महात्मा गांधी के बचपन से जुड़े कुछ प्रेरक प्रसंग: Gandhi Jayanti 2023 Special
Gandhi Jayanti Special

Gandhi Jayanti 2023 Special: आप सभी अपना जन्मदिन खूब उत्साह से मनाते होंगे। 2 अक्तूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्मदिन है। पूरे विश्व में 2 अक्टूबर को गांधी जयंती मनाई जाती है। गांधी जी का जन्म इसी खास दिन पर हुआ था, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत से देश को आजाद कराने वाले स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसा की नीतियों का अनुपालन किया था और समस्त देशवासियों को आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया था। इस साल हम उनका 154वां जन्मदिवस मना रहे हैं।

लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि बचपन में गांधी जी अन्य बच्चों की ही तरह भोले-भाले, पढ़ाई करने से कतराने वाले लेकिन सादगी पसंद और दूसरोंकी मदद करने वाले थे। आइये उनके बचपन की कुछ रोचक और अविस्मरणीय प्रसंगों के बारे में आपको बताएं, जिन्हें पढ़कर आप चौंक जाएंगे। ये प्रसंग ‘‘गांधी जी की आत्मकथा‘‘ से लिए गए हैं।

औसत दर्जे के स्टूडेंट रहे गांधी जी

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शुरू में गाधी जी की पढ़ने में कम ही रुचि थी। उन्होंने पोरबंदर से प्राइमरी और राजकोट से हाई स्कूल की परीक्षा पास की थी। प्राइमरी में मैथ्स की टेबल भी पूरी नहीं सीखी थीं। उस समय उन्हें पाठशाला की पुस्तकों के अलावा कुछ और पढ़ने का शौक नहीं था। पाठ याद रखना ही उनका ध्येय रहता था। लेकिन बाद में उन्होंने अपनी मेहनत से पांचवी और छठी क्लास क्रमशः चार और दस रुपये प्रतिमाह की स्काॅलरशिप भी हासिल की। हाई स्कूल करने के बाद अपनी मां के जोर देने पर ही वे कानून की पढ़ाई करने लंदन गए।

शर्मीले स्वभाव और सादगी पसंद थे बापू

बच्चे अक्सर दूसरे बच्चों से जल्दी मिक्स नहीं होते हैं। गांधी जी भी ऐसे ही थे। अपने काम से काम रखने वाले, यहां तक कि वे स्कूल भी बेल बजने के नियत समय पर पहुंचते थे और छुट्टी होने पर सीधे घर आते थे। उनके मन में यह भय रहता था कि उनकी फिजीक और सादगी देखकर दूसरे बच्चे उनका मजाक न उड़ाएं।

राइटिंग अच्छी नहीं थी

बचपन में गांधी जी अच्छी राइटिंग हो, इसे महत्व नहीं देते थे और न ही राइटिंग सुधारने की कोशिश करते थे। लेकिन इसका अहसास उन्हें लंदन वकालत करने जाने पर हुआ और इसका उन्हें हमेशा पछतावा रहा। उनका मानना है कि बच्चों को बचपन से ही अपनी राइटिंग पर ध्यान देना चाहिए। इसके लिए उन्हें पहले ड्राइंग सिखानी चाहिए, तभी वे आसानी से सुंदर अक्षर लिख सकते हैं।

डांट खाई पर नकल नहीं की

उन्हें किसी भी कीमत पर नकल करना पसंद नहीं था। जब वे हाई स्कूल के पहले वर्ष में थे, तब एजुकेशन इंस्पेक्टर इंस्पेक्शन के लिए आए। उन्होंने बच्चों को अंग्रेजी के पांच शब्द लिखने को दिए। इनमें से चार शब्द तो गांधी जी को आते थे, पांचवां उन्होंने गलत लिखा। उनके टीचर ने उन्हे दूसरे बच्चे की नकल कर ठीक करने के लिए इशारा भी किया, लेकिन गांधी जी ने ऐसा नहीं किया। बाद में इसके लिए टीचर ने उन्हें डांटा भी, गांधी जी पर कोई असर नहीं हुआ। दूसरे की काॅपी में देख कर लिखना उन्हें चोरी करना लगा। जिसका परिणाम यह हुआ कि पूरी क्लास एक वही थे जिनकी गलती हुई थी। लेकिन गांधी जी को इसका कोई अफसोस नहीं था।

मिली सच की राह

उन्हें बचपन में कहानियां पढ़ने, नाटक देखने का बहुत शौक था। हाई स्कूल में राजा हरिश्चंद्र और श्रवणकुमार के नाटकों का गांधी जी पर गहरा असर हुआ। उन्होंने मानव सेवा करने और झूठ न बोलने का संकल्प लिया जिसे उन्होंने पूरी जिंदगी अच्छी तरह निभाया। बाद में उनके द्वारा चलाए जाने वाले सत्याग्रह आंदोलन और अहिंसा का मार्ग इसकी मिसाल है। दूसरों की मदद करने का जज्बा तो उनमें कूट-कूट कर भरा था। एक बार ट्रेन पर चढ़ते वक्त ज्यादा भीड़ होने के कारण उनके एक पैर का जूता निकल कर ट्रेक पर गिर गया था। उन्होंने तुरंत दूसरा जूता भी उतार कर फेंक दिया ताकि जिस किसी को मिले, काम तो आ सके। हालांकि बाद में उन्हें नंगे पैर घर जाना पड़ा था

गलत संगति से चोरी करने पर पिता से मांगी माफी

गांधी जी जब 13 साल के थे, तब गलत आदतों वाले दोस्तों की संगति में पड़ गए। उन्हें पैसे भी देने पड़ते थे कभी-कभी वो चोरी भी करते थे। नौबत यहां तक आ गई कि उन्होंने पैसों का हिसाब करने के लिए अपने भाई का सोने का कड़ा चुराना पड़ा। लेकिन वे यह बात पचा नहीं पाए। उन्होंने अपने पिता को चिट्ठी लिख कर माफी मांगी और आगे से ऐसा न करने का वचन भी दिया।

अंधेरे से डरते थे गांधीजी

अमूमन सभी बच्चे अंधेरे में जाने से डरते हैं। बचपन में गांधी जी भी डरते थे। वो मानते थे कि कोई भूत आ जाएगा और पकड़ कर ले जाएगा। उनकी दाई मां ने उन्हें ऐसी स्थिति में ‘राम नाम जपने‘ के लिए समझाया। बस तब से गांधी जी न कभी डरे, न डगमगाए, बस आगे बढ़ते गए। अपने अंतिम समय में भी उनके मुंह पर ‘हे राम‘ शब्द थे।

क्रिकेट ही नहीं, फुटबाॅल प्रेमी भी थे गांधी

स्कूल में क्रिकेट खेलना अनिवार्य होने के बावजूद शर्मीले स्वभाव के कारण गांधी जी को क्रिकेट में रुचि नहीं थी। फिर भी उन्होंने फोरकाॅर्नर्स और फाइवकाॅर्नर्स मैच खेले थे। लेकिन बाद में दक्षिण अफ्रीका में वकालत की पढ़ाई के दौरान वे फुटबाॅल प्रेमी हो गए। इसके पीछे उद्देश्य चाहे जो भी रहा हो-समाज में मौजूद नस्लीय या रंगभेद से आम जनता को परिचित कराना। लेकिन अच्छे खिलाड़ी न होने पर भी उन्होंने फुटबाॅल में काफी रुचि दिखाई। यहां तक कि उन्होंने डरबन, प्रिटोरिया और जोहानसबर्ग में फुटबाॅल के तीन क्लब भी बनाए जिसे उन्होंने ‘पैसिव रेसिस्टर्स साॅकर क्लब‘ नाम दिया।