क्या आपको पता है शिव जी के मस्तक पर चंद्रमा के विराजने का कारण? जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा: Lord Shiva Katha
Lord Shiva Katha

Lord Shiva Katha: शिव जी को देवों का देव कहा जाता है। भक्त उन्हें कई नामों से जानते से है, जैसे शंकर, महाकाल, आदिदेव, किरात, शंकर, चन्द्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय, नीलकण्ठ, महाशिव, उमापति आदि। हिन्दू धर्म में शिव का एक विशेष स्थान है। देश भर में उनकी पूजा की जाती है। शिवलिंग के रूप में शिव को पूजा जाता है। सभी देवी-देवताओं में भगवान शिव को सबसे ज्यादा भोला माना जाता है यानी जिन्हें आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। मगर उनका रौद्र संपूर्ण सृष्टि का विनाश भी कर सकता है।

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हिन्दू शास्त्रों के अनुसार शिव का ध्यान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, और उन्हें आदि गुरु का दर्जा भी दिया गया है। शिव का ध्यान करते समय उन्हें ध्यान मुद्रा में, जटा-मुकुट, गंगाधार, चंद्रमौली रूप में पूजा जाता है। शिव के भक्त होने के लिए बस उनकी भक्ति और पूजा में सहयोग करना ही काफी है, क्योंकि वे भोले बाबा हैं और भक्तों की प्रति हमेशा उनकी कृपा रहती हैं। शिव जी के गले में सांपों की माला, सिर पर गंगा और मस्तक पर चंद्रमा हमेशा विराजमान रहते है। शिव पुराण में बताया गया है कि आखिर क्यों शिव जी के मस्तक पर चंद्रमा विराजते हैं:

पौराणिक कथाएं

समुद्र मंथन

शिव जी के चंद्र धारण करने को लेकर हमारे ग्रंथो में कई पौराणिक कथाएं हैं। वहीं एक कथा शिव पुराण में दी गई है। शिव पुराण के अनुसार, देव और असुर दोनों अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे। हालाँकि इस समुद्र मंथन से अमृत के साथ, हलाहल नामक जहर भी समुद्र से निकला था। इस विष की विनाशकारी शक्ति से डरकर देवता और असुर सहायता के लिए भगवान शिव की शरण में पहुंचे। क्यूंकि भगवान शिव ही इसे नष्ट कर सकते थे। शिव ने सभी प्राणियों के प्रति अपनी करुणा में, जहर पी लिया।

मगर, शिव ने उसे निगलने के बजाय अपने कण्ठ में रख लिया था। जिसकी वजह से उन्हें “नीलकंठ” (नीले गले वाला) नाम मिला। विष की विनाशकारी शक्ति से भगवान शिव को अत्यधिक पीड़ा हुई। विष के प्रभाव से शिव जी का शरीर अत्यधिक गर्म होने लगा था। इस मौके पर चंद्र सहित अन्य देवताओं ने शिव जी से प्रार्थना की कि वह अपने शीश यानी सिर पर चंद्र को धारण करें। जिसकी वजह से उनके शरीर में शीतलता बनी रहे। क्यूंकि

विष की विनाशकारी शक्ति से भगवान शिव को अत्यधिक पीड़ा हुई। इसके असर को कम करने के लिए और दुनिया की रक्षा के लिए शिव ने तांडव, ब्रह्मांडीय नृत्य किया था। शिव के साथ देवताओं ने भी अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाये। इसी घटना का सम्मान करने और भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए भक्त पूरी रात जागते हैं, प्रार्थनाओं और अनुष्ठानों में लगे रहते हैं। चंद्रमा को बहुत शीतल माना जाता है। इसीलिए देवताओं की विनती पर शिवजी ने चंद्रमा को अपने शीश या मस्तक पर धारण कर लिया।

चन्द्रमा को मिला श्राप

चंद्रमा शिव जी के मस्तक पर विराजमान हैं क्योंकि इसका एक पौराणिक कारण है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, चंद्रमा की कुल 27 नक्षत्र कन्याएं पत्‍नी है। इन पत्नियों में रोहिणी उनके सबसे समीप थीं। जिससे बाकी पत्नियों ने चंद्रमा से दुखी होकर अपने पिता प्रजापति दक्ष से इसकी शिकायत कर दी। जिसकी वजह से दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग से पीड़ित होने का श्राप दे दिया। इस श्राप की वजह से चंद्रमा की कलाएं घटती चली गईं।

जिसके बाद नारद जी ने चन्द्रमा को शिव की आराधना करने को कहा। चन्द्रमा ने अपनी भक्ति से शंकर को जल्द प्रसन्न किया और शिव के आशीर्वाद से चंद्रमा पूर्णमासी पर अपने पूर्ण रूप में प्रकट हुए और उन्हें अपने सारे श्रापों से मुक्ति मिली। इसी दौरान चन्द्रमा की अनुरोध पर शिवजी ने उन्‍हें अपने मस्तक पर धारण कर लिया।

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