Strawberry Micro Moon
Strawberry Micro Moon

Strawberry Micro Moon: 11 जून 2025 की रात को आकाश प्रेमियों के लिए एक अद्वितीय खगोलीय घटना होने वाली है। इस रात आसमान में ‘स्ट्रॉबेरी मून’ का रहस्यमयी और दुर्लभ नजारा देखने को मिलेगा, जो अब 2043 तक फिर से नहीं दिखेगा। जब ‘स्ट्रॉबेरी मून’ एक ‘माइक्रो मून’ और ‘मेजर लूनर स्टैंडस्टिल’ के अनोखे संगम के साथ दिखाई देगा। यह अद्भुत नजारा अब अगले 18.6 सालों तक, यानी 2043 तक फिर से देखने को नहीं मिलेगा। इसलिए, यदि आप खगोल विज्ञान में रुचि रखते हैं या बस एक अविस्मरणीय प्राकृतिक दृश्य देखना चाहते हैं, तो आज रात अपनी नज़रें आसमान पर टिकाए रखें।

क्या है ‘स्ट्रॉबेरी मून’ और क्यों है खास?

‘स्ट्रॉबेरी मून’ जून माह की आखिरी पूर्णिमा को कहा जाता है। हालांकि, इसका रंग स्ट्रॉबेरी जैसा लाल नहीं होता। इसका नाम अमेरिकी आदिवासी परंपराओं से जुड़ा है, जहाँ जून के महीने में स्ट्रॉबेरी की कटाई शुरू होती थी, और यह पूर्णिमा इस मौसम की शुरुआत का प्रतीक होती थी।

इस बार का स्ट्रॉबेरी मून बेहद खास है क्योंकि यह एक ‘माइक्रो मून’ भी होगा। ‘माइक्रो मून’ तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी से अपनी कक्षा में सबसे अधिक दूरी पर होता है, जिसे ‘अपोजी’ (Apogee) कहते हैं। इस स्थिति के कारण चंद्रमा सामान्य से थोड़ा छोटा और धुंधला दिखाई देता है।

‘मेजर लूनर स्टैंडस्टिल’ का दुर्लभ संयोग

इस साल का स्ट्रॉबेरी मून सिर्फ ‘माइक्रो मून’ होने की वजह से ही खास नहीं है, बल्कि यह ‘मेजर लूनर स्टैंडस्टिल’ (Major Lunar Standstill) की घटना के साथ भी मेल खा रहा है। यह एक खगोलीय घटना है जो हर 18.6 साल में एक बार होती है। इस दौरान चंद्रमा आकाश में अपनी सबसे उत्तरी और सबसे दक्षिणी स्थिति तक पहुंचता है। इसका मतलब है कि चंद्रमा क्षितिज पर सामान्य से बहुत कम या बहुत अधिक ऊंचाई पर दिखाई देगा। इस दुर्लभ संयोग के कारण 11 जून 2025 का स्ट्रॉबेरी माइक्रो मून वाकई में एक अद्वितीय खगोलीय दृश्य होगा। अगली बार ऐसा चांद 2043 में ही नजर आएगा।

भारत में कब और कहाँ देखें?

Strawberry Micro Moon
Strawberry Micro Moon When and where to watch in India?

भारत में आकाशदर्शी इस अद्भुत नजारे को सूर्यास्त के बाद दक्षिण-पूर्व दिशा में देख सकते हैं। देश के प्रमुख शहरों में यह दृश्य लगभग रात 7 बजे के बाद दिखाई देगा।

दिल्ली: रात 7 बजे के बाद

मुंबई: रात 7 बजे के बाद

कोलकाता: रात 7 बजे के बाद

बेंगलुरु: रात 7 बजे के बाद

आकाशदर्शियों को इस दुर्लभ खगोलीय घटना को देखने के लिए शहर की रोशनी से दूर और खुले स्थान पर जाने की सलाह दी जाती है ताकि चंद्रमा का स्पष्ट और मनोरम दृश्य देख सकें। दूरबीन या टेलिस्कोप का उपयोग इस नज़ारे को और भी बेहतर बना सकता है।

स्ट्रॉबेरी मून’ का वैज्ञानिक महत्व और अवलोकन

पेरिजी और अपोजी: चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर एक अंडाकार कक्षा में घूमता है। जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है, उसे पेरिजी (Perigee) कहते हैं, और जब सबसे दूर होता है, उसे अपोजी (Apogee) कहते हैं। 11 जून 2025 का ‘स्ट्रॉबेरी मून’ अपोजी स्थिति में होगा, इसलिए इसे ‘माइक्रो मून’ कहा जा रहा है, जो इसे सामान्य पूर्णिमा से थोड़ा छोटा और कम चमकीला दिखाएगा।

प्रकाश और चमक: माइक्रो मून के दौरान, चंद्रमा का व्यास लगभग 14% छोटा और उसकी चमक लगभग 30% कम हो सकती है, जिससे यह थोड़ा धुंधला दिखाई देगा।

अगला मेजर लूनर स्टैंडस्टिल: जैसा कि मैंने बताया, मेजर लूनर स्टैंडस्टिल हर 18.6 साल में होता है। 2025 के बाद अगला ऐसा नजारा 2043 में ही देखने को मिलेगा, जो इसे वाकई दुर्लभ बनाता है।

खगोलविदों के लिए: यह घटना खगोलविदों और शौकिया आकाशदर्शियों दोनों के लिए चंद्रमा की कक्षा और उसके पृथ्वी के साथ संबंध को समझने का एक शानदार अवसर है। वे चंद्रमा के उदय और अस्त होने की स्थिति में बदलाव का अध्ययन कर सकते हैं।

अवलोकन के लिए अतिरिक्त सुझाव

शहरों में प्रकाश प्रदूषण (light pollution) के कारण चंद्रमा का स्पष्ट दृश्य देखना मुश्किल हो सकता है। यदि संभव हो, तो शहर की रोशनी से दूर किसी ग्रामीण इलाके या पहाड़ पर जाकर अवलोकन करना बेहतर होगा।

मौसम की भूमिका

बादल रहित आकाश इस घटना को देखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। यदि बादल छाए रहते हैं, तो दृश्य बाधित हो सकता है। अवलोकन से पहले स्थानीय मौसम की भविष्यवाणी (weather forecast) की जाँच करना उचित रहेगा।

हालांकि चंद्रमा को नंगी आंखों से भी देखा जा सकता है, एक छोटी दूरबीन या टेलीस्कोप का उपयोग करने से आप इसकी सतह की बारीकियों को बेहतर ढंग से देख पाएंगे और ‘माइक्रो मून’ प्रभाव को भी समझ पाएंगे।

यदि आप फोटोग्राफी के शौकीन हैं, तो यह एक शानदार मौका है। लंबी एक्सपोजर सेटिंग्स और एक तिपाई (tripod) का उपयोग करके आप इस दुर्लभ घटना को कैप्चर कर सकते हैं।

सांस्कृतिक महत्व और इतिहास

अलग-अलग नाम: ‘स्ट्रॉबेरी मून’ उत्तरी अमेरिकी जनजातियों से जुड़ा नाम है। दुनिया के अन्य हिस्सों में इस पूर्णिमा को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे, यूरोपीय इसे ‘रोज मून’ (Rose Moon) या ‘हॉट मून’ (Hot Moon) कहते हैं, जो जून के गुलाबों के खिलने या गर्मी की शुरुआत का प्रतीक है।

पुराणों में चंद्रमा: कई संस्कृतियों में चंद्रमा को पवित्र माना जाता है और पूर्णिमा की रातों का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व होता है। यह घटना भी कई परंपराओं में उत्सव का अवसर मानी जाती है।

मैं रिचा मिश्रा तिवारी पिछले 12 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हूं। विभिन्न न्यूज चैनल के साथ काम करने के अलावा मैंने पीआर और सेलिब्रिटी मैनेजमेंट का काम भी किया है। इतने सालों में मैंने डायमंड पब्लिकेशंस/गृह लक्ष्मी, फर्स्ट...