पूजन वाले स्थान को गाय के गोबर से अच्छी तरह लीप लें। अगर पक्का फर्श है तो अच्छी तरह धोकर स्वच्छ कर लें। पूजन में सबसे पहले घर स्थापित किया जाता है। कलश को गणेश जी का स्वरूप माना जाता है। सात जगह की मिट्टी गंगाजल मिलाकर एक पीठ तैयार की जाती है। मां की पूजा में सभी तीर्थों, नदियों, समुद्रों, नवग्रहों, दिशाओं, नगर देवता, ग्राम देवता सहित सभी योगनियों को भी आमंत्रित किया जाता है। कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, मुद्रा सादर अर्पित की जाती है। आम्र पल्लव (पांच पत्रों का समूह) से कलश को सुशोभित किया जाता है। कलश में सात प्रकार के अनाज अथवा जौ बोए जाते हैं, जिन्हें दशमी तिथि को काटा जाता है। इसके बाद किसी सुंदर पाटे पर लाल वस्त्र बिछाकर मां दुर्गा का आवाह्न किया जाता है। देवी को स्नान आदि करवाकर लाल वस्त्र पहनाए जाते हैं और फिर पूजा के दौरान पुष्प चढ़ाकर, तिलक लगाकर भोग के रूप में मिष्ठान्न अर्पित करके माता की आरती उतारी जाती है। मां की प्रतिमा के साथ महालक्ष्मी माता, गणेश जी तथा विजया नामक योगिनी की भी पूजा की जाती है।

कैसे करें दुर्गा पूजन?

मां भगवती भावना और भक्ति की प्रेमी, हैं देवी का अर्चन सूक्ष्म भी है और विस्तृत भी। संकल्प उतना ही करना चाहिए, जितना आप कर सकें। प्रतिदिन यदि सात माला के जाप का संकल्प है, तो उतनी ही करनी होंगी। इसलिए संकल्प से पहले अपनी कार्य परिस्थितियों को भी देख लेना चाहिए। अगर संपूर्ण विधि-विधान से जाप किया जाए, तो दुर्गा सप्तशती के पाठ में चार घंटे लग ही जाते हैं।

पूजा का विधि-विधान विस्तृत रूप से देखें।

1. प्रतिपदा को देवी भगवती का ध्यान करते हुए कलश स्थापित करें। एक लोटे में गंगा जल, जौ, तिल, अक्षत डालें। लोटे पर स्वास्तिक (सतिया) बनाएं। कलावा बांधें। आम के 5,7,9 पत्ते लगाएं और नारियल (जराजूट) को चुनरी में या लाल कपड़े में बांधकर स्थापित कर दें। कांड मंत्र पढ़ सकें तो अच्छा है, अन्यथा या देवि सर्वभूतेषू शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै-नमस्तस्यै-नमस्तस्यै नमो नम: पढ़ लें।

2. आप दुर्गा चालीसा या देवी सूक्ष्म पढ़कर भी कलश स्थापित कर सकते हैं।

3. कलश स्थापना से पहले गणेश जी, शंकर जी का विशेष स्तवन करें।

4. कलश स्थापना के बाद मां की अखंड ज्योति जलाएं।

5. अखंड ज्योति अनिवार्य नहीं है। अगर आप जलाते रहे हों, तो जलाएं।

काली जी की ज्योति

घर में ही आप काली जी की अखंड ज्योति जला सकते हैं। यह तेल का दीपक होगा। प्रतिबंध यह रहेगा कि आप ज्योति रहते स्थान परिवर्तन या स्थान भ्रमण नहीं करेंगे। इसका आशय मात्र इतना है कि आप कवच में बंध गए हैं। आपने संकल्प लिया है कि आप मां को छोड़कर नहीं जाएंगे।

कलश स्थापना और ज्योति जलाने से पहले निम्न मंत्र पढ़ें।

ॐ ऐं आत्मतत्वं शोधयामि नम: स्वाहा।

ॐ ह्यीं विद्यातत्वं शोधयामि नम: स्वाहा।।

ॐ क्लीं शिवतत्वं शोधयामि नम: स्वाहा।

ॐ ऐं ह्यीं क्लीं स्त्वत्तत्वं शोधयमि नम: स्वाहा।।

इसके बाद संकल्प लें। इसमें स्थान, नाम, पिता का नाम, पारिवारिक सदस्यों के नाम, गोत्र का नाम लें, जैसे हे भगवती! मैं… पुत्र…. जिला….. शहर….. मुहल्ला…. गोत्र अपने परिवारजनों…. के साथ नवरात्र व्रत का संकल्प लेता हूं। मेरे कारज सिद्ध करना। ज्ञात-अज्ञात जो भूल हो जाए, उसे क्षमा करना। जगतजननी मेरा उद्धार करो। मेरा कल्याण करो रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।

इसके बाद देवी जी की प्रार्थना करें।

ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:

नम: पकृत्यै भद्रायै नियत: प्रणत: स्म ताम्।।

ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धाज्ञी स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।

प्रतिदिन उतनी माला का संकल्प करें जितनी बार कर सकें अन्यथा पार्वती जी का अभिष्ट मंत्र 11 बार, लक्ष्मी जी का 5 या 9 बार और काली जी का 7 बार पढ़ लें।

देवी पूजा के नियम और वर्जनाएं

साधना देवी के किसी भी स्वरूप की पूजा की जाए उसमें कुछ नियमों एवं वर्जनाओं का ध्यान रखना आवश्यक होता है।

1. पूजा-पाठ, साधना एवं उपासना के समय साज-श्रृंगार, शौक-मौज तथा कामुकता के विचारों से अलग रहना चाहिए।

2. मंत्र जप प्रतिदिन नियमित संख्या में करनी चाहिए। कभी ज्यादा या कभी कम मंत्र जप नहीं करना चाहिए।

3. किसी भी पदार्थ का सेवन करने से पूर्व उसे अपने आराध्य देव को अर्पित करें। उसके बाद ही स्वयं ग्रहण करें।

4. मंत्र जप के समय शरीर के किसी भी अंग को नहीं हिलाएं।

5. मां दुर्गा की उपासना में मंत्र जप के लिए चन्दन माला को श्रेष्ठ माना जाता है।

6. माता लक्ष्मी की उपासना के लिए स्फटिक माला या कमलगट्टे की माला का उपयोग करना चाहिए।

7. बैठने के लिए ऊन या कम्बल के आसन का उपयोग करना चाहिए।

8. मां काली की आराधना में काले रंग की वस्तुओं का विशेष महत्त्व होता है। काले वस्त्र एवं काले रंग के आसन का प्रयोग करना चाहिए।

9. दुर्गा आराधना में पूजन अनेक की अनेक वस्तुओं की आवश्यकता समय-समय पर होती है। उन्हें पूर्व में ही एकत्रित करके रख लेना चाहिए।

10. दुर्गा आराधना के समय अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए।

11. आप किसी भी देवी की आराधना करते हो, नवरात्र में व्रत अवश्य करना चाहिए।

12. घर में शक्ति की तीन मूर्तियां वर्जित हैं अर्थात् घर या पूजाघर में देवी की तीन मूर्तियां नहीं होनी चाहिए।

13. देवी की जिस स्वरूप की आराधना आप कर रहे हों उनके स्वरूप का ध्यान मन ही मन करते रहना चाहिए।

14. दुर्गा के पूजन के लिए पुष्प, पुष्प माला, रोली, चंदन, नैवेद्य, फल, दूर्वा एवं  तुलसी की आवश्यकता होती है

किस दिन क्या चढ़ाएं

नौ दिनों के व्रत के दौरान देवी दुर्गा को हर दिन अलग-अलग वस्तुएं चढ़ाने का विधान है।

प्रतिपदा- आंवला आदि का सुगंधित तेल।

द्वितीया- बाल बांधने या गूंथने के काम आने वाले रेशमी सूत या फीता।

तृतीया- सिंदूर या दर्पण।

चतुर्थी- गाय का दूध, दही, घी व शहद से बना द्रव्य, तिलक या आंख में आंजने वाली वस्तु।

पंचमी- चंदन एवं आभूषण।

षष्ठी- पुष्प एवं पुष्पमाला।

सप्तमी- ग्रहमध्य पूजा।

अष्टमी- उपवासपूर्वक पूजन।

नवमी- महापूजा और कुमारी पूजा।

नवरात्र व्रत का महत्त्व और विधान

नवरात्र पर रखे जाने वाले व्रतों का विधान पवित्रता से जुड़ा होता है, इसलिए इन दिनों में अपने आचरण को पवित्र रखें। कोई भी ऐसा आचरण न करें जो आपकी पवित्रता को भंग करता हो। अपने मन में किसी के प्रति बैर भाव न लाएं और न ही किसी का मन दुखाएं।

नवरात्र का व्रत रखने वाले साधक को तामसी भोजन का त्याग करना चाहिए। मांसाहार, शराब, प्याज, लहसुन आदि इन दिनों में पूर्णत: वर्जित होता है। ये चीजें व्रत के विधान को नष्ट कर देती हैं।

नवरात्र में फलाहार या दूध का सेवन सर्वोत्तम माना गया है। साधक कुट्टू या सिंघाड़े के आटे का भोजन भी कर सकता है। व्रत के दौरान केवल यही भोजन ग्रहण करना चाहिए।

भोजन में मसालों का सेवन भी वर्जित माना गया है। इन दिनों में आप जो भोजन करें, उनमें सिर्फ सेंधा नमक ही प्रयोग करें। भोजन जितना हल्का होगा उतना ही यह आपके मन-मस्तिष्क पर प्रभाव डालेगा।

व्रत करने वाले दम्पत्ति को इन दिनों एक दूसरे से दूरी बनाकर रखनी चाहिए। यदि हो सके तो पति-पत्नी अलग-अलग शैय्या बिछाएं।

व्रत वाले दिन सुबह उठते ही मां दुर्गा की आराधना करें। इन दिनों दुर्गा सप्तशती या चंडी का पाठ सबसे उत्तम माना जाता है। पाठ स्वच्छ आसन पर बैठकर करना चाहिए। सप्तशती के पाठ के बाद मां दुर्गा की आरती करें। नवरात्र के दिनों में नारियल का विशेष विधान है। व्रत शुरू करने से पूर्व एक छोटे घड़े या लोटे पर नारियल रख लें। यह मनोकामना का प्रतीक है। अष्टमी या नवमी पूजन के बाद इस नारियल का प्रसाद बांटना चाहिए।

नवरात्र के दिनों में अष्टमी या नवमी का व्रत मां दुर्गा के साधकों के लिए विशेष महत्त्व रखता है। इन दिनों व्रत का विधि-विधान से समापन कर कन्याओं को पूजना चाहिए। मां दुर्गा के रूपों के अनुरूप नौ कन्याओं का पूजन करना चाहिए। कन्याओं के पूजन के बाद ही व्रत खोलने का विधान है।

व्रत रखने वाले साधकों को मां दुर्गा की आराधना व विशेष पूजन भी करना चाहिए। मां दुर्गा की प्रतिमा को पवित्र सिंहासन पर विराजमान करें तथा लाल पुष्पों, रोली, मोली, धूप, दीपक, नारियल आदि से मां की अर्चना करें।

नवरात्र के दिनों में अनेक स्थानों पर ब्राह्मण द्वारा भी विशेष पूजा करने का विधान है। व्रत के दौरान प्रात: या सायंकाल को ब्राह्मण द्वारा पूजा करवाई जा सकती है।

व्रत के दौरान मां दुर्गा के रूपों की अलग-अलग पूजा का विधान है। पहले दिन शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्राहृचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कुष्मांडा, पांचवें दिन स्कंदमाता, छठे दिन कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन मां गौरी तथा नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की उपासना करनी चाहिए। मां शक्ति के नौ रूपों की पूजा करने से व्रत का विधान न केवल पूर्ण माना जाता है बल्कि साधक की हर प्रकार की मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं।

नवरात्र का व्रत रखने वाले साधकों को दुर्गा सप्तशती के साथ-साथ दुर्गा कवच का पाठ जरूर करना चाहिए। दुर्गा कवच का पाठ प्रात: या सायंकाल दोनों समय किया जा सकता है।

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