वास्तु पर पर्यावरण का प्रभाव: Environment Vastu
Environment Vastu

Environment Vastu Tips: वास्तु शास्त्र में दिशा व विभिन्न कोणों के अलावा पर्यावरण की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। हमारे आसपास का वातावरण भी वास्तु दोष उत्पन्न कर सकता है। अत: सुखी खुशहाल जीवन के लिए आवश्यक है कि हम पर्यावरण व वास्तु के संबंध को भली प्रकार समझें। इसीलिए यहां हम आपको बता रहे हैं पर्यावरण के कारण होने वाले वास्तु दोष व उनके उपाय के बारे में।

पर्यावरण शब्द दो शब्दों परि+आवरण से मिलकर बना है जिसका अर्थ है- अपने चारों ओर का वातावरण। वास्तु शास्त्र में भूखंड या भवन के पर्यावरण का विस्तृत विवेचन किया गया है। वास्तुशास्त्र में बताया गया है कि भूखंड या भवन के आसपास कैसा वातावरण होना चाहिए और कैसा नहीं होना चाहिए। पर्यावरण के अंतर्गत पेड़-पौधे, ऊंचे भवन, धर्मस्थान, नदी-नाले, जलाशय, पोखर, कारखाने, अस्पताल, अशुभ वृक्ष एवं पौधे तथा शराबघर आदि आते हैं जो भवन या भूखंड के आसपास हों। अत: इनसे संबंधित बातों पर पूर्णतया ध्यान देना आवश्यक है ताकि भवन या भूखंड वास्तु दोष से मुक्त रहे।

Environment Vastu
Environment Vastu Shastra
  • भवन के आसपास तिराहा, सरकारी शौचालय तथा दिशावेध उत्पन्न करने वाले खंभे नहीं होने चाहिए। इनसे वास्तु दोष उत्पन्न हो जाता है।
  • भूखंड के आसपास पेड़ों का झुरमुट, दीमक और चींटियों की बांबी, मधुमक्खियों के छत्ते तथा सियार, गीदड़ और जंगली जानवरों के टीले आदि नहीं होने चाहिए। ठहरे हुए पानी का तालाब, पोखर और बदबूदार-सड़ांध मारने वाले पानी से युक्त जलाशय या नाला आदि भवन या भूखंड से एकाध किमी दूर तक नहीं होना चाहिए।
  • महानगरों में हवाई अड्डे, रेल की पटरी के आसपास, रासायनिक कारखानों के निकट, शराब बनाने की भट्टी तथा लोहा-लक्कड़ या सीमेंट की फैक्टरी के आसपास भी आवास हेतु भवन-निर्माण करना ठीक नहीं है।
  • ऊसर भूमि या टीलों से युक्त भूमि पर भवन का निर्माण नहीं करना चाहिए क्योंकि यह जगह उन्नति में बाधक होती है।
  • भूखंड के दक्षिण दिशा की ओर जलस्रोत, नाला, नदी या नहर का बहाव नहीं होना चाहिए।
  • भूखंड के ईशान कोण की ओर नदी, नहर या तालाब भूमि से निचले स्तर पर होना शुभ होता है। अगर भूमि के नैऋर्त्य कोण में ऊंचे भवन या पहाड़ हों तो शुभ होता है।
  • भवन के पूर्व और ईशान कोण में ऊंची चट्टानें या इमारतें, घना जंगल, पहाड़-टीले आदि शुभ नहीं होते।
  • भूखंड के बाहर इतनी दूरी पर वृक्ष लगाया जाए कि सुबह नौ बजे से लेकर तीसरे पहर तीन बजे तक वृक्ष की छाया भवन पर न पड़े। पूर्व दिशा में बरगद का वृक्ष, दक्षिण दिशा में गूलर का वृक्ष, पश्चिम दिशा में पीपल का वृक्ष तथा उत्तर दिशा में बेर का वृक्ष लगाना शुभ माना गया है। किंतु अनेक लोग लॉन में लगे वृक्ष को अशुभ मानते हैं।
  • कुछ विद्वानों का कहना है कि पीपल या बरगद का पेड़ भूखंड के ठीक सामने तथा 200 मीटर के दायरे में नहीं होना चाहिए। पीपल और बड़ के पेड़ों पर भूत-प्रेतों का वास होता है। अगर इन पेड़ों को न काटा जाए तो कुछ वर्षों के उपरांत इसकी जड़ें आसपास की भूमि को अंदर-ही-अंदर जकड़ लेती हैं और भूखंड के तल से ये जड़ें भवन के अंदर आ जाती हैं।
  • भूखंड के पास कांटे वाले वृक्ष, झाड़ी तथा दूध वाले वृक्ष नहीं लगाने चाहिए। यदि पुराना मकान खरीदा गया है और वहां पहले से वृक्ष लगे हैं तो उन्हें कटवा देना उपयुक्त है। यदि किसी कारण वे नहीं कटवाए जा सकते तो उन वृक्षों और भूखंड के बीच में शुभ फलदायक शाल, अशोक, नागकेसर, मौलश्री अथवा कटहल आदि के वृक्ष लगवा देना चाहिए जिससे पूर्व वृक्षों का अशुभ प्रभाव समाप्त किया जा सके तथा वास्तु दोष उत्पन्न न हो। भूखंड में श्रीपर्णी, कुटकी, सागौन, सर्ज आदि के वृक्ष लगाना शुभ फलदायक होता है। इसके अतिरिक्त शीशम, शाल, चंदन, पतंग, लोथ, अर्जुन, ताल और कदंब आदि के वृक्ष भी शुभ माने गए हैं।
  • भूखंड के आसपास लंबे ताड़, देवदार या शीशम आदि के पेड़ भी नहीं होने चाहिए। अक्सर पेड़ों पर बिजली गिरने का भय रहता है। जब किसी पेड़ पर बिजली गिरती है तो उसके आसपास के भवन में दरार आदि पड़ने से क्षति हो सकती है।
  • घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए। यह कृमिनाशक, दूषित वायु को शुद्ध करने वाला तथा एक प्रकार की औषधि का भी काम करता है। यह 50 हाथ तक वायुमंडल को शुद्ध करती है। रविवार के दिन सूर्य संयोग से दूषित किरणें तुलसी में जन्म लेती हैं, इसलिए रविवार के दिन तुलसी का स्पर्श एवं संसर्ग निषेध माना गया है।
  • भूखंड या भवन के आसपास धर्मस्थान नहीं होना चाहिए। यदि धर्मस्थान कुछ दूरी पर हो तो भी उस पर लगे ध्वज की छाया भवन आदि पर नहीं पड़नी चाहिए।
  • भूखंड के निकट श्मशान, अस्पताल, शल्यक्रिया गृह, विद्युत सब स्टेशन आदि भी होना हानिकारक है।