आत्मनिर्भरता-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Aatamnirbharta

Hindi Kahani: आजकल एक शब्द बोलचाल की भाषा में बहुत सुनने मिलता है सेल्फ डिपेंडेंट यानी आत्मनिर्भर यानी किसी के भरोसे ना रहना। आत्मनिर्भर होने का शाब्दिक अर्थ तो यही है कि हम अपनी आवश्यकता की समस्त गतिविधियों को खुद ही करें। महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में इस शब्द का अर्थ जाने क्यों मुझे थोड़ा भ्रमित करता है। 

पहले औरतों सिर्फ रसोई तक सीमित थी तो कहा गया कि यदि वे नौकरी कर लेंगी तो आत्मनिर्भर हो जाएगी। महिलाओं ने नौकरी भी कर ली यहां गौर करने वाली बात यह है की नौकरी तो कर ली किंतु गृह कार्य से मुक्ति नहीं मिली। दो नामों की सवारी करते करते वह महिला जो प्राकृतिक रूप से ही थोड़ी कोमल होती है और वही कोमलता शायद उसकी एक शक्ति भी है। यहां मेरी बात को गलत अर्थ में ना लिया जाए किंतु यह एक सच है की नारी का सौंदर्य उसका एक शास्त्र होता है । किंतु इस आत्मनिर्भरता के चक्कर में स्त्री घर और बाहर दोनों जगह पर पीसने लगी और वह तथाकथित आत्मनिर्भरता उसे हासिल ना हुई। बल्कि अपने स्वभाव की स्वाभाविक कोमलता को भी खो दिया उसने कुछ हद तक। अब यह कहा जाने लगा की स्त्री गाड़ी चलाना सीख ले तो वह आत्मनिर्भर हो जाएगी भई वह गाड़ी भी चलने लगी।

स्त्री अकेले कहीं आने जाने लगे तो वह आत्मनिर्भर हो जाएगी । अब कहा जा रहा है की स्त्री घर की मरम्मत के काम घर की पेंटिंग ,स्क्रूड्राइवर चलाना, पंखा उतारना यह सब भी करने लगे तो वह आत्मनिर्भर हो जाएगी। किंतु मुझे लगता है की आत्मनिर्भरता वह आकाश कुसुम है जिसको पाने के लिए स्त्री जितना हाथ बढ़ती जा रही है वह उतना ही उससे दूर होता जा रहा है। आत्मनिर्भरता वह सोच है जिसे विकसित किया जाना चाहिए। यानी वह स्त्री अपने घर के पुरुष की आज्ञा या मदत के बिना भी अपना जीवन चला सकती है। अब इसका यह अर्थ नही है की वह दुनिया के किसी पुरुष की कोई मदद नहीं लेगी।

जैसे की पुरुष कभी खाना बनाने के लिए किचन का काम नही सीखते हैं। वह कोई टिफिन का मेड लगाते हैं। जो उनका यह काम कर देती है। यानी वह किसी एक स्त्री के भरोसे नहीं रहते हैं। किंतु इसी एक पूरे वर्ग से मदद ना लेना तो कतई तर्क संगत नहीं लगता है। हमने कभी किसी पुरुष को घर का काम करते नहीं देखा । लेकिन इस से उनकी आत्मनिर्भरता कभी बाधित नहीं होती हैl जब भी घर में मां , बीवी या बहन या जो भी स्त्री उनके घर में यह काम करती है वह नहीं होती है तो वह यह सब काम के लिए या तो मेड रखते है या खुद करते है। किंतु वह किसी भी सिचुएशन में असहाय नहीं दिखाते खुद को। शायद यही मूल मंत्र है आत्म निर्भरता का।

ठीक वैसे ही स्त्री को भी अगर कोई काम ऐसा है जो उस घर के पुरुष करते हैं और वह नहीं है तो या तो खुद कर ले अब चुकी स्त्रीयों के पास पहले से ही बहुत सारे काम होते है तो बेहतर होगा वह किसी नौकर , ड्राइवर, इलेक्ट्रीशियन इत्यादि से इन कामों को करवा ले। हर काम खुद सीख के खुद ही करना ये कोई समाधान नहीं है। याद रखिए कोई भी आप को आत्मनिर्भर होने का तगमा नहीं देगा। ये एक मानसिक अवस्था है । आप सबसे पहले अपने को मानसिक रूप से आत्म निर्भर बनाएं। बाकी हर काम खुद ही करना ये तो बिलकुल भी व्यवहारिक नहीं है।

निसंकोच पैसा खर्च करें। आखिर आप पैसा कमाती क्यों है? आप को जिस दिन शॉपिंग जाना है और पतिदेव को छुट्टी नहीं है तो अपना प्रोग्राम अगले हफ्ते पर टालना ये मानसिक गुलामी है। अगर आज जाना जरूरी है और उनको छुट्टी नहीं है तो आप या तो खुद ड्राइव कर के चली जाएं या कोई कैब कर ले या ड्राइवर हायर करें।

बस आप का काम उनके बिना भी हो जाता है यह सोच ही आप को आत्म निर्भर बनाती हैं। अगर आप नौकरी करती है तो उस पैसे को स्व विवेक से खर्च करना आना ही सही मायनो में आत्म निर्भरता कहलाता है। अगर ड्राइविंग आती है तो मुझे कहां जाना ये फैसला लेना भी आना चाहिए ये आत्म निर्भरता है। याद रखे पति आप को बता कर जाते हैं एका और आप उनसे पूछ कर जाती है। बहुत बारीक सा अंतर है। जिस दिन आप इस बात को समझ जाएगी आप काफी हद तक आत्म निर्भरता को समझ जाएगी।

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