भारतीय संस्कृति में हनुमान जी के जन्म से संबधित कई कथाएं प्रचलित हैं। कथाओं के अनुसार उनकी जन्मतिथि भी भिन्न-भिन्न मानी जाती है। यह दिन चैत्र शुक्ल पक्ष की 15वीं तारीख पर आता है जिसे चैत्र पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं। हनुमान जी की जन्म कथाएं अनेक हैं और सब दिव्य व रहस्यमयी हैं।

संतान सुख से वंचित थी अंजना

पुराणों की कथानुसार हनुमान की माता अंजना संतान सुख से वंचित थीं। कई जतन करने के बाद भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। इस दुख से पीड़ित अंजना मतंग ऋषि के पास गईं, तब मंतग ऋषि ने उनसे कहा पंपा सरोवर के पूर्व में एक नरसिंह आश्रम है, उसकी दक्षिण दिशा में नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ है, वहां जाकर उसमें स्नान करके, बारह वर्ष तक तप एवं उपवास करना पड़ेगा तब जाकर तुम्हें पुत्र सुख की प्राप्ति होगी।

वायु देवता का वरदान हैं हनुमान

अंजना ने मतंग ऋषि एवं अपने पति केसरी से आज्ञा लेकर तप किया तथा बारह वर्ष तक केवल वायु का ही भक्षण किया तब वायु देवता ने अंजना की तपस्या से खुश होकर उसे वरदान दिया, जिसके परिणामस्वरूप चैत्र शुक्ल की पूर्णिमा को अंजना को पुत्र की प्राप्ति हुई। वायु के द्वारा उत्पन्न इस पुत्र को ऋषियों ने ‘वायु पुत्र’ नाम दिया।

 

 

नमानुसार जन्म कथाएं

चरित्र एवं रूप अनुसार हनुमान जी के कई नाम हैं परंतु उनके कुछ नाम ऐसे हैं जिनके अर्थ उनकी जन्म कथा से जुड़े हैं जैसे रूद्रावतार, शंकर सुवन एवं पवनतनय। निम्नलिखित जन्म कथाएं स्वतः ही स्पष्ट करती हैं कि हनुमान के ये नाम क्यों पड़ें?

‘रूद्रावतार’ श्री हनुमान

एक बार भगवान शंकर भगवती सती के साथ कैलाश पर्वत पर विराजमान थे। प्रसंगवश भगवान शंकर ने सती से कहा-प्रिय! जिनके नामों को रट-रटकर मैं गदगद होता रहता हूँ, वह ही मेरे प्रभु अवतार धारण करके संसार में आ रहे हैं। सभी देवता उनके साथ अवतार ग्रहण करके उनकी सेवा का सुयोग प्राप्त करना चाहते हैं।, तब मैं ही उससे क्यों वंचित रहूं? मैं भी वहीं चलूं और उनकी सेवा करके अपनी युग-युग की लालसा पूर्ण करूं।

भगवान शंकर की यह बात सुनकर सती ने सोचकर कहा-प्रभु! भगवान का अवतार इस बार रावण को मारने के लिए हो रहा है। रावण आपका अनन्य भक्त है। यहां तक कि उसने अपने सिरों को काटकर आपको समर्पित किया है। ऐसी में आप उसको मारने के काम में कैसे सहयोग दे सकते हैं?

यह सुनकर भगवान शंकर हंसने लगे। उन्होंने कहा-देवी! जैसे रावण ने मेरी भक्ति की है वैसे ही उसने मेरे एक अंश की अवहेलना भी तो की है। तुम जानती हो कि मैं ग्यारह स्वरूपों में रहता हूं। जब उसने अपने दस सिर अर्पित कर मेरी पूजा की थी, तब उसने मेरे एक अंश को बिना पूजा किए ही छोड़ दिया था। अब मैं उसी अंश से उसके विरूद्ध युद्ध करके अपने प्रभु की सेवा कर सकता हूँ। मैंने वायु देवता के द्वारा अंजना के गर्भ से अवतार लेने का निश्चय किया है। यह सुनकर भगवती सती प्रसन्न हो गई।

इस प्रकार भगवान शंकर ही श्री हनुमान के रूप में अवतरित हुए, इस तथ्य की पुष्टि पुराणों की अख्यायिकाओं से होती है। गोस्वामी तुलसीदास जी की दोहावली (142) में भी लिखा है-

जेहि सरीर रति राम सों सोइ आदरहिं सुजान।

रूद्रदेह तजि नेहबस बानर भे हनुमान।।

 

 

‘शंकर-सुवन’ श्री हनुमान

शिव पुराणान्तर्गत श्री हनुमान जन्म का संक्षिप्त वृत्तान्त इस प्रकार है-एक समय भगवान शंकर को भगवान विष्णु के मोहिनी रूप के दर्शन प्राप्त हुए। उस समय ईश्वर इच्छा से राम कार्य की सिद्धि हेतु उनका वीर्य स्खलित हो गया। उस वीर्य को सप्तर्षियों ने पत्र-पुटक में सुरक्षित करके रख दिया। तत्पश्चात् उन्होंने ही शम्भू की प्रेरणा से उस वीर्य को गौतम कन्या अंजना में कान के रास्ते स्थापित किया। समय आने पर उस गर्भ से वानर शरीरधारी महापराक्रमी पुत्र का जन्म हुआ, जो शंकर-सुवन श्री हनुमान के नाम से विश्व में विख्यात हुए।

‘पवनतनय’ हनुमान

अप्सराओं में परम रूपवती पुन्जिकस्थला नाम की एक लोक विख्यात अप्सरा थी। इसी ने ऋषि के शाप से कामरूपिणी वानरी होकर पृथ्वी पर जन्म ग्रहण किया था। वही कपिल श्रेष्ठ केसरी की भार्या होकर अंजना नाम से विख्यात हुई। पर्वतश्रेष्ठ सुमेरू पर केसरी शासन करते थे। अंजना उनकी एक प्रियतमा पत्नी थी। वानर पति केसरी और अंजना दोनों एक दिन मनुष्य का वेष धारण कर पर्वत शिखर पर विहार कर रहे थे। अंजना का मनोहर रूप देखकर पवन देव मोहित हो गए और उन्होंने उसका आलिगंन किया। साधु चरित्रा अंजना ने आश्चर्यचकित होकर कहा -‘कौन दुरात्मा मेरा पातिव्रत्य धर्म नष्ट करने को तैयार हुआ है? मैं अभी शाप देकर उसे भस्म कर दूंगी।’

सती साध्वी अंजना की यह बात सुनकर पवन देव ने कहा, ‘सुश्रोणि! मैंने तुम्हारा पातिव्रत्य नष्ट नहीं किया है, यदि तुम्हें कुछ भी संदेह हो तो उसे दूर कर दो। मैंने मानसिक स्पर्श किया है। उससे तुम्हें एक पुत्र होगा, जो शक्ति एवं पराक्रम में मेरे समान होगा, भगवान का सेवक होगा और बल-बुद्धि में अनुपमेय होगा। मैं उसकी रक्षा करूंगा। इस प्रकार भगवान शंकर ने अंश रूप से वायु का माध्यम लेकर अंजना के गर्भ से पुत्र उत्पन्न किया, जो भविष्य में शंकर-सुवन, पवन पुत्र केसरी नन्दन, आंजनेय आदि कहलाए।

 

(साभार – शशिकांत सदैव, साधना पथ)

 

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