Gandhi Jayanti 2022
Gandhi Jayanti 2022

Gandhi Jayanti 2023: महात्मा गांधी भारत के राष्ट्रपिता कहे जाते हैं, हमारे देश की मुद्रा पर उनकी छवि उनकी महत्ता का पूरे विश्व में बखान करती है। विदेशों में बड़े-बड़े दिग्गज फिर चाहे वे आज के ओबामा हो या कल के क्रांतिकारी रह चुके मंडेला महात्मा गांधी और गांधीवाद के समर्थक माने जाते है। स्वराज और विकेन्द्रीकरण की परिकल्पना गांव-गांव तक पहुंचाने वाले गांधी जी बड़ी ही छोटी उम्र में विवाह के बंधन में बंध चुके थे। यही कारण था कि वे पति-पत्नी कम और दोस्त ज्यादा रहे। आज गांधी जयंती के मौके पर हम आपको उनके विवाह और कस्तूरबा गांधी से उनके खट्टे-मिट्टी संबंधों के बारे में बताने जा रहे हैं।

गांधी को लोग ‘बापू’ तो कस्तूरबा को लोग ‘बा’ कहकर संबोधित करते हैं। उनका वैवाहिक जीवन वैसे तो सुखी ही रहा पर जीवन में आने वाले उतार-चढ़ावों ने कई बार झगड़ों को भी जन्म दिया। गांधी ने अपनी किताब ‘गांधी और सत्य के प्रयोग में’ जितनी सच्चाई से अपने जीवन की परतों को खोला है वैसा हर कोई शायद ही कर पाए। गांधी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि एक बार ऐसा क्षण आया था जब उन्होंने अपनी अर्धांगिनी यानी कस्तूरबा को घर से निकाल ही दिया था।

जब बुरी तरह से झगड़े बा और बापू

Gandhi Jayanti 2023
Mahatma Gandhi and Kasturba Gandhi

साल 1897 में जब गांधी अपने परिवार के साथ दक्षिण अफ्रीका में रह रहे थे उस वक्त एक ऐसा क्षण आया था। दरअसल गांधी किसी अछूत को अपने घर पर नौकर रखने पर राजी नहीं थे। उन्होंने कस्तूरबा से घर के सभी काम-काज निपटाने के लिए कहा। परन्तु कस्तूरबा के विचार इस संबंध में गांधी से मेल नहीं खाते थे। गांधी ने एक बार कस्तूरबा को अपने मेहमानों का टॉयलेट साफ करने के लिए मजबूर कर दिया। यह व्यवहार कस्तूरबा को बिलकुल पसंद नहीं आया और वे गांधी पर नाराज होने लगी। इसपर दोनों के बीच खूब झगड़ा हुआ और गांधी अपना आपा खोते हुए उन्हें घर से निकालने लगे। कुछ ही देर बाद गांधी को उनकी गलती का एहसास हुआ।

गांधी ने इस वाक्या पर आगे लिखा है कि ”ये ठीक उसी तरह था, जैसे मुझे अंग्रेज अधिकारी ने ट्रेन से धक्का देकर बाहर निकाल फेंका था। कस्तूरबा की आंखों से आंसू बहे जा रहे थे। वो चिल्ला रही थी कि तुम्हें थोड़ी भी लाज शरम है? तुम अपनेआप को इतना कैसे भूल गए? मैं कहां जाऊंगी? तुम सोचते हो कि तुम्हारी पत्नी रहते हुए मैं सिर्फ तुम्हारा ध्यान रखने और तुम्हारी ठोकरें खाने के लिए हूं? भगवान के लिए अपना व्यवहार ठीक करो और दरवाजा को बंद करो। इस तरह यहां तमाशा मत खड़ा करो।”

समाज को सीख देता है ये किस्सा

ये वो क्षण था जब गांधी को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उन्हें पत्नी का सही मायनों में अर्थ समझ में आया। महात्मा गांधी के जीवन का यह किस्सा समाज को एक बहुत बड़ी सीख देता है। यह सिर्फ किस्सा भर नहीं बल्कि एक सन्देश है कि वैवाहिक जीवन में पति और पत्नी नहीं बल्कि पति-पत्नी हैं जो एक दूसरे के पूरक हैं। किसी एक के बिना जीवन की गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती है।

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