शरीर में पंच तत्वों की महत्ता: Importance of Five Elements
Importance of Five Elements

Importance Of Five Elements: हमारा यह पंचभौतिक शरीर पंच महाभूतों से निर्मित है। हमारे शरीर में मिट्टी, जल, वायु, अग्नि, आकाश इन पंच महाभूतों का एक समन्वित स्वरूप है। इस शरीर में आधी मिट्टी है। इसलिए हम पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में बंधे रहते हैं। मछली में आधा जल है, इसलिए वह जल में ही निवास करती है। पक्षियों में आधा आकाश है, इसलिए वे आकाश में उड़ते हैं, जिसमें जो तत्त्व अधिक होता है वह उसी के साथ आकर्षित रहता है। यह स्थूल शरीर जिस दिन जलता है, ये पांच महाभूत अपने-अपने अंशों में जाकर विलय कर जाते हैं। इन पंचमहाभूतों के पांच देवता हैं, जिनका सीधा संबंध हमारे शरीर के पांच महाभूतों से है।

यथा- आकाशस्याघिपो विष्णु: वह्निच्श्रापिमहेश्वरी।
वायो: सूर्य: क्षितेरीश: जीवनस्य गणाधिप:।।

अर्थात् शरीर में व्याप्त जो आकाश है उसका सीधा संबंध विष्णु से है। हमारे पेट में जो जठराग्नि है, उसकी अधिष्ठात्री देवी मां भुवनेश्वरी हैं। इस शरीर में दस प्रकार की वायु हैं- प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नागर, कीकर देवदत्त, धनंजय। मरने के बाद जो शरीर को फुला देता है उसे धनंजय वायु कहते हैं। दसों प्रकार के वायु का अलग-अलग कार्य है। वायु तत्त्व के देवता भगवान सूर्य हैं। पृथ्वी के देवता भगवान शिव हैं तथा जल के देवता भगवान गणेश हैं। विष्णु, शिव, सूर्य, भगवती एवं गणेश जी का इस शरीर से नित्य संबंध है। इस शरीर में पांच देवियों श्री (लक्ष्मी), ह्यी (लज्जा), धी (बुद्धि) शांति एवं कीर्ति का नित्य निवास है। इस प्रकार यह शरीर पांच देवता, पांच देवियां एवं एक आत्मा कुल ग्यारह देवताओं का मंदिर है। शरीरधारी प्राणी जब इस शरीर से अन्याय करता है। किसी की संपत्ति लेने के लिए हाथ बढ़ाता है, उस समय शरीर में रहने वाले पांच देवता एवं पांच देवियां निकलकर चले जाते हैं। हमारे शास्त्र ने इसको बतलाया है।

देहीति वचनं श्रुत्वा देहस्थापंचदेवता।
सद्य: निर्गत्य गच्छन्ति धी, ह्यी, श्री, शान्ति, कीर्तय:।।

जब ये देवी एवं देवता इस शरीर में रहते हैं तो यह शरीर श्री युक्त, लज्जा युक्त एवं बुद्धि से संपन्न शांति एवं कीर्ति के साथ सर्वगुण संपन्न रहता है। इसी अवस्था को गोस्वामी जी ने लिखा है कि-

बड़े भाग्य मानुष तन पावा।
सुर दुर्लभ सद्ग्रन्थन् गावा।

जब इस शरीर से ये सभी देवी-देवता निकलकर चले जाते हैं, तो मात्र यह पंच महाभूतों का एक ढांचा बच जाता है। जिसके लिए गोस्वामी जी ने कहा है-

क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा।
पंच रचित यह अधम शरीरा।।

देवी-देवताओं के अभाव में यह मात्र अधम शरीर रह जाता है, जिसमें लक्ष्मी, लज्जा, बुद्धि, शांति व कीर्ति नहीं होती है। इनके अभाव में दुखों को भोगता है। यह है आपका आध्यात्मिक स्थूल शरीर जो देवालय के रूप में होता है। यह शरीर भोग के लिए नहीं योग के लिए होता है। यह शरीर वासना के लिए नहीं उपासना के लिए होता है। परंतु जब इस शरीर से विषय रूपी विष ग्रहण करने लगते हैं तो संपूर्ण जीवन कष्टमय हो जाता है। दुर्गा सप्तशती के पंच अध्याय में बहुत स्पष्टï बतया गया है-

या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

जो देवी शरीर धारियों के अंदर चेतना रूप में, लक्ष्मी रूप में, लज्जा रूप में, छाया रूप में, विद्या रूप में, बुद्धि रूप में स्थित है उसको नमस्कार है। अर्थात् यह शरीर अनंत शक्तियों का केंद्र है। जो व्यक्ति आध्यात्मिक प्रक्रिया से इन शक्तियों को जागृत कर लेता है वही प्रात: स्मरणीय, पूजनीय बनता है।
व्यक्ति को पंच भौतिक, नश्वर शरीर के द्वारा किए गए सत्कर्मों का फल ही सुख एवं इसके द्वारा किए गए दुष्कर्मों का फल ही दु:ख देता है। हमारे पूर्वज ऋषियों ने ऊं खं ब्रह्ïमेति इस वेदमंत्र की व्याख्या करते हुए बतलाया है कि ‘ख ब्रह्ïम का स्वरूप है। ब्रह्ïम का अंश ही जीव है। इसलिए प्रत्येक जीव (खं) है। प्राणी शुद्ध, बुद्ध, चैतन्य (खं) के रूप में इस धराधाम पर आता है। सांसारिक प्रपंचों में पड़कर सन्मार्ग से भटकने के कारण दुष्कर्म कर बैठता है। ऐसी परिस्थिति में (खं) के आगे दुष्कर्म का (दु) जुड़ जाता है। फिर प्राणी (दुख) बन जाता है। वही जब सुकर्म करता है तो (खं) के आगे (सु) जुड़ जाता है और (सुख) बन जाता है। वस्तुत: जीव शुद्ध, बुद्ध, चैतन्य है परंतु अपने ही उपार्जित कर्मों से सुख एवं दु:ख का भागी बनता है।