क्या आपकों पता है, मनुष्य के मन को जो बिमारियां घेर सकती हैं, महत्त्वकांक्षा उसमें सबसे बड़ी है? और क्या आपको पता है, जो आदमी महत्त्वकांक्षा के घेरे में घिर जाता है और जिसके प्राणों में महत्त्वकांक्षा का ज्वर समाविष्ट हो जाता है, इस जगत में पूरे जीवन दौड़कर भी कभी शांति और आनंद को उपलब्ध नहीं होता है? क्या आपको पता है कि महत्त्वकांक्षा से बड़ा जहर, पायजन अब तक नहीं खोजा जा सका है?

लेकिन महत्त्वकांक्षा के सिवाय हम और आपको क्या सिखाते हैं? और जो भी हम सिखाते हैं, वह सब महत्त्वकांक्षा के केंद्र पर ही खड़ा होता है। बुनियाद में महत्त्वकांक्षा होती है। पहले ही वर्ष से बच्चों को हम क्या सिखाते हैं? हम सिखाते हैं दौड़, हम सिखाते हैं आगे निकलने की होड़, हम सिखाते हैं प्रतिस्पर्धा, कांपिटीशन। हम सिखाते हैं, तुम पीछे मत रुकना, आगे निकल जाना और सबसे प्रथम खड़े हो जाना। ये उपदेश बड़े मीठे मालूम पड़ते हैं। ये उपदेश बड़े मधुर मालूम पड़ते हैं। बाल-बुद्धि के ऊपर इनका प्रभाव भी गहरा होता है। लेकिन, प्रथम आने की दौड़ मनुष्य को विक्षिप्त करती रही है, यह हमें खयाल भी नहीं है।

महत्त्वकांक्षा इसलिए अनिवार्य रूप से हिंसा सिखाती है, वायलेंस सिखाती है। महत्त्कांक्षा हिंसा का गहरे से गहरे परिणाम है। महत्त्कांक्षा के केंद्र पर हिंसा है, वायलेंस है। और फिर जब एक बार युवा होते-होते तक चित्त इसमें दीक्षित हो जाता है, तो फिर जीवन भर इसी दौड़ में दौड़ता है और जीता है। फिर किनके कंधों पर पैर रखने पड़ते हैं, किनकी लाशों की सीढ़ियां बनाना पड़ती हैं, इस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।

क्या आपको मालूम है, सिकंदर से मरते वक्त किसी ने कहा था, आपने तो सारी दुनिया जीत ली, आप तो प्रसन्न होंगे। सिकंदर ने कहा, जैसे ही मैं पूरी दुनिया जीतने के करीब पहुंचा, मेरे मन में एक उदासी घिरने लगी कि एक ही दुनिया है केवल, अब आगे क्या करूंगा, दूसरी दुनिया नहीं है। ठीक कहा उसने। एक दुनिया जीत नहीं पाते कि दूसरी दुनिया जीतने को चाहिए। और कोई आदमी प्रथम नहीं हो पता, इससे आपको कुछ पता चलता है? 

पियरे एक वैज्ञानिक था। वह छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़ों पर शोध करता था। एक जाति के कीड़े होते हैं, जो हमेशा कतारबद्ध चलते हैं, नेता-कीड़े के पीछे चलते हैं। आदमी जैसी प्रवृत्ति उनकी भी होती होगी। एक नेता होता है, वह आगे चलता है, पीछे कतार बांधकर कीड़े चलते हैं। पियरे ने क्या किया? एक गोल थाली में नेता-कीड़े को चला दिया और पीछे दस पांच कीड़े छोड़ दिए। अब वे गोल थाली में चक्कर लगाना शुरू किए। अब वे लगाते जाते हैं, नेता चलता जाता है। पीछे उसके वे चलते जाते हैं। कोई अंत आता नहीं, क्योंकि गोल कोई अंत होता नहीं। गोल चक्कर का कोई अंत हो नहीं सकता। वे चलते जाते हैं। आखिर, तब तक चलते रहते हैं… कि पियरे भी थक गया और वे कीड़े भी थक-थकाकर मरने लगे। लेकिन वे चलते जा रहे हैं, चलते जा रहे हैं…।

ये जो सफल लोग हैं थोड़े से, इनके पीछे कितने असफल लोगों की पंक्तियां खड़ी हो जाती हैं, इसका बोध है? और ये सफल दस-पांच लोग दुनिया नहीं बनाते हैं। दुनिया बनाते हैं वे सब, जो पीछे रह गए हैं और असफल हो गए हैं। उन उदास लोगों से यह दुनिया बनेगी, तो यह स्वर्ग नहीं बन सकती है, यह नरक बनना निश्चित है। उन हारे हुए लोगों से यह दुनिया बनेगी, तो यह दुनिया अच्छी नहीं हो सकती है। और जो शिक्षा और जो संस्कृति बहुत बड़े वर्ग को हारा हुआ और पराजित सिद्ध कर देती है, वह संस्कृति स्वागत के योग्य नहीं, वह शिक्षा भी आदर के योग्य नहीं।

लेकिन हम उस एक को देखते हैं जो सफल हो गया। उन्तीस को देखता कौन है, जो असफल हो गए हैं? वे अंधेरे में खड़े हो जाएंगे, अपने मुंह छुपा लेंगे। उन्हें देखने की जरूरत क्या है? उन पर रोशनी डालने का कारण कहां है? भूल है उनकी, हार गए हैं जो।

लेकिन मैं आपसे कहता हूं, ये तीस कितनी ही कोशिश करें, तीस में से एक ही प्रथम हो सकता है। उन्तीस तो कभी भी प्रथम नहीं हो सकते हैं। तीस में से एक ही जीत सकता है, उन्तीस तो हारेंगे तो ही। चाहे वह एक कोई भी हो, इससे फर्क नहीं पड़ता है। वे उन्तीस जो हार गए हैं, आपको पता है, उसके मन को कितने बुनियादी घाव आपने पहुंचा दिए? उनके प्राणों की ऊर्जा को आपने शुरू से ही थका हुआ साबित कर दिया। वे शुरू से ही जिंदगी के प्रति आशा से भरे हुए नहीं हैं। वे निराशा, अपमान से भरे हुए, हताशा से भरे हुए प्रवेश करेंगे। फिर अगर ये हारे हुए लोग क्रोध से भर जाएं और जिंदगी को तोड़ने लगें, और जगह-जगह तोड़-फोड़ करने लगें, और जगह-जगह इनका क्रोध प्रकट होने लगे तो कौन जिम्मेवार है? कौन इसकी जिम्मेवारी लेगा? शिक्षा और शिक्षा की व्यवस्था। और कौन उसके लिए जिम्मेवार होगा?

इस दुनिया में आपको पता है, जिस दिन से शिक्षा बढ़ गई है, उस दिन से युवकों के मन में गहरा विध्वंस का, डिस्ट्रक्शन का भाव पैदा हो गया है? लोग कहते हैं, पहले के लोग बड़े अच्छे थे, वे विध्वंस नहीं करते थे। उसका कुल कारण इतना था कि वो अशिक्षित थे, शिक्षित नहीं थे। और कोई कारण नहीं था। आज भी दुनिया में जहां अशिक्षा है, वहां का युवक शांत है।

क्या मैं यह कह रहा हूं, कि शांति बनाए रखने के लिए दुनिया में अशिक्षा बनाई रखी जाए? नहीं, मैं यह नहीं कर रहा हूं। मैं यह कर रहा हूं, यह शिक्षा गलत है, हमें कोई और शिक्षा खोजनी चाहिए। आज नहीं कल, इस संबंध में सोचना ही पड़ेगा। नहीं सोचेंगे तो यह शिक्षा ही हमारे आत्मघात का कारण बन सकती है। इसमें पहला स्वर, इस शिक्षा में जो भूल भरा है, वह महत्त्वकांक्षा का, एंबिशन का है।

बड़ी अदभुत बात कही। अपने से ही आगे निकलता जाऊं रोज तो काफी है। दूसरे से क्या तुलना, दूसरे से क्या प्रतिस्पर्धा, दूसरे से क्या नाता, दूसरे से क्या संबंध? दूसरा दूसरा है, मैं, मैं हूं। कहां तुलना, कहां संबंध, कहां नाता, कौन-सी प्रतिस्पर्धा? दूसरा दूसरा होगा, मैं, मैं हो पाऊंगा। हर आदमी वही हो पायेगा, जो हो सकता है। दूसरे से लेना-देना कहां है? वानगाग ने कहा, अपने से आगे निकलता जाऊं तो काफी है। और अपने आनंद से चित्रित करता हूं।

हम भी आदमी को दौड़ सिखा देते हैं और बाकी सारे आदमी उसके पीछे पड़ जाते हैं। कोई उसको विश्राम करने नहीं देता जिंदगी में। पहले मां-बाप पीछे पड़े रहते हैं, फिर पत्नी पड़ जाती है, फिर लड़के-बच्चे पड़ जाते हैं। उसको दौड़ाते रहते हैं। एक दिन दिल्ली पहुंच जाता है बेचारा। लेकिन लाश ही पहुंचती है दिल्ली, कोई जिंदा आदमी नहीं पहुंचता। वहां जाकर सांस टूट जाती है। दौड़ तो हम सिखा देते हैं, लेकिन पहुंच कोई नहीं पाता है इस दौड़ में कहीं भी। दौड़ों और पहुंचना कहीं भी नहीं है।

एंबिशन या महत्त्वकांक्षा कहां पहुंचाती है मनुष्य के मन को? जब कोई व्यक्ति प्रथम आने के लिए कोशिश में संलग्न होता है तो आपको पता है, वह क्या सीख रहा है? वह क्या कर रहा है? उसके भीतर क्या गुजर रहा है? उसका मन किस प्रक्रिया से पार हो रहा है, उसके मन में क्या निर्मित हो रहा है? उसको जो खुशी मिलती है प्रथम आकर, आपको पता है कि वह खुशी किस बात पर खड़ी है?

वह प्रथम आने की खुशी नहीं है, वह दूसरों को दुखी करने का सुख है। वह स्वयं के प्रथम आने की खुशी है ही नहीं, वह दूसरों को दूखी करने का आनंद है। जो पीछे छूट गए हैं और जिनकी आंखें आंसुओं से भरी हैं, उन्हीं से वह मुस्कुराहट निर्मित होती है जो प्रथम आने वाले को थी।

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