Chappan Bhog for Krishna: भगवान कृष्ण का नाम अधरों पर आते ही माखन का स्वाद खुद ब खुद मिसरी की तरह मुंह में घुल जाता है। माखनचोर के नाम से पुकारे जाने वाले कान्हा को माता यशोदा के हाथ से बना केवल माखन ही पसंद नहीं था, बल्कि उनके हाथों से बने हर पकवान को बाल गोपाल बड़े चाव से खाते थे। बाल्यकाल में अपनी अलग अलग लीलाओं से लोगों के मन को मोहने वाले कृष्ण कन्हैया को जन्माष्टमी के मौके छप्पन भोग का प्रसाद अर्पित किया जाता है। देशभर में धूमधाम से मनाए जाने वाले जन्माष्टमी के इस पर्व पर भगवान को नए वस्त्रों, पगड़ी और बांसुरी से सजाकर झूले पर सुशोभित किया जाता है और श्रद्धालु उन्हें झूला झुलाते है और उनका आर्शीवाद लेते हैं। उसके बाद कान्हा को भोग लगाने की प्रक्रिया आरंभ होती है और उन्हें उनके पसंदीदा व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। यूं तो जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के पूजन और प्रसाद को लेकर कई विधान हैं। मगर कुछ लोग श्रीकृष्ण को छप्पन भोग लगाकर प्रसाद के रूप में बाद में भक्तजनों में पकवानों को बांट देते हैं। आइए, जानते हैं श्रीकृष्ण को क्यों लगाया जाता है छप्पन भोग………..
पंजीरी के प्रसाद का महत्व
भगवान कृष्ण को छप्पन भोग लगाने की परंपरा तो यूं ही सदियों से चली आ रही है। इसके अलावा जन्माष्टमी पर विशेष रूप से धनिए की पंजीरी को बनाकर उसका भोग लगाने की भी एक खास परंपरा है, जो हर साल कृष्ण जन्मोत्सव पर तैयार की जाती है। ऐसी मान्यता है कि रात्रि में पित्त और कफ में वात और कफ के दोषों से बचने के लिए धनिए की पंजीरी को प्रसाद के रूप से लड्डू गोपाल को चढ़ाया जाता है। इसके अलावा धनिए का सेवन करने से व्रत का संकल्प भी सुरक्षित माना जाता है। सभी मंदिरों में कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर पंजीरी का प्रसाद और चरणामृत भक्तों में बांटा जाता है।
छप्पन भोग से जुड़ी पौराणिक कथा
माता यशोदा की गोद में पले बढ़े नन्हे बाल गोपाल का बचपन गोकुल की गलियों में गुज़रा। उनकी भोली सूरत और बाल लीलाओं से हर कोई उनकी ओर आकर्षित हो जाता था। माता यशोदा अपने कान्हा के लाड लड़ाती और उन्हें दिन में आठ बार भोजन करवाती थीं। एक पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार देवराज इंद्र ने भारी वर्षा से गोकुल वासियों के प्रति अपना रोष व्यक्त किया, जिससे हर दिशा जलमग्न हो गई। चारों ओर त्राहि-त्राहि हो गई। देवराज इंद्र के रुष्ट स्वभाव के कारण आई प्रलय से गोकुलवासियों को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था। उस वक्त श्रीकृष्ण ने लगातार एक सप्ताह तक अन्न और जल को ग्रहण नहीं किया था। जब वर्षा समाप्त हुई, तो उस वक्त कान्हा ने बृजवासियों को गोवर्धन पर्वत से नीचे उतर जाने के लिए कहा। ऐसी स्थिति में आठ पहर भोजन करने वाले कान्हा को बिना खाए सात दिन तक रहना पड़ा, जो माता यशोदा के लिए बेहद कष्टदायक था।

एक अन्य कथा के मुताबिक गोपियां भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाना चाहती थी, जिसके लिए उन्होंने खूब जप तप किए और यमुना में एक माह तक स्नान कर मां कत्यायिनी की आराधना भी की। ऐसे में गोपियों की सच्ची श्रद्धा को देखकर भगवान कृष्ण ने उनकी मनोकामना को पूर्ण किया, जिसके बाद उन्होंने कान्हा को छप्पन भोग लगाया। छप्पन भोग में उन्हीं पकवानों और खाद्य सामग्री को रखा जाता है, जो कान्हा को अति प्रिय है। इसमें फलों और अनाज के अलावा सूखे मेवे, पेय पदार्थ, नमकीन और अचार जैसी चीजे़ं भी शामिल होती हैं।
56 भोग को लेकर एक अन्य प्रकार की पौराणिक मान्यता भी प्रचलित है, जिसके अनुरूप कृष्ण जी और राधारानी जी गौलोक में जिस दिव्य कमल पर विराजते है, उन पंखुडियों का कुल योग भी 56 ही है। दरअसल, वो कमल तीन परतों से मिलकर बनाया गया है। परत दर परत इस पुष्प में पंखुड़ियों की संख्या बढ़ती घटती है। जहां पहली कतार में आठ पंखुड़ियां विराजमान हैं, तो दूसरी परत में सोलह पंखुडियां देखने को मिलती है। वहीं तीसरी और आखिरी कतार में एक साथ 32 पंखुडियों को देखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण प्रत्येक पंखुड़ी के मध्य विराजमान रहते हैं। इसी के चलते उन्हें छप्पन व्यंजनों का भोग लगाया जाता है।
छप्पन भोग में क्या-क्या है शामिल ?
भगवान कृष्ण को लगाए जाने वाले छप्पन भोग में भांति भांति के व्यंजनों को रखा जाता है। इसमें उन्हीं व्यंजनों को सम्मिलित किया जाता है, जो कान्हा को प्रिय हैं। इसमें विशेषतौर से भात, दाल, चटनी, कढ़ी, दही शाक की कढ़ी, सिखरन, शरबत, बाटी, मुरब्बा, त्रिकोण, बड़ा, मठरी, फेनी, पूरी, खजला, घेवर, मालपुआ, चोला, जलेबी, मेसू, रसगुल्ला, चन्द्रकला, महारायता, थूली, लौंगपूरी, खुरमा, दलिया, परिखा, सुफलाढय़ा, दधिरूप, लड्डू, साग, अधानौ अचार, मोठ, खीर, दही, गाय का घी, मक्खन, मलाई, रबड़ी, पापड़, सीरा, लसिका, सुवत, मोहन, सुपारी, इलायची, फल, तांबूल, मोहन भोग, लवण, कषाय, मधुर, तिक्त, कटु और अम्ल शामिल हैं।
क्या है छप्पन भोग का रहस्य?
छप्पन भोग छ रसों के मेल से तैयार होन वाला थाल है, जिसमें मीठे, खट्टे, तीखे, कड़वे, कसैले और अम्ल सभी सम्मिलित हैं। इन सभी रसों को जोड़कर छप्पन भोग तैयार किया जाता है। इन सभी रसों से तैयार किये जाने वाले छप्पन भोग को भगवान श्रीकृष्ण को भोग लगाया जाता है।
जब प्रभु को भोग लगाने की प्रक्रिया आरंभ होती है, तो सर्वप्रथम श्रीकृष्ण को दूध अर्पित किया जाता है। इसके बाद एक क्रम के आधार पर बेसन आधारित और नमकीन खाना और अंत में मिठाई, ड्राई फ्रूट्स और इलाइची को भोग में रखा जाता है। छप्पन भोग को बांके बिहारी को अर्पित करने के बाद ही भक्तजनों और पुरोहितों में वितरित कर दिया जाता है।
