी की स्वतंत्रता में तो विश्वास करती हूं पर स्वच्छंद नारी में नहीं।

सवाल: आप की कहानियों पर टी. वी. सीरियल भी बने हैं?

जवाब: मेरी कुछ कहानियां जया बच्चन के सात फेरे व गुलजार के किरदार धारावाहिक का हिस्सा रही हैं।

सवाल: मालती जी 89 वर्ष की उम्र के इस पड़ाव में भी साहित्य सृजन के लिये कहां से आती है आपके भीतर इतनी उर्जा और शक्ति?

जवाब: लिखना मेरी आदत है, पैशन है, लिखने से मुझे आत्मिक संतुष्टि मिलती है। जब मन करता है, तब ही मैं लिखती हूंं।

सवाल: लेखन के अलावा आपके अन्य शौक?

जवाब: मुझे खाना बनाने व खिलाने का शौक है। कुमार गंधर्व के निर्गुण पद सुनना मुझे बेहद पसंद है।

सवाल: पाठकों तक पहुंचने का कोई गूढ मंत्र?

जवाब: कहानी की भाषा सरल व सहज होनी चाहिये। क्लिष्ट व गूढ़ लिखो तो पाठक नहीं मिलते।
हिन्दी कहानियों के इतिहास में कथा कथन की परम्परा को शुरू करने का श्रेय आपको ही जाता है। कथा कथन मराठी की एक पुरातन विधा है कहानी की मौखिक रूप से प्रस्तुति करने की। कई बार सोशल मीडिया पर या किसी कार्यक्रम में मैं कहानियां सुनाती हूं। लोगों को लगता है कि मै किताब के पृष्ठों को पढ़ रही हूं। मुझे मेरी सारी कहानियां आज भी अक्षरश जुबानी याद है।

सवाल: आज के दौर में साहित्य पर बढता सोशल मीडिया का प्रभाव?

जवाब: हर पीढ़ी के साथ माध्यम तो बदलता है। आज इन्टरनेट के दौर में फेसबुक, वाट्सअप, ट्वीट, ब्लाग्स के जरिये सोशल मीडिया ने साहित्य प्रेमियों को पाठकों से जुड़ने का एक व्यापक मंच दिया हैं। आज खूब किताबें ,पत्र पत्रिकायें छप रही हैं, साहित्य गोष्ठियां हो रही हैं। पर लोगों में पढ़ने की आदत धीरे-धीरे कम होती जा रही है।

सवाल: गृहलक्ष्मी के पाठकों के लिये कोई संदेश?

जवाब: मेरा मानना है कि महिलायें चाहे तो वो एक साधारण,घरेलू स्त्री रहकर भी अपने विचारों को तराश सकती है। मुकाम हासिल कर सकती है। आज युवा पीढ़ी व बुजुर्गों में जनरेशन गेप बढ़ता जा रहा है। आपसी संवाद खत्म होते जा रहे है। ऐसे में परिवार में आपसी सामंजस्य, टूटते रिश्तों और बिखरते परिवारों को फिर से एक सूत्र में पिरोने का संदेश मैं अपनी कहानियों के जरिये पाठकों को देना चाहती हूं।