सूक्ष्म प्राणी क्या हैं इसे अच्छी तरह समझने के लिए, हमें पहले यह समझना चाहिए कि हम क्या हैं। जब ईश्वर ने हमारी रचना की, तो सर्वप्रथम हम केवल चेतना के रूप में विद्यमान रहे। हम उनके मन की एक रचना थे। क्या यह सत्य नहीं है कि जब आप किसी नई वस्तु का सृजन करते हैं, तो सर्वप्रथम आप उसके प्रारूप की अपने मन में कल्पना करते हैं? तब आप उसको बनाने के लिए सामग्री को एकत्रित करते हैं, और अन्त में आप अपनी कल्पना की छवि की ठोस रूप में संरचना करते हैं। इसी प्रकार, हम और सृष्टि में प्रत्येक वस्तु त्रयात्मक हैं मानसिक (विचार), सूक्ष्म (निर्माण-सामग्री),और भौतिक (स्थूल अन्तिम उत्पाद)। भौतिक शरीर सोलह तत्त्वों से बना है। ईश्वर ने जिस प्रकार भौतिक पदार्थों के रसायनिक तत्त्वों को बुद्धि प्रकट करने के लिए मिलाया है वह एक चमत्कार है। फिर भी, यह शरीर कुछ भी हो, परन्तु पिरपूर्ण नहीं है। हम इससे ज्यादा अच्छे शरीर की कल्पना कर सकते हैं।

हमारा सूक्ष्म शरीर उन्नीस तत्त्वों से बना है, जो मानसिक, भावनात्मक और प्राणशक्ति जनित हैं। ये तत्त्व हैं बुद्धि, अहम्, चित्, मन (इन्द्रिय चेतना), पांच ज्ञानेन्द्रियां (देखने, सुनने, सूघने, चखने और स्पर्श करने की भौतिक इन्द्रियां के पीछे सूक्ष्म शक्तियां), पांच कर्मेन्द्रियां (प्रजनन, मल-त्याग, चलने, बोलने और शारीरिक कार्य करने के शक्तियां), तथा प्राण शक्ति के पांच प्रकार (जिनको भौतिक शरीर में कणीकरण (छोटे-छोटे कण बनाना), परिपाचन, मल विसर्जन, चयापचय और रक्त संचार की क्रियाओं को संपन्न करने की शक्ति प्रदान की गई है)। ये सब सूक्ष्म रूप से बनाए गए हैं। हम स्वप्न जगत् में, पंचों इन्द्रियों की शक्ति द्वारा सुन सकते हैं, सूंघ सकते हैं, स्वाद ले सकते हैं, स्पर्श कर सकते हैं, और देख सकते हैं। और सूक्ष्म जगत् में सुनने, देखने, चखने, सूंघने और स्पर्श करने के भौतिक अंगों के बिना, भी हमारे पास पांचों इन्द्रियों की शक्ति होती है। सूक्ष्म शरीर भार रहित होता है और प्रकाश की तरह गतिमान होता है। अपनी इच्छानुसार आप सूक्ष्म शरीर को अणु की भाति बहुत छोटा बना सकते हैं अथवा इसे बहुत बड़ा भी बना सकते हैं। क्यों नहीं? ईश्वर जो सृष्टि के ब्रह्मïडीय चल-चित्र के दिव्य संचालक हैं, पर्दे पर चित्रों के आकार को छोटा अथवा बड़ा बना सकते हैं। वे प्रक्षेपक हैं, जो अनंत के कक्ष से चलचित्र को चला रहे हैं। आप उनके असीम प्रकाश की वैयक्तिक अभिव्यक्ति हैं। इसलिए आपका सूक्ष्म शरीर, भौतिक शरीर को अत्यधिक रूप से बन्धन में रखने वाली ब्रह्मïडीय सीमाओं की अपेक्षा कहीं अधिक स्वतंत्र है।परन्तु भौतिक और सूक्ष्म शरीरों की वास्तविक रूप में रचना करने से पहले ईश्वर को सोचना पड़ा कि उन्हें कौन सी सामग्री की आवश्यकता थी। इसलिए हमारा पैंतीस तत्त्वों से बना कारण या विचार शरीर भी है सोलह विचार जो भौतिक शरीर के तत्त्वों को बनाते हैं। और उन्नीस विचार जो सूक्ष्म शरीर के तत्त्वों को बनाते हैं। कारण विचारों में से सूक्ष्म शरीर की पांच प्राण शक्तियों के रूप, प्रकाश के सूक्ष्म शरीर और स्थूल पदार्थ के भौतिक शरीर को दृश्यमान बनाते हैं। अत: मूलरूप से हम पैंतीस विचारों से बने हैं, जो मानव के विचारात्मक या कारण शरीर को बनाते हैं। इन पैंतीस विचारों में ईश्वर की प्रतिछाया रहती है जिसे आत्मा कहते हैं। जिस प्रकार गैस-चूल्हे के छोटे-छोटे छिद्रों से निकल कर अनेक वैयक्तिक ज्वालाएं एक ज्वाला का रूप ले लेती हैं, उसी प्रकार हम सब एक ही प्रकाश हैं, जो ईश्वर से अनेक शरीरों में प्रवाहित हो रहा है। 

यह भी पढ़ें –महापुरुष की पहचान – परमहंस योगानंद