Vastu for Health: वास्तु समाधान द्वारा न केवल घर की सुख-समृद्धि में वृद्धि की जा सकती है अपितु इसके द्वारा कई रोगों से बचाव भी संभव है। कैसे करें वास्तु सुधार द्वारा रोगों से बचाव? जानने के लिए पढ़ें यह लेख।
वा स्तु शब्द, ‘वस्तु’ शब्द का आधार है, जिसका अर्थ है ‘जो है’ अथवा ‘जिसकी सत्ता है’ वही वस्तु है। इसलिए वस्तु से संबंधित शास्त्र को ही वास्तुशास्त्र कहा जाता है। वास्तु का संस्कृत में शाब्दिक अर्थ है’मनुष्य तथा देवों का निवास स्थान।’
वास्तुशास्त्र का कार्य केवल भवन निर्माण तक ही सीमित नहीं है बल्कि मंदिरों के विस्तार, शहरी
आवास योजनाओं, सड़कों, रेलवे लाइनों, नहरों आदि के निर्माण तक भी है।
दक्षिण भारत के अधिकांश मंदिर जैसे तिरुपति में भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर, मदुराई में मीनाक्षी मंदिर, पुट्ïटा श्री में साई बाबा का भव्य स्थान तथा मध्य प्रदेश में उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर वास्तु पर आधारित है। राजस्थान का गुलाबी शहर जयपुर जो सन्ï 1772 में महाराज सवाई जय सिंह
द्वितीय द्वारा स्थापित किया गया था, वास्तु के सिद्धान्तों द्वारा ही निर्मित है जो वास्तुशास्त्र का उत्कृष्टï नमूना है।
वास्तु पंच महातत्त्व पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश तत्त्वों के समान रूप से किए गए सम्मिश्रण का नाम है। इसके समानुपातिक मिश्रण से बायो- इलैक्ट्रिक मैग्नेटिक एनर्जी अर्थात् चुम्बकीय तरंगों के प्रभाव की उत्पत्ति होती है, जिससे मनुष्य को उत्तम स्वास्थ्य, धन और ऐश्वर्य की उपलब्धि होती है। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी के सभी सजीव व निर्जीव पदार्थों पर अपना प्रभाव
रखती है। पृथ्वी तत्त्व से ही जीवन का प्रारंभ होता है। इसलिए पृथ्वी को मां की संज्ञा दी गई है। वही समस्त जीवों व निर्जीवों की जननी है।
भवन निर्माण करते समय भूमि पूजन का वास्तविक उद्देश्य यही है। पर्यावरण और वायु मंडल से
बाहर की अनन्य शक्तियों का भी पृथ्वी से संबंध है। संपूर्ण सौर मंडल में पृथ्वी ग्रह पर ही जीवन है। पृथ्वी में स्पर्श, ध्वनि, रूप, रस के अतिरिक्त गन्ध के विशेष गुण विद्यमान हैं।
वास्तु में जल एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। जल के बिना जीवन नहीं है। शुद्ध जल के कई सात्विक गुण हैं। संकल्प लेते समय अग्नि और जल को ही साक्षी माना जाता है। जल मानव जीवन में नवचेतना का संचार करता है। वास्तु के अनुसार घर में जल स्थान पूर्व दिशा में होना चाहिए।

इसका निष्कासन सदैव ईशान दिशा में होना चाहिए। इसी तरह पानी का, नल, जल संग्रह
तथा छत की टंकी उचित दिशा में होनी चाहिए। सूर्य ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। सूर्य से ही हमें
ऊष्णता प्राप्त होती है। ऊष्णता अग्नि का एक रूप है।
अग्नि में तेज का विशेष गुण होता है। अग्नि जीवन का अंतिम व चिरंतन सत्य है। अग्नि की ऊर्जा घर में सूर्य प्रकाश से प्राप्त होती है। घर में खिड़कियों की ऐसी समुचित व्यवस्था होनी चाहिए ताकि सुबह को सूर्य की शुद्ध व स्वच्छ किरणें पूरे मकान में फैल जाएं। इसीलिए घर में पूर्व दिशा खुली होनी चाहिए। वायु तत्त्व से प्राणी में पौरुष एवं चेतना जागृत होती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन के ईशान कोने में अत्यन्त मंगलकारी अल्ट्रा वायलेट किरणें आती रहती हैं जो मानव जीवन के लिए
कल्याणकारी होती हैं। यदि इस कोने में गंदगी रहेगी तो कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन तथा अन्य आवश्यक गैसें उन लौकिक किरणों को दूषित कर देंगी इसलिए ईशान को साफ रखना चाहिए
तथा वायु संचरण के लिए उत्तर दिशा खुली होनी चाहिए।
प्रत्येक घर में रोशनदान तथा खिड़कियों द्वारा Cross Ventilation की व्यवस्था होनी चाहिए। आकाश को हम आसमान भी कहते हैं जो एक मूल तत्त्व है, जिसमें ‘शब्द’ की उपलब्धि होती है। आकाश अनन्त है, असीम है और अगम्य है। दीवारों को ऊंचा रखने से व्यक्ति को मकान में आकाश तत्त्व की उपलब्धि होती है। उदाहरण के तौर पर मंदिर, गुरुद्वारे के गुम्बज एवं मस्जिद की मेहराबें आकाश शक्ति का प्रतीक हैं। मकान की दीवारें छोटी होने से व्यक्ति के शरीर में आकाश तत्त्व का विकास रुक जाता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार आकाश का भवन में उचित स्थान रखना चाहिए। वास्तुशास्त्र का पंच महाभूतों से गहरा संबंध है, इन पंच तत्त्वों को मकान में उचित स्थान देकर व्यक्ति अपने जीवन में खुशहाली तथा रोगों से छुटकारा पा सकता है।
वास्तु में पंच तत्त्वों का विशेष महत्त्व है। यदि पंच तत्त्वों में संतुलन है, तत्त्वों को ध्यान में रखकर भवन का निर्माण हुआ होगा तो इसमें रहने वाले व्यक्ति सुखी, समृद्धिशाली तथा रोग मुक्त होंगे। प्राचीन काल में वास्तु शास्त्र के अनुसार व्यक्ति अपने घर का निर्माण करते थे, जिससे वे स्वस्थ, सुखी और दीर्घायु होते थे। आज के युग में व्यक्ति के जीवन में तनाव, घुटन, अशान्ति तथा रोगों का मुख्य कारण वास्तुशास्त्र के नियमों से हटना भी है। वास्तुशास्त्र के नियमानुसार हम अपने जीवन को सुखमय तथा रोगों से छुटकारा पा सकते हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार निर्माण के समय इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
1.मुख्य भवन के बीच में पूरब का भाग अन्य दिशाओं में स्थित भागों की अपेक्षा अधिक खाली होना चाहिए। इससे धन और वंश में वृद्धि होती है तथा यह पुत्र की उन्नति में बहुत सहायक होता है।
2.भवन में नल ईशान कोण (पूरब- उत्तर) में होना शुभ फल प्रदान करता है।
3.भूखंड का ढाल पूर्व एवं उत्तर दिशा में होना चाहिए। इससे घर में सुख-शान्ति बनी रहती है। रोगों से छुटकारा मिलता है, रहने वालों की उन्नति होती है।

4.भवन में जल का निकास पूर्व दिशा में होने से पुरुषों का स्वास्थ्य ठीक रहता है। यदि कोई बीमारी है तो शीघ्र ठीक हो जाती है।
5.यदि ईशान में शौचालय हो तो यह बहुत ही अनिष्टïकारी है। उस घर का वंश आगे नहीं बढ़ता है। कपूत संतान पैदा होती है, जिस कारण घर-परिवार नष्टï हो जाता है।
6.बीमार व्यक्तियों की दवाइयों की शीशियां हमेशा ईशान कोण में रखें। दवाई लेते समय, पानी पीते समय रोगी का मुंह ईशान कोण की ओर होना चाहिए। इसका शुभ परिणाम होता है।
7.कोर्ट केस की फाइल हमेशा पूर्व दिशा अथवा ईशान कोण में रखनी चाहिए। इससे विजय प्राप्त होती है।
8.भवन के सामने पूर्व दिशा में बनाए जाने वाले बरामदे या पार्टिका की छत पूर्व दिशा की ओर झुकी होनी चाहिए। इससे पुरुषों का स्वास्थ्य उत्तम रहता है। इनके कार्यों से यश फैलता है। समाज में मान-सम्मान मिलता है।
9.यदि उत्तर दिशा में नलकूप या नल है तो घर की लक्ष्मी दूसरों के हाथों चली जाएगी और गृह स्वामी कंगाल हो जाएगा।
10.यदि किसी मकान में जल या जल की पश्चिम से होकर निकासी की व्यवस्था है तो गृहस्वामी लम्बी बीमारी का शिकार हो जाता है।
11.यदि भवन के पूर्व दिशा का भाग अन्य दिशाओं की अपेक्षा ऊंचा है तो व्यापार में हानि, बच्चों के स्वास्थ्य में गिरावट तथा मंदबुद्धि संतानें पैदा होंगी।
12.यदि भवन में पूर्वी-उत्तरी भाग में बिना कोई रिक्त स्थान छोड़े घर का निर्माण हो गया है तो उस परिवार में लड़के कम पैदा होंगे या होने वाली संतान विकलांग होगी।
13.यदि भवन का मुख्य द्वार आग्नेय (पूरब-दक्षिण) में बन गया है तो गृह स्वामी कर्जदार हो जाता है। उसे सदा मुकदमेबाजी, चोरी और अग्नि से भय बना रहेगा।
14.यदि पूर्वी भाग विशेषकर ईशान कोण में कूड़ा-कचरा, टीले, पत्थर आदि रखे हैं तो गृहस्वामी के धन की हानि होगी तथा संतान सुयोग्य नहीं होगी, वह सदैव बीमार रहेगी। ईशान कोण के शुभ तथा अशुभ फल सीधे गृहस्वामी और उसकी संतान पर पड़ते हैं। अत: ईशान कोण किसी भी दशा में अन्य दिशाओं की अपेक्षा ऊंचा न हो इसका ध्यान रखें।
15.घर में प्रयोग किया गया जल, घर को धोने के बाद जल, वर्षा आदि का जल ईशान कोण के रास्ते से बाहर निकले तो वंश वृद्धि होती है। समाज में मान-सम्मान होता है। संतान निरोग होती
है।
16.ईशान कोण में रसोई होने से गृह कलह रहेगा और आर्थिक हानि उठानी होगी। ईशान कोण में शौचालय होने से परिवार के सभी सदस्य बीमार रहेंगे, आपस में झगड़ा होगा, सुख-शान्ति का
अभाव रहेगा।
17.उत्तरमुखी भवन का उत्तरी भाग ऊंचा होने से आर्थिक हानि होती है। और उस घर की स्त्रियां अस्वस्थ रहती हैं।
18.यदि उत्तरमुखी भवन में पूर्व दिशा में टीले अथवा ऊंचे मकान बने हों तो गृहस्वामी को आर्थिक हानि होती है।
19.भूखंड के पश्चिम दिशा के दरवाजे का मुख नैऋर्त्य कोण (पश्चिम-दक्षिण) में होने पर भयंकर रोग, अकाल मृत्यु एवं आर्थिक हानि की संभावना होती है।
20.यदि घर में प्रयोग किया गया जल अथवा वर्षा का जल पश्चिम से होकर बाहर निकले तो गृह स्वामी को घातक बिमारियां उत्पन्न हो जाती हैं।
21.नैऋर्त्य मुखी भूखंड के अशुभ प्रभाव के रूप में आकस्मिक मृत्यु, हत्या, आत्महत्या, प्राकृतिक विपदा हो जाती है।
22.भवन का नैऋर्त्य कोण में स्थित भाग ऊंचा हो अथवा भवन के नैऋर्त्य कोण में ऊंचे वृक्ष हों तो शुभ फल मिलता है। यदि इस भाग में गोबर का ढेर, पत्थर के टीले आदि भारी चीजें रखी हों तो गृह स्वामी को धन लाभ होगा तथा स्वास्थ्य सदैव ठीक रहेगा।
23.यदि नैऋर्त्य कोण अन्य कोणों से नीचा होगा तो गृह स्वामी भयंकर बिमारियों का शिकार हो सकता है। इस बीमारी में घर का संपूर्ण धन लग सकता है। इसी प्रकार इस कोण में खिड़की का
होना अशुभ होता है।
24.यदि घर के नैऋर्त्य में खाली जगह है तो गृह स्वामी बीमार रहेगा, कष्टï उठाता रहेगा। नैऋर्त्य कोण सदैव भारी रखना चाहिए। नैऋर्त्य दिशा में यदि रसोई है तो पति-पत्नी में रोज की कलह
होगी।
25.भूखंड में आग्नेय कोण (पूरबदक्षिण्ा) में दरवाजा होने से शत्रु भय, अग्नि भय तथा चोर का भय बना रहता है। इसी प्रकार दक्षिणी आग्नेय कोण में द्वार होने से असाध्य रोग घर के सदस्यों
में बने रहते हैं।
26.गृह स्वामी का शयन कक्ष वायव्य कोण में होना उत्तम और स्वास्थ्य वर्धक होता है।
27.यदि घर में कोई व्यक्ति कई दिनों से बीमार है तो उसे नैऋर्त्य कोण में
सुलाएं , इससे लाभ मिलेगा।
28.गृहस्थ के घर पर किसी भी तरह के पीपल या बड़ वृक्ष की छाया नहीं पड़नी चाहिए। इससे धन की हानि, रोग, कलह के उत्पन्न होने का भय रहता है।
