hum kisi se kam nahi badalav ki rah dikhati mahilayen
hum kisi se kam nahi badalav ki rah dikhati mahilayen

Women Leading the Way: अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाने वाली ये महिलाएं नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन रही हैं। उनकी यात्रा संघर्ष, साहस और आत्मनिर्भरता का जीता-जागता उदाहरण है, जो साबित करता है कि सच्ची लगन और मेहनत से हर सपना साकार किया जा सकता है।

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल से निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीतने वाली 41 साल की प्रतिभा थपलियाल आज सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि प्रेरणा की मिसाल है। साल 2018 में, जब उनके थायरॉइड का स्तर 50 को छू लिया, तब डॉक्टर ने सलाह दी कि उन्हें फिटनेस पर ध्यान देना चाहिए। इसी के बाद उन्होंने अपने पति भूपेश, के साथ जिम जाना शुरू किया और कुछ ही महीनों में 30 किलो वजन कम कर लिया। लेकिन ये तो बस शुरुआत थी! प्रतिभा की कड़ी मेहनत और समर्पण ने उन्हें उत्तराखंड की पहली प्रोफेशनल महिला बॉडीबिल्डर बना दिया।
पिछले साल सिक्किम में आयोजित अपनी पहली बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिता में उन्होंने चौथा स्थान हासिल किया। हालांकि, इस सफर की राह आसान नहीं थी। जब उन्होंने अपनी दूसरी प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल
जीता, तो वही लोग जिन्होंने कभी उनका मजाक उड़ाया था, अब उन्हें सराहने लगे। प्रतिभा के इस सफर में उनके पति और कोच, भूपेश का भी बड़ा योगदान रहा। वे खुद एक फिटनेस उत्साही हैं और उन्होंने ही
सबसे पहले प्रतिभा की काबिलियत को पहचाना। बचपन से खेलों में रुचि रखने वाली प्रतिभा स्कूल और कॉलेज के दिनों में वॉलीबॉल और क्रिकेट खेल चुकी थीं और यहां तक कि उत्तराखंड की वॉलीबॉल टीम
की कप्तान भी रही थीं। शायद यही वजह थी कि जब भूपेश ने उन्हें बॉडीबिल्डिंग अपनाने की सलाह दी, तो यह उनके लिए एक स्वाभाविक कदम बन गया। सिक्किम में पोडियम फिनिश न कर पाने की कसक को उन्होंने अपनी प्रेरणा बना लिया। सात-सात घंटे जिम में पसीना बहाया, सख्त डाइट फॉलो की और अपनी मेहनत सेदूसरी ही प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। अब उनकी नजरें एशियन और वर्ल्ड चैंपियनशिप पर है, जहां वे अपने देश और राज्य का नाम रोशन करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।

प्रतिभा थपलियाल
(बॉडी बिल्डिंग चैंपियन)

उर्मिला आशेर, जिन्हें प्यार से ‘गुज्जू बेन’ कहा जाता है, एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने साबित कर दिया कि उम्र केवल एक संख्या है और आत्मविश्वास, परिश्रम और संकल्प से जीवन को नए सिरे से बनाया जा सकता है। 75 वर्ष की उम्र में, जब अधिकतर लोग आराम को चुनते हैं, उॢमला ने अपने हुनर और दृढ़ निश्चय से ‘गुज्जू बेन ना नाश्ता’ नामक गुजराती स्नैक्स बिजनेस खड़ा किया और एक सफल उद्यमी, टेडएक्स स्पीकर, सेलिब्रिटी
और यूट्यूबर बन गईं। उनकी कुकिंग स्किल्स और पारंपरिक गुजराती स्वाद ने उन्हें मास्टरशेफ के मंच पर
पहुंचाया, जहां उन्होंने अपने अनुभव और पाक-कला से जजों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
18 वर्ष की उम्र में शादी और 23 की उम्र तक तीन बच्चों की मां बनने के बाद उर्मिला का जीवन पारंपरिक गुजराती गृहिणी की तरह बीत रहा था। लेकिन नियति ने उनके सामने कई कठिनाइयां खड़ी कर दीं। उन्होंने अपने तीनों बच्चों को खो दिया और उनके पोते हर्ष ही उनके जीवन का सहारा बचे। 2019 में, एक सड़क दुर्घटना में हर्ष ने अपना निचला होंठ खो दिया, जिसके बाद वह अवसाद में चला गया और घर से बाहर निकलना बंद कर दिया। परिवार पहले ही आर्थिक संकट से गुजर रहा था और फिर कोरोना महामारी के दौरान हर्ष का व्यापार भी ठप हो गया। इस कठिन समय में आर्थिक ने हार नहीं मानी और अपने कुकिंग के हुनर को
व्यवसाय में बदलने का फैसला किया।
2020 में, उर्मिला और हर्ष ने मिलकर गुजराती नाश्ते का व्यवसाय शुरू किया। उर्मिला के बनाए अचार, थेपला, ढोकला, खाखरा और फराली स्नैक्स लोगों को बेहद पसंद आए और उनकी मेहनत रंग लाने लगी। उन्होंने शुरुआत में सोशल मीडिया का सहारा लिया, स्थानीय हाउसिंग सोसायटियों में ऑर्डर सह्रश्वलाई किए और जल्द ही उनका व्यापार मुंबई के चारनी रोड में प्रसिद्ध हो गया। आज उनका बिजनेस लाखों की कमाई
कर रहा है और उन्होंने अपनी खुद की किचन टीम भी बना ली है।

उर्मिला आशेर ‘गुज्जू बेन’
(यूट्यूबर)

मुंबई की लोकल ट्रेनों में लगभग एक दशक तक भीख मांगने के बाद, जोया थॉमस लोबो आज भारत की पहली ट्रांसजेंडर फोटो जर्नलिस्ट के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं। उनका यह सफर संघर्ष, साहस और सपनों को सच करने की अद्भुत मिसाल है।
महिम के कपाड़ बाजार में पली-बढ़ी जोया ने 11 साल की उम्र में खुद को बाकी लड़को से अलग महसूस किया। 17 की होते-होते उनकी गुरु सलमा ने उन्हें ट्रांसजेंडर के रूप में अपनाया। समाज और परिवार के विरोध के बीच, गुजारे के लिए उन्हें लोकल ट्रेनों में भीख मांगनी पड़ी। 2018 में एक फिल्म ‘हिजड़ा: शाप या वरदान’ में काम करने के बाद उन्हें पहचान मिली। उन्होंने एक मीडिया एजेंसी में रिपोॄटग शुरू की और अपनी
बचत से 2019 में सेकंड-हैंड कैमरा खरीदा। 2020 में बांद्रा स्टेशन पर प्रवासी मजदूरों के प्रदर्शन की तस्वीरें खींचकर उन्होंने बड़े मीडिया हाउस का ध्यान खींचा। यूरोपियन प्रेसफोटो एजेंसी के दिव्यकांत सोलंकी से
फोटो जर्नलिज्म की ट्रेनिंग लेकर वे एक सशक्त पत्रकार बनीं।

आज जोया फ्रीलांस जर्नलिस्ट के रूप में काम कर रही हैं और चाहती हैं कि ट्रांसजेंडर बच्चों को समाज में सम्मान और अवसर मिले। वे अपनी तस्वीरों के जरिए समाज का असली चेहरा दिखाने और बदलाव लाने का
सपना देखती हैं। उनका सफर साबित करता है कि सच्ची लगन और मेहनत से कोई भी मुश्किल राह आसान की जा सकती है।

Women Leading the Way
Transgender

जोया थॉमस लोबो
(ट्रांसजेंडर फोटो जर्नलिस्ट)

भारत में पान की संस्कृति सदियों पुरानी है, लेकिन इस व्यवसाय में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम देखने को मिलती है। इसी धारणा को तोड़ते हुए, अनिता लालवानी सुराना, जिन्हें सोशल मीडिया पर ‘अनु द पानवाली’ के नाम से जाना जाता है, एक नई मिसाल कायम कर रही हैं। अनिता लालवानी सुराना न केवल एक पान विक्रेता हैं, बल्कि एक सफल उद्यमी भी हैं। वह ‘यामूज पंचायत’ की सीईओ हैं, जो भारत का पहला पान पार्लर माना जाता है। उन्होंने पान को पारंपरिक स्वादों से आगे ले जाकर एक नया रूप दिया है, जिससे वह सोशल मीडिया पर बेहद लोकप्रिय हो गई हैं। एक महिला के रूप में इस उद्योग में प्रवेश करना अपने आप में एक चुनौती थी, क्योंकि यह व्यवसाय अब तक पुरुषों का क्षेत्र माना जाता था। लेकिन उन्होंने अपने जुनून और इनोवेटिव अप्रोच के दम पर इसे एक ब्रांड बना दिया। शुरुआत में लोग हैरान थे कि एक महिला पान बेच रही है, लेकिन जब उन्होंने अनिता के बनाए अनोखे पान चखे, तो उनकी दुकान चर्चा का विषय बन गई।
अनिता पारंपरिक पान को एक नया ट्विस्ट देने के लिए जानी जाती हैं। उनके द्वारा तैयार किए गए नवाब गोल्ड पान, जैस्मिन पान, लोटस बिस्कॉफ पान, नारियल पान, एवोकाडो पान और ‘5 स्टार पान’ जैसे अनोखे फ्लेवर्स लोगों को आकर्षित कर रहे हैं।

अनिता ललवानी सुराना
( पान विक्रेता )