sri sri ravi shankar on relationships
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Our life is a game: अहंकार बहुत कटु और कठोर है। इस ‘मैं को प्रयास से नहीं बल्कि दृष्टा बनकर विलीन कर सकते हैं। यदि अहं को मिटाने का प्रयास करें तो यह उतना ही दृढ़ हो जाता है। बहुत से लोग अहं को मिटाने का या उसे दूर करने का उपदेश देते हैं। यह संभव नहीं है। परंतु सजग बने रहने से और विश्रामपूर्ण मन से उस परम और सर्वव्यापक उपस्थिति की प्रतीति बनी रहे तो अहं भाव स्वत: तिरोहित हो जाता है। इस तरह व्यक्तित्व में वांछित जीवन मूल्य प्रकट होने लगते हैं। पीछे मुड़ कर देखो तो तुम्हें सारा बीता हुआ जीवन एक स्वप्न की भांति लगेगा। अपना बीता हुआ भूतकाल, आज के इस क्षण तक-क्या यह सब एक स्वप्न समान नहीं है? अमुक दिन आप कुछ कर रहे थे तब आपकी मनोदशा कैसी थी? कभी नववर्ष मना रहे थे तो कभी क्रिसमस के उपहारों का आनन्द ले रहे थे। और पीछे जाइए, कभी रोने-धोने का नाटक चलता था। उससे भी पीछे स्कूल के दिन, कई वर्षों तक सुबह स्कूल जाना और शाम को लौटना यही दिनचर्या रही। इस दिनचर्या से अब तक सप्ताहान्त की प्रतीक्षा करते थे। सब कहां चला गया। बीता पल एक सपने की भांति खो गया।

वास्तव में अपना भविष्य संवारने के लिए तुम्हें कुछ भी नहीं करना। वर्तमान में आनन्दित हो जाओ। जीवन तो बस एक खेल है इसका कोई उदï्देश्य नहीं, कोई प्रयोजन नहीं। जीवन तो ईश्वर के ऐश्वर्य
की अभिव्यक्ति है। इसमें तुम कर्ता नहीं हो- सब कुछ विराट मन द्वारा हो रहा है। अब एक बड़ा प्रश्न तुम्हारे मन में उठता है कि यदि संसार स्वचालित है तो स्वतंत्रता क्या है? भाग्य क्या है? जब घटनाएं तुम्हारे विचारों के अनुकूल होती हैं तो तुम उसे अपनी संकल्प-शक्ति समझ लेते हो, जब कुछ तुम्हारे विचारों के प्रतिकूल घटता है तो तुम उसे भाग्य कह देते हो। बस इतनी सी बात है। लोगों ने इसी विषय पर बड़े-बड़े ग्रंथ लिख दिए हैं। वे ग्रंथ इतने निरर्थक एवं नीरस होते हैं कि दो पन्ने पढ़ते ही तुम
ऊंघने लगो। जिन्हें अनिद्रा का रोग है उनके लिए यह अच्छी दवा है। जब कोई श्रेष्ठ विचार तुम्हारे लघु मन में आता है तो तुम आह्लादित हो उठते हो, ‘वाह मेरी सोच, मेरी सूझ-बूझ, यह मेरी इच्छा शक्ति का कमाल है। यदि मन में आते हुए विचार के प्रति विरोध उठता है तो उसे भाग्य कहते हैं। वास्तव में जो भी ‘है वह है।

जीवन की सभी सुखद अथवा दु:खद घटनाएं तुम्हारे स्वयं का चयन है। कभी तुम सुखी हुए और कभी दु:खी- तो क्या हुआ? जीवन को इतनी गम्भीरता से क्यों लेते हो? इतनी गम्भीरता से लेने योग्य कुछ भी तो नहीं है। सब कुछ एक खेल है। भारत में इसके लिए एक सुन्दर शब्द है ‘लीला। ‘लीला का अर्थ है- क्रीड़ा, खेल। जीवन जिस रूप में है सुन्दर है। सब बुद्ध-पुरुष यही कहते हैं कि जीवन को इतनी गम्भीरता से लेने की आवश्यकता नहीं- यह मात्र क्रीड़ा हैतुम एक स्वप्न के लिए इतने परेशान क्यों हो? यह जागरण या बोध का अर्थ है। कल एक दु:स्वप्न देखा तो क्या? अब वह कहां है? बस इसी बोध से इस क्षण जाग जाओ। सपनों का विश्लेषण मत करो। यह मूर्खता है। सपने तो केवल सपने हैं।

जीवन को केवल एक क्रीड़ा की भांति समझो। तुम भी परमात्मा हो, मैं भी परमात्मा। इस प्रतीति का आनन्द मनाओ। जब तुम चेतना की इस ऊंचाई से देखते हो तो सीखना-सिखाना पीछे छूट जाता है। केवल ‘होना ही बचता है। आओ कुछ क्षण मेरे सान्निध्य में बैठो। उतना ही पर्याप्त है क्योंकि मैं और तुम एक ही तो हैं। यही प्रेम है। है न? परमात्मा भी हर घड़ी तुम से यही कह रहा है’आओ मेरे पास बैठो, जो भी कार्य आवश्यक होगा वह मैं तुम्हारे द्वारा, तुम्हें निमित्त बनाकर करवाऊंगा। तुम बस अपनी अस्मिता भर त्याग दो।

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