dev bhasha sanskrit
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Devbhasha Sanskrit: भारत बहुभाषिक देश है। इतना ही नहीं भाषा वैज्ञानिकों का विचार है कि यहां पांच भाषा परिवारों की उपस्थिति है जो विश्व के किसी अन्य देश में नहीं है। ये पांच भाषा परिवार हैं, इंडो-आर्यन, द्रविड़, आस्ट्रो-एशियाटिक, तिब्बतो-बर्मन और अंडमानी। भारत में इन पांच भाषा परिवारों की भाषाएं आपस में सतत् संवाद में रही हैं।

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स्वतंत्रता के बाद यह अनुभव किया गया कि भारत (जो बहुभाषी देश है) में राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने के लिए पाठ्यक्रम की ऐसी रचना की जाए कि प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति एक से अधिक भाषाओं का जानकार हो। यही त्रिभाषी सूत्र के प्रारम्भ का कारण बना।

एक दूसरा कारण बना संवैधानिक प्रावधानों के परिणाम स्वरूप भाषा जैसे संवेदनशील मुद्दे पर राजनीतिक और क्षेत्रीय प्रतिक्रियाओं को देखते हुए तथा संविधान निर्माताओं ने हिन्दी की व्यापकता को स्वीकार करते हुए उसे संघ की राजभाषा स्वीकार किया। धारा 343 में कहा गया है कि ‘देवनागरी लिपि में हिन्दी, संघ की राजभाषा होगी धारा 351 में हिन्दी भाषा की वृद्धि, विकास और संवृद्धि को संघ का कर्तव्य माना गया है।

इसके साथ ही यह भी प्रावधान किया गया कि संविधान लागू होने के समय से 15 वर्ष तक संघ के सब राजकीय कार्यों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग सहभाषा के रूप में किया जाएगा।
राधाकृष्णन् आयोग, 1948- इस आयोग का सुझाव था कि उच्च माध्यमिक स्तर एवं उच्चतर माध्यमिक विद्यालय-स्तर पर छात्रों को तीन भाषाओं का ज्ञान कराया जाए, यथा
(1) क्षेत्रीय भाषा या मातृभाषा, (2) संघीयभाषा या संस्कृत भाषा,
(3) अंग्रेजी।
मुदालियर आयोग, 1952- इस आयोग का सुझाव था कि माध्यमिक स्तर तक छात्रों को इन भाषाओं में से 3 भाषाएं पढ़ाई जाएं- (1) मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा या मातृभाषा और एक शास्त्रीय भाषा संस्कृत का मिश्रित पाठ्यक्रम, (2) इनमें से चुनी गई एक अन्य भाषा (3) एक शास्त्रीय भाषा संस्कृत।
भावात्मक एकता समिति- इस समिति ने भी त्रिभाषा-सूत्र का समर्थन किया, जिसमें संस्कृत को प्रमुख रखा था।
देश की आवश्यकताओं के सन्दर्भ में ‘केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड ने 1956 ई. में त्रिभाषा-सूत्र का प्रतिपादन किया। बोर्ड ने सरकार के अनुमोदनार्थ ये दो सूत्र प्रस्तुत किए-(1) (क) मातृभाषा या (ख) क्षेत्रीय भाषा या (ग) मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषा का मिश्रित पाठ्यक्रम या (घ) क्षेत्रीय भाषा और एक शास्त्रीय भाषा का मिश्रित पाठ्यक्रम, (2) हिन्दी या अंग्रेजी, (3) एक आधुनिक भारतीय भाषा या एक आधुनिक यूरोपीय भाषा।
त्रिभाषा-सूत्र का अन्तिम रूप, 1968- भारत सरकार ने ‘शिक्षा की राष्ट्रीय नीति के अंतर्गत 1968 में इस सूत्र के सभी रूपों का अध्ययन करने के पश्चात् 1968 में यह अन्तिम रूप प्रदान किया, जिसके अनुसार उच्चतर माध्यमिक स्तर पर इन तीन भाषाओं का अध्ययन अनिवार्य है-

  1. हिन्दी-भाषा राज्यों में- हिन्दी, अंग्रेजी और भारतीय भाषा, (जिसमें दक्षिण की कोई भाषा या संस्कृत भाषा होनी चाहिए।
  2. अहिन्दी-भाषी राज्यों में- हिन्दी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषा होगी।
    भारत की केन्द्रीय सरकार द्वारा स्वीकृत दिल्ली सरकार के विद्यालयी शिक्षा अधिनियम 1973 के नियमानुसार 10वीं कक्षा तथा तीन भाषायें पढ़ानी चाहिए परन्तु पब्लिक स्कूलों में 2 भाषायें केवल अंग्रेजी और विदेशी भाषाएं जैसे जर्मन, फ्रेंच, स्पेनिश, जापानी पढ़ाई जा रही हैं। केन्द्रीय विद्यालयों में 6वीं कक्षा से जर्मन पढ़ा रहे हैं।
    अच्छा हुआ कि संस्कृत प्रेमियों द्वारा उच्च न्यायालय ने अपील करने पर निर्णय दिया है कि जर्मन की जगह संस्कृत पढ़ाई जाए। अब हम भारतीयों का कर्तव्य बन जाता है कि हम अपने बच्चों में संस्कृत भाषा के प्रति रुचि और प्रेम स्थापित करें।