काली हल्दी की फसल और औषधीय उपयोग
काली हल्दी की फसल को लोग मुख्य रूप से औषधीय उपयोग के लिए ग्रो करते हैं और इसका उपयोग तरह तरह की दवाओं आदि के बनाने में उपयोग होता है।
Grow Black Turmeric: हल्दी की उपयोगिता तो हम सभी लोग जानते हैं। यह कई तरह से हमारे लिए उपयोगी होती है। लेकिन काली हल्दी की उपयोगिता हल्दी से भी कहीं ज़्यादा है। काली हल्दी की फसल को लोग मुख्य रूप से औषधीय उपयोग के लिए ग्रो करते हैं और इसका उपयोग तरह तरह की दवाओं आदि के बनाने में उपयोग होता है। काली हल्दी को कुछ क्षेत्रों में नरकचूर नाम से भी जाना जाता है।
काली हल्दी को रोग नाशक माना जाता है यह सबसे ज़्यादा सौन्दर्य प्रसाधन बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। काली हल्दी का वानस्पतिक नाम कुरकुमा, केसीया है अंग्रेजी में इसे ब्लैक जे डोरी नाम से जाना जाता है। काली हल्दी का पौधा तकरीबन 30-60 सेंटीमीटर तक ऊँचा होता है, जिसकी पत्तियां आकार में चौड़ी और गोलाकार होती है। इसकी ऊपरी सतह पर गोल-गोल नीले और बैंगनी रंग की शिरा बनी होती है।
काली हल्दी के पौधे पत्तियों के रूप में वृद्धि करते हैं। इसकी पत्तियों का आकार केले की पत्तियों के बराबर होता है। काली हल्दी के पौधों के विकास के लिए अधिक वर्षा या अधिक गर्म जलवायु अनुकूल होती है। इसकी फलक को मुख्य रूप से मध्य और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में उगाया जाता है।
काली हल्दी की बाज़ार में माँग बहुत ज़्यादा होने की वजह से इसकी बिक्री अच्छे मूल्य पर हो जाती है। यही असल वजह है जिसकी वजह से किसान भाई काली हल्दी की खेती करना पसंद करते है। इस लेख के माध्यम से हम आपको यह बताने की कोशिश करेंगे कि काली हल्दी की खेती कैसे होती है।
उपयुक्त मिट्टी जलवायु और तापमान

काली हल्दी की खेती आप किसी भी सामान्य उपजाऊ भूमि में कर सकते हैं। बस यह ध्यान रखें कि वह भूमि जलभराव वाली नहीं होनी चाहिए। इसकी खेती करते हुए इस बात का भी ध्यान रखें कि भूमि का पीएच मान 5-7 के बीच में होना चाहिए। इसकी अच्छी फसल अथवा पैदावार के लिए समशीतोष्ण और नम जलवायु की आवश्यकता होती है। मौसम सही नहीं हुआ तो इसकी ग्रोथ प्रभावित होती है। काली हल्दी के पौधे अधिक गर्म जलवायु में झुलस जाते हैं, जिसकी वजह से पौधे का विकास पूरी तरह से रुक अथवा अवरुद्ध हो जाता है। लेकिन सर्दियों और बारिश का मौसम इसके वृद्धि के लिए अच्छा माना जाता है।
जब भी इसकी खेती के बारे में विचार बनाए ये सुनिश्चित कर लें कि उस जगह का तापमान सामान्य तापमान हो, क्योंकि काली हल्दी के कंदो को अंकुरित होने के लिए 20 से 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। एक आकलन के मुताबिक़ काली हल्दी के पौधों की वृद्धि के समय न्यूनतम तापमान 10 डिग्री तथा अधिकतम 38 डिग्री तापमान होनी चाहिए।
फसल के लिए खेत की तैयारी

काली हल्दी की फसल के लिए खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए। जिसके तहत सबसे पहला काम खेत की अच्छी तरह से जुताई आती है। अच्छी और गहरी जुताई से पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं और खर पतवार की समस्या से काफ़ी हद तक निजात मिल जाती है। एक बार अच्छी तरह से जुताई करने के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही छोड़ देना चाहिए ताकि खेत की मिट्टी में अच्छी तरह से धूप लग जाए। मिट्टी की उर्वरा शक्ति बरक़रार रहे इसके लिए आप अपने खेत में गोबर की खाद अथवा वर्मी कॉम्पोस्ट जैसी जैविक खाद का उपयोग कर सकते हैं। जिससे मिट्टी फ़सल के काफ़ी अनुकूल हो जाएगी और उसमें मौजूद सभी तरह के पोषक तत्व सक्रिय हो जाएँगे।
काली हल्दी की खेती को औषधीय रूप में किया जाता है जिसकी वजह से इसकी फसल के लिए जैविक खाद को अधिक उपयोगी माना जाता है। यदि आप रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो उन्हें खेत की आख़िरी जुताई के समय प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 50 किलो एन.पी.के. की मात्रा को खेत में छिड़क देना चाहिए।
खेत की मिट्टी में खाद को डालने के बाद दो से तीन तिरछी जुताई कर देनी चाहिए ताकि खाद अच्छी तरह से मिट्टी में मिल जाए। इसके बाद खेत में पानी लगाकर पेलव कर देना चाहिए और पलेव के बाद खेत की मिट्टी जब ऊपर से सूख जाए, तो रोटावेटर लगाकर जुताई कर देनी चाहिए। इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी। अंत में खेत में पाटा लगा कर खेत को समतल कर देना चाहिए ताकि खेत में जलभराव की समस्या नहीं हो।
रोपाई का सही समय और तरीका

काली हल्दी के पौधों की रोपाई आप दो विधियों के द्वारा कर सकते हैं। पहला कंद के रूप में और दूसरा पौधों के रूप में इसकी रोपाई की जाती है। कंदो के रूप में रोपाई करने के लिए एक हेक्टेयर के खेत के लिए तक़रीबन 20 किवंटल कंदो की आवश्यकता होती है। कंदो की रोपाई से पहले उन्हें बाविस्टीन से उपचारित कर लेना चाहिए। फिर उन्हें खेत में लगाना चाहिए। कंदो की रोपाई के समय इस बात का भी ध्यान रखे की कंद स्वस्थ हो।
पौधे के रूप में रोपाई के लिए खेत में मेड़ो को पहले तैयार कर लिया जाता है। प्रत्येक मेड़ के बीच में एक से डेढ़ फ़ीट की दूरी रखी जाती है। साथ ही इस बात का भी ख़्याल रखा जाता है कि प्रत्येक पौधों के मध्य 25 से 30 सीएम की दूरी अवश्य हो। काली हल्दी के कंदो की रोपाई के लिए बारिश का मौसम सबसे ज्यादा उपयुक्त माना जाता है, बारिश का मौसम पौधों को वृद्धि करने के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करता है।
काली हल्दी के पौधों की सिंचाई

काली हल्दी के पौधों को बारिश के मौसम में लगाना चाहिए क्योंकि इनकी अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। नाम भूमि में रोपाई के तुरंत बाद इसकी पहली सिंचाई कर देनी चाहिए। गर्मियों के मौसम में हेली के पौधों को 10 से 12 में सिंचाई की आवश्यकता होती है।
रोग एवं उनकी रोकथाम

काली हल्दी के पौधों में रोग लगाने की सम्भावना नहीं के बराबर होती है। किन्तु रोग बिल्कुल भी नहीं लगते ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है। कुछ कीट ऐसे होते हैं जो इसके पौधों में लगकर हानि पहुंचते है। बॉरडाक्स या फिर नील तेल जैसे जैविक कीटनाशकों का छिड़काव करके आप इस रोग की रोकथाम कर सकते हैं।
