Papad Business
Papad Business : Lijjat Papad

Lijjat Papad मतलब दावतों की इज्जत‘ इस एक लाइन से लिज्जत ब्रांड की अहमियत पता चलती है। ब्रथडे हो या शादी की पार्टी, जब तक खाने के साथ पापड़ नहीं मिल जाते, दावत पूरी नहीं मानी जाती। वह भी पापड़ होनी चाहिए तो केवल लिज्जत के। भारत में ऐसा कोई घर नहीं होगा, जहां लिज्जत पापड़ ना आता हो। आखिर ऐसा क्या है, इस पापड़ में जो इसको इतना खास बनाता है।

आज हम इसी बात पर चर्चा करते हैं। सबसे पहले तो इसका जिंगल ही इसको खास बनाता है। यह 90 के दशक की बात है जब प्रचार करने के उतने अधिक माध्यम नहीं थे, तब इसके जिंगल ने इसके आधे मार्केट पर कब्जा कर लिया था। शायद आपने भी यह जिंगल सुना होगा-

चाय कॉफी के संग भाए, कर्रम कुर्रम – कुर्रम कर्रम
मेहमानों को खुश कर जाए, कर्रम कुर्रम – कुर्रम कर्रम
मजेदार, लज्जतदार, स्वाद स्वाद में लिज्जत – लिज्जत पापड़!

यह जिंगल पढ़कर आपको अपने बचपन की याद आ गई होगी। 90 के दशक का यह जिंगल उस समय हर किसी के जुबां पर चढ़ा हुआ था और इस जिंगल ने ही पापड़ के साधारण से दिखने वाले व्यापार को देशव्यापी व्यापार बना दिया। लेकिन क्या आपको इस साधारण से व्यापार के असाधारण बन जाने की कहानी मालूम है? अगर नहीं तो यह लेख पूरा पढ़ें क्योंकि, यह महिलाओं को सशक्त करने वाला ब्रांड है।

Lijjat Papad
7 Gujarati women started

Lijjat Papad : 7 गुजराती महिलाओं ने शुरू किया

केवल 80 रुपये का कर्ज लेकर 7 गुजराती महिलाओं ने लिज्जत पापड़ की शुरुआत की थी। आज लिज्जत पापड़ बनाने की फैक्ट्री में महिलाओं की संख्या 7 से बढ़कर 45 हजार हो गई है। कुछ महिलाएं घर की आर्थिक तंगी से तंग आकर नए काम की तलाश में थी तो कुछ महिलाओं को कुछ करने के जुनून ने एक साथ ला दिया और फिर लिज्जत पापड़ की शुरुआत एक छत से हुई। लेकिन आश्चर्य वाली बात और गर्व करने वाली बात यह है कि अब 80 रुपए का कर्ज 1600 करोड़ रुपए के टर्नओवर में बदल चुका है।

Lijjat Papad
Papad business started from the roof of ‘Lohana Niwas’

1959 में ‘लोहाना निवास’ की छत से शुरू हुआ पापड़ का व्यापार

यह 1959 के गर्मियों की बात है जब मुंबई के गिरगांव इलाके के लोहाना निवास में रहने वाली 7 महिलाएं शाम को छत पर इकट्ठा हुई। घर की आर्थिक तंगी के बारे में बात करते हुए कुछ काम शुरू करने तक पर बात पहुंची। अंत में तय हुआ कि वह मिलकर पापड़ बनाएंगी और बाजार में बेचेंगी। तब महिलाओं ने 80 रुपये का कर्ज लिया और बाजार जाकर पापड़ बनाने का सामान ले आईं। सभी महिलाओं ने पहले दिन पापड़ के 4 पैकेट बनाए जिसे पुरुषोत्तम दामोदर दत्तानी ने उनकी मदद करने के लिए गिरगांव के आनंदजी प्रेमजी स्टोर में बेच दिए।

पहले दिन 50 पैसे की हुई कमाई

पहले दिन 1 किलो पापड़ बिके जिससे 50 पैसे की कमाई हुई थी। अगले दिन 1 रुपये की कमाई हुई और फिर धीरे-धीरे कमाई बढ़ने लगी और पापड़ बनाने की मात्रा भी। अब इस छत में पापड़ बनाने वाली महिलाओं की संख्या भी बढ़ गई थी। अगले 3 से 4 महीनों में पापड़ बनाने के इस काम में 200 से ज्यादा महिलाएं शामिल हो चुकी थीं। पापड़ बनाने का व्यापार जल्द ही काफी बड़ा हो गया और वह छत छोटी पड़ने लगी। जिसके कारण वडाला में भी एक ब्रांच खोलनी पड़ी।
1959 का साल खत्म होते-होते 6 हजार रुपए के पापड़ की बिक्री हुई जो उस वक्त के हिसाब से काफी बड़ी रकम थी। फिर क्या था महिलाओं ने इस व्यापार को और अधिक गंभीरता से लेना शुरू किया और अन्य महिलाओं के सहयोग से इसे पूरे मुंबई में फैलाने की सोची। इस व्यापार की सबसे अच्छी बात यह रही की इससे महिलाओं को सशक्त होने का मौका मिल रहा था और महिलाएं एक-दूसरे का संबल बन रही थीं।

महिला सश्क्तिकरण का सबसे बड़ा उदारण

आज सरकार महिलाओं को सशक्त करने के लिए कई सारी योजनाएं लेकर आ रही है। कई एनजीओ महिलाओं को स्वावलंबी बनाने का काम कर रहे हैं लेकिन आज तक लिज्जत पापड़ जैसा सफलतम उदाहरण देखने को नहीं मिला। यह अपने तरह का सबसे नायाब उदाहरण तब भी था और अब भी है। क्योंकि इस व्यवसाय से जुड़ी सभी महिलाएं पढ़ी-लिखी नहीं थी और उनके पास रसोई के अलावा और कोई कौशल नहीं था। लेकिन इन महिलाओं ने अपने इकलौते कौशल को ही अपने स्वावलंबन की छड़ी बनाई और निकल पड़ी लंबे सफर में।

Lijjat Papad
Biggest example of women empowerment

कारोबार बढ़ने पर बनी को-ऑपरेटिव सोसायटी

धीरे-धीरे कारोबार बढ़ने लगा तो इन सात महिलाओं को समाजसेवी छगन बप्पा का साथ मिला। छगन बप्पा ने इनकी आर्थिक मदद करने के लिए कुछ पैसे दिए। तब इन महिलाओं ने इन पैसों का इस्तेमाल पापड़ की मार्केटिंग करने में नहीं बल्कि पापड़ की गुणवत्ता बढ़ाने में की। इसका असर पापड़ के मुनाफे में देखने को मिला। मुनाफा देख और महिलाओं ने भी इस व्यापार से जुड़ने की इच्छा जताई। तब इसके संस्थापकों ने इसे को-ऑपरेटिव सोसाइटी के तौर पर रजिस्टर करवाया। जिससे कि इस व्यापार का कोई मालिक नहीं है और इसे एक समूह द्वारा चलाया जाता है।

पूरे देश में 60 सेंटर हैं लिज्जत पापड़ के

सात महिलाओं के साथ शुरू हुए इस वेंचर से आज लगभग 45 हजार से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हैं। आज पूरे देश में लिज्जत पापड़ के 60 से ज्यादा सेंटर हैं। लेकिन इसकी सबसे अच्छी बात है कि हर सेंटर के पापड़ का स्वाद एक जैसा ही रहता है। इसके पीछे की वजह है- पापड़ को एक ही तरीके से तैयार करना।

Lijjat Papad
There are 60 centers of Lijjat Papad all over the country

पापड़ में पड़ती है अफगानिस्तान की हींग

पापड़ तैयार करने के लिए उड़द की दाल म्यांमार से, हींग अफगानिस्तान से और काली मिर्च केरल से ही मंगवाई जाती है। इन कच्चे माल से पापड़ बनाने का आटा हर सेंटर में तैयार किया जाता है और इसे गूंथे हुए आटे को महिलाओं तक पहुंचाया जाता है। फिर महिलाएं पापड़ बनाकर वापस सेंटर में जमा कर देती हैं। इस आने-जाने के काम के लिए मिनी बस रखी गई है। क्वालिटी एक जैसी रहे इसके लिए मेंबर्स अचानक से सेंटर की जांच करने के लिए पहुंच जाते हैं। मुंबई के एक लेबोरेटरी में पापड़ के टेस्ट की जांच की जाती है और हर सेंटर से आने वाले पापड़ की टेस्टिंग की जाती है। तो इस तरह से तैयार किया जाता है देश का सबसे स्वादिष्ट पापड़।

संस्था में महिलाएं एक दूसरे को कहती हैं ‘बहन’

संस्था में महिलाएं एक-दूसरे को‘बहन’ कहकर संबोधित करती हैं। कोई सर-मैम नहीं बोला जाता है। महिलाएं सुबह 4.30 बजे से अपना काम शुरू कर देती हैं। इस संस्था में 21 सदस्यीय केंद्रीय प्रबंध समिति पूरे संचालन के निगरानी का काम करती है। निगरानी समिति प्रत्येक महिलाओं की शारीरिक क्षमता का भी ध्यान रखती है और किसी पर भी अनावश्यक बोझ नहीं पड़े, इसका भी ख्याल रखती है।

जसवंती बेन को मिल चुका है पद्मश्री अवॉर्ड

लिज्जत पापड़ की संस्थापक सदस्या जसवंतीबेन को राष्ट्रपति भी पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित कर चुके हैं। उन्हें व्यापार और उद्योग श्रेणी में उनके विशिष्ट कार्य के लिए सम्मानित किया गया। यह लिज्जत पापड़ शुरू करने वाली सभी सदस्यों में एकमात्र जिंदा सदस्य हैं।

Lijjat Papad
Jaswanti Ben has received Padma Shri Award

महज 10 साल में जुड़ी थीं लिज्जत की प्रेसीडेंट इससे

वर्तमान में लिज्जत पापड़ संस्था की प्रेसिडेंट स्वाती रवींद्र पराड़कर है जो महज 10 साल की उम्र में इस संस्था से जुड़ गई थीं। इस उम्र में इनके पिता का देहांत हो गया। पिता के देहांत के बाद परिवार आर्थिक संकट में आ गया जिससे मां को पापड़ बनाने का काम करना पड़ा। स्वाती रोज स्कूल जाने से पहले और छुट्टियों में पापड़ बनाने में मां की मदद करती थीं। बाद में पढ़ाई खत्म करने के बाद लिज्जत को-ऑपरेटिव से जुड़ी और इसमें काम करने लगी। अब इसकी प्रेसिडेंट भी बन गई हैं।

बनने वाली है फिल्म

लिज्जत पापड़ की सफलता से बॉलीवुड भी मंत्रमुग्ध है और जल्द ही आशुतोष गोवारिकर इस पर फिल्म बनाने वाले हैं। इस फिल्म का नाम फिलहार कुर्रम-कुर्रम निश्चित किया गया है जिस में आगे जाकर बदलाव किए जा सकते हैं और नहीं भी। इसमें मुख्य भूमिका कियारा आडवाणी निभाएंगी। फिल्म का डायरेक्शन ग्लेन बैरेटो और अंकुश मोहला करेंगे।
दरअसल लिज्जत पापड़ केवल एक व्यापार नहीं है बल्कि यह कम पढ़ी-लिखी महिलाओं के खुद के पैरों में खड़े होने की कहानी है। लिज्जत पापड़ संस्था में काम करने वाली उषा जुवेकर का कहना है कि मैं इस संस्था में पिछले 15 साल से काम कर रही हूं और यहां हर एक महिला का योगदान काबिलेतारीफ है। अगर देश में हर व्यक्ति इतनी गंभीरता और ईमानदारी से अपने काम के लिए फिक्रमंद रहता जितना लिज्जत की महिलाएं करती हैं तो देश आज सफलता की नई इबारत लिख रहा होता।
तो इस तरह से 7 महिलाओं की आर्थिक तंगी ने देश की कई महिलाओं को आर्थिक तंगी से निकालने का काम किया और अब भी कई महिलाओं की मदद कर रही है। ऐसी महिलाओं के ज़ज्बे को सलाम।

Leave a comment