Kumbh Snan: कुम्भ मेला आस्था के स्नान का दुनिया का सबसे बड़ा मेला है। कई करोड़ लोग दुनियाभर से यहां पहुंचते हैं। ऐसे में इतने लोगों की एक साथ व्यवस्था करना किसी भी सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होता, इसलिए इस व्यवस्था को बनाएं रखने में हमारी भूमिका भी उतनी ही जरूरी है जितनी प्रशासन की। हमारा भी कुछ कर्त्तव्य व दायित्व बनता है जो इस मेले को सफल बनाने में जरूरी है।
यूं तो भारत को पर्वों और त्योहारों का देश कहते हैं, जहां लगभग हर दिन किसी न किसी स्थान
अथवा वर्ग में किसी देवता, घटना या आस्था से जुड़ा कोई न कोई पर्व होता ही रहता है, जिनमें से कुछ के विषय में स्थानीय लोगों के अतिरिक्त अन्य लोग परिचित नहीं होते। परन्तु कुम्भ-स्नान एक ऐसा पर्व है, जिसके
विषय में न केवल अधिकांश भारतीय, अपितु विश्व के बहुत से लोग भी परिचित होंगे। वर्ष 2013 में महाकुम्भ
मेले के आयोजन में करोड़ों श्रद्धालुओं द्वारा भाग लिए जाने के कारण इसे ”पृथ्वी पर सबसे बड़ी सभा” के रूप
में देखा गया था तथा गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने इस त्योहार को ”सर्वश्रेष्ठ प्रबंधित” घटनाओं में से एक
के रूप में मान्यता दी थी। अत: प्रासंगिक है कि आने वाले कुम्भ-स्नान, जो कि जनवरी, 2019 से मार्च, 2019
के मध्य पंचांग के अनुसार विभिन्न तिथियों पर प्रयाग (इलाहाबाद) में आयोजित किया जाएगा, के विषय में
कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर विचार किया जाए।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कुम्भ-पर्व समुद्र-मंथन के पश्चात बारह दिनों (पृथ्वी-लोक के बारह वर्ष के तुल्य) तक चले देवासुर संग्राम के परिपेक्ष्य में मनाया जाता है, जब अमृत के लिए मची छीना-झपटी में अमृत-कलश (कलश को कुम्भ भी कहा जाता है, जिसके कारण इस पर्व का नाम ‘कुम्भ’ पड़ा) से छलक कर अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर स्थित चार स्थानों, प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन तथा नासिक में गिर गई थी। तब से मान्यता है कि कुम्भ-पर्व के समय इन स्थानों पर स्थित पवित्र नदियों का जल अमृतमय हो जाता है, जिसमें स्नान करने
से असीम पुण्य की प्राप्ति होती है। अत: इस मुहूर्त में कुम्भ-स्थल पर पुण्य-स्नान के अवसर का लाभ हर कोई उठाना चाहता है।
परन्तु जब हम कहीं कुछ पाने की आशा के साथ जाते हैं, तो न केवल हम दाता के प्रति आभारी होते हैं, बल्कि
प्रतिदान के लिए भी उत्तरदायी होते हैं। चूंकि कुम्भ-पर्व श्रद्धालु तीर्थयात्रियों को अमृत-पान तुल्य पुण्य प्राप्त करने का सुअवसर प्रदान करता है, इसलिए उनसे कुछ अपेक्षाएं भी की जाती हैं, जिन्हें पूरा करना उनका कर्त्तव्य भी है और दायित्व भी। आईये, इन्हें जाने और विचार कर कार्यान्वित भी करें।

कुम्भ स्थल के प्रति
उक्त जिन चार नगरों में बारी-बारी से कुम्भ पर्व का आयोजन किया जाता है, उनकी अपनी सीमाएं होती हैं। अल्प समय के लिए ही सही, कुछ लाख लोगों की जनसंख्या के लिए आवश्यक जन-सुविधाओं से युक्त इन नगरों पर करोड़ों लोगों के ठहरने व स्नानादि की व्यवस्था करने का अतिरिक्त भार आ जाता है। अत: तीर्थ-यात्रियों से भी इसमें समुचित सहयोग अपेक्षित होता है। उन्हें चाहिए कि वह न केवल अव्यवस्था फैलाने से बचें, बल्कि स्थानीय लोगों के प्रति सकारात्मक भाव भी रखें, जिससे पर्व समाप्त हो जाने के पश्चात यात्रियों द्वारा छोड़ी गयी गन्दगी के कारण, स्थानीय नागरिकों के मन में उत्पन्न क्षोभ की भावना के फलस्वरूप पवित्र स्नान से
प्राप्त पुण्य के क्षीण होने की सम्भावना से बचा जा सके। इसलिए यात्रा के दौरान अपने आस-पास साफ-सफाई बनाए रखना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। वैसे तो स्वच्छता हमारे दैनिक जीवन में एक सहज-स्वाभाविक आदत के रूप में रच-बस जानी चाहिए, जिसका उल्लंघन हमारे द्वारा नागरिक कर्त्तव्यों की अवहेलना के रूप में भर्त्सना किये जाने योग्य है। परन्तु तीर्थ स्थानों, विशेषकर कुम्भ-पर्व के दौरान इसमें लापरवाही, उस स्थल पर जागृत रूप में उपस्थित, अमृत वर्षा करने वाले देवताओं के प्रति हमारे किस भाव को प्रदर्शित करता है,
हम स्वयं समझ सकते हैं। अत: देवताओं की कृपा के अभिलाषी बनकर उनके स्थान को अपवित्र करने के पाप का भागी होने से प्रयत्न-पूर्वक दूर ही रहें। कुम्भ-पर्व के दौरान नदी में कुछ भी प्रवाहित न करें, अपने साथ लाए
आवश्यक वस्तुओं की पैकिंग में प्रयुक्त सामग्री कपड़े या कागज की हो तथा पॉलिथीन का प्रयोग यथासंभव न ही करें। कूड़ा इधर-उधर न फैलाएं और पॉलिथीन अपशिष्ट या तो अपने निर्धारित स्थान पर डालें, अन्यथा अपने पास एक बैग में इक_ा कर लें, फिर वापस पहुंच कर उपयुक्त स्थान पर उसका निस्तारण
करें।
सहयात्रियों के प्रति

भीड़-भाड़ वाली जगहों पर कई बार लोग घबराहट में या दुर्भावना-वश किसी बात को लेकर अफवाह फैला देते हैं, जिससे न केवल अव्यवस्था फैलती है, बल्कि भगदड़ मच जाने के कारण कई निर्दोष लोगों को चोटिल होना पड़ जाता है और कई अपनी जान से हाथ भी धो बैठते हैं। अत: ऐसी कोई सूचना मिलने पर उसपर तुरंत विश्वास न करें, बल्कि सत्य का पता लगाने की कोशिश करें। साथ ही सावधानी बरतते हुए, किसी
सहयात्री को बता कर हताशा फैलाने के स्थान पर, तुरंत सम्बंधित प्रशासनिक अधिकारियों को सूचित करें। स्थिति नियंत्रण में आने तक स्वयं धैर्य बनाए रखें और दूसरों की भी सहायता करें।
किसी सह-यात्री के बीमार हो जाने अथवा किसी अन्य विपत्ति में फंस जाने पर अपने साधनों से यथा-संभव उसकी सहायता करें, क्योंकि ”न जाने किस रूप में, मिल जाएं भगवान, अत: इस-सेवा का सुलभ अवसर हाथ से न जाने दें।
साथ ही भोजन, पेयजल व पूजन-सामग्री उतनी ही लें जितनी आवश्यकता हो, इनकी बर्बादी न करें, जिससे ये
सभी यात्रियों को उपलब्ध हो सकें। पर्व स्थान पर स्नान व पूजा में अधिक समय न लगाएं, जिससे वहां प्रतीक्षा-रत अन्य श्रद्धालुजन भी स्नान-पूजा का लाभ उठा सकें। यदि अधिक देर पूजा करना चाहें तो ठहरने वाले स्थान पर बैठकर कर सकते हैं। अपने साथ, दूसरे लोगों को भी स्नान-पूजा का अवसर उपलब्ध करवाने में सहयोग देना भी अपने आप में किसी पूजा से कम नहीं है।
स्वयं अपने लिए
कुम्भ-स्नान एक ऐसा अवसर होता है, जिसमें बहुत से लोग भाग लेना चाहते हैं। अत: यात्रा को कष्टरहित बनाने के लिए आप को कुछ बातों का ध्यान रखना होगा। सर्व-प्रथम यात्रा की योजना पर्याप्त समय पहले से बनाएं,
क्योंकि हड़बड़ी में यात्रा के लिए सही ढंग से व्यवस्था कर पाना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य होता है। जहां तक संभव हो, ऐसी यात्रा अकेले न कर अपने सम्बन्धियों, मित्रों या परिचितों का एक छोटा समूह बनाकर करें ताकि किसी परेशानी की स्थिति को मिलकर संभाला जा सके। परन्तु बहुत बड़े समूह बना कर भी यात्रा न करें, क्योंकि अधिक लोगों के लिए एक साथ व्यवस्था करने में कठिनाई आती है। जब भी स्नान करने के लिए जाएं, समूह के सभी सदस्य साथ ही जाएं। भोजन के लिए या तो ताजे फल व डिब्बाबंद पदार्थों का सेवन करें या किसी स्वच्छ स्थान पर पका सात्विक भोजन ही ग्रहण करें। यदि स्नान के समय मौसम ठंडा हो तो पर्याप्त मात्रा में गर्म कपड़े साथ रखें और ठण्ड कम होने पर ही स्नान के लिए जाएं। आम बिमारियों जैसे बुखार, अपच इत्यादि के लिए तो औषधियां साथ रखें ही, यदि किसी खास बीमारी से ग्रस्त हों, तो चलने से पहले अपने
डॉक्टर से बात अवश्य कर लें। इसके साथ ही अपने ठहरने के स्थान के विषय में पूरी जानकारी अपने परिवार को अवश्य दें तथा समय-समय पर उनसे फोन पर बात कर हाल-चाल देतें रहें।
कुछ उनके लिए भी जो सकें
कुम्भ स्नान के लिए न जा सकें कुम्भ स्नान पर चूंकि असाधारण भीड़ होती है, अत: वृद्ध, बच्चों व बीमार
लोगों को वहां जाने से बचना चाहिए और शारीरिक व मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ लोगों को ही कुम्भ-स्नान के लिए जाने की चेष्टा करनी चाहिए। जो लोग जाने के इच्छुक तो हों, परन्तु उक्त या अन्य किसी कारण से कुम्भ-स्थल पर पहुंच कर स्नान करने में असमर्थ हों, वह घर में ही मानस-स्नान कर पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिये आवश्यक है कि कुम्भ-स्नान के मुहूर्त के समय स्नान से पूर्व निर्मल हृदय से निम्न मंत्र का पाठ करें गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेस्मिन सन्निधि कुरु॥ फिर यह सोच कर स्नान करें, जैसे आप कुम्भ-स्थल पर ही उपस्थित हैं और वहां पवित्र जल में स्नान कर रहे हैं। कुम्भ स्नान से लौट कर अथवा घर में ही रहकर मानस-स्नान करने वाले श्रद्धालु-जन, किसी सुपात्र को चिन्हित कर यथा-शक्ति उसकी सहायता करें, जैसे निराश्रित तथा क्षुधा-पीड़ित लोगों को भोजन, शुद्ध जल आदि उपलब्ध कराएं, किसी अनाथालय, वृद्धाश्रम या रुग्णालय (अस्पताल) में जाकर उनके वासियों को यथाशक्ति भोजन, वस्त्रादि भेंट कर कुछ समय उनके साथ व्यतीत कर उन्हें संतुष्ट करें व उनका आशीर्वाद प्राप्त करें अथवा वंचित लोगों की सहायता-कार्य में रत किसी विश्वसनीय संस्था को यथाशक्ति दान देना भी कुम्भ-स्नान के पुण्य में वृद्धि का कारक है। इस प्रकार उक्त बातों का ध्यान रख, हम अपनी यात्रा को सफल बना सकते हैं और कुम्भ स्नान पर अमृत-लाभ कर सकते हैं।
