रत्न मनुष्यों के लिए प्रकृति की एक अद्ïभुत देन है। आदिकाल से ही मनुष्य रत्नों के प्रति विशेष रूप से आकर्षित रहा है। रत्नों का संबंध विभिन्न ग्रह-नक्षत्रों से है इसका विवरण हमारे पुराणों एवं ग्रंथों में मिलता है और आज का विज्ञान भी इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं है। मनुष्य प्रारम्भ से ही विभिन्न रत्नों का उपयोग गहनों, आभूषणों आदि के रूप में करता आया है। विशेषकर इन रत्नों का उपयोग अंगूठी के रूप में किया जाता है जिसे उंगली में धारण किया जाता है। रत्नों का अंगूठी के रूप में उंगली में धारण करना भी एक विशेष प्रयोजन रखता है। इन रत्नों एवं अंगूठी का उंगली पर पड़ने वाला दबाव हमारे मानस पर एक विशेष प्रभाव डालता है। इससे हमारे जीवन में भारी परिवर्तन संभव है, लेकिन रत्न धारण करने की भी एक विशेष विधि होती है, रत्नों का पूर्ण शास्त्रोक्त विधि अनुसार धारण करने से इनका शुभ परिणाम शीघ्र प्राप्त होता है। जिस प्रकार हम विभिन्न ग्रहों की पूजा-उपासना करते हैं तो हमें इन ग्रहों से संबंधित रत्नों को धारण करते समय भी कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिये।
माणिक्य
जो माणिक्य धारण किया जाये वह कम-से-कम ढाई रत्ती का हो और यथा संभव शुभ हो। उसको रविवार, सोमवार तथा बृहस्पतिवार को खरीदकर सोने की अंगूठी में इस प्रकार जड़ा जाय कि वह त्वचा को स्पर्श करे। धारण करने से पहले अंगूठी को कच्चे दूध या गंगाजल में डुबोकर रखना चाहिए। फिर उसको शुद्ध जल से स्नान कराकर पुष्प, चंदन और धूप-बत्ती में उसकी उपासना करनी चाहिए और 7000 बार निम्नलिखित मंत्र का जप करना चाहिए-
ऊं घृणि: सूर्याय नम:।
यह अंगूठी दाहिने हाथ की तर्जनी अंगुली में पहननी चाहिए।
माणिक्य एक महंगा रत्न है और संभव है, बहुत लोग उसको खरीदने में असमर्थ रहें। वे माणिक्य की बदल के रूप में लालड़ी लाल रंग का तामड़ा सूर्यकांत मणि या माणिक्य के रंग का जिरकन पहन सकते हैं।
सावधानी
माणिक्य और उसके बदले रत्नों के साथ हीरा, नीलम और गोमेद कभी नहीं धारण करें।
मोती
2,4,6 अथवा 11 रत्ती का मोती चांदी की अंगूठी में सोमवार या बृहस्पतिवार को खरीदकर या जड़वाकर किसी शुक्ल पक्ष के सोमवार को जो उपासनादि की विधि के अनुसार पूजा करके तथा 11,000 बार निम्नलिखित मंत्र जप करने के पश्चात् संध्या के समय धारण करें। यदि चंद्र के दर्शन करके धारण करें तो और भी अच्छा होगा।
मंत्र- ऊं सो सोमाय नम:।
यदि मोती न पहन सकें तो चन्द्रकांत मणि धारण करनी चाहिए। मोती के बदले वाले रत्न के साथ हीरा, पन्ना, नीलम, व गोमेद कभी नहीं पहनना चाहिए।
मूंगा
मूंगा सोने की अंगूठी में जड़ा जाना चाहिए। मूंगे का वजन 6 रत्ती से कम नहीं होना चाहिए। मूंगा यदि मंगलवार के दिन खरीदा जाए और अंगूठी में जड़वाया जाय तो उत्तम होगा। मूंगे की अंगूठी को विधिपूर्वक उपासनादि करके तथा 10,000 बार मंत्र जप करने के पश्चात्ï किसी शुक्ल पक्ष के मंगलवार को सूर्योदय से एक घंटे पश्चात्ï धारण करना चाहिए। अंगूठी दाहिने या बायें हाथ की अनामिका अंगूठी में धारण करनी चाहिए।
मंत्र- ऊं अं अंगारकाय नम:।
यदि मूंगे के बदले संगमूंगी, तामड़ा (लाल), लाल जेस्पर और अम्बर (कहरूवा) धारण कर सकते हैं।
सावधानी- मूंगे के साथ हीरा, नीलम, गोमेद तथा वैदूर्य धारण न करें।
पन्ना
पन्ना जहां तक हो सके चांदी की अंगूठी में बुधवार को जड़वाना चाहिए। फिर विधिपूर्वक उसकी उपासना करके और मंत्र का 9000 बार जप करके किसी शुक्ल पक्ष के बुधवार को सूर्योदय के दो घंटे बाद धारण करना चाहिए। पन्ना सोने के अंगूठी में भी पहन सकते हैं परंतु चांदी की उत्तम रहती है। वजन 5 रत्ती से कम नहीं होना चाहिए। जहां तक हो सके अंगूठी दाहिने हाथ की कनिष्ठा उंगली में धारण करना चाहिए।
मंत्र- ऊं बुं बुधाय नम:।
पन्ने के बदले में एक्वामेरीन हरे रंग का जिरकन, फीरोजा या पेरीडॉट धारण करना चाहिए।
सावधानी- पन्ने के साथ मूंगा धारण नहीं करना चाहिए।
पुखराज
पुखराज को सोने की अंगूठी में जड़ा जाना चाहिए। श्रेयस्कर यही होगा कि यह कार्य बृहस्पतिवार को संपन्न किया जाए। 5 रत्ती से कम के पुखराज से कोई लाभ नहीं होता, यह रत्न सात या बारह या पांच रत्ती की होनी चाहिए। विधि के बाद 19,000 निम्नलिखित मंत्र जप करके किसी शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार को सूर्यास्त से एक घंटे पूर्व श्रद्धापूर्वक पुखराज की अंगूठी को तर्जनी अंगुली में धारण करना चाहिए।
मंत्र- ऊं बृं बृहस्पतये नम:।
पुखराज के बदले में पीला मोती, पीला जिरकन या सुनेला धारण करना चाहिए।
सावधानी- पीले पुखराज के साथ हीरा, नीलम, गोमेद और वैदूर्य कभी नहीं धारण करना चाहिए।
हीरा
हीरा प्लेटिनम या चांदी की अंगूठी में धारण करना चाहिए। जहां तक हो सके शुक्रवार के दिन ही यह अंगूठी बनवाई जाए। हीरा 50 सैन्ट से लेकर 1/2 रत्ती का धारण करें तो काम चलेगा। अगर अधिक वजन का करें तो लाभ ही होगा। उपासना के बाद मंत्र को 16,000 बार जपकर किसी शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को प्रात: काल श्रद्धा के साथ कनिष्ठा उंगली में अंगूठी को धारण करें।
मंत्र- ऊं शुं शुक्राय नम:।
हीरे के बदले 5 रत्ती से अधिक वजन का सफेद जिरकन या सफेद तुरमली धारण कर सकते हैं। अगर इसमें भी असमर्थ हो तो सफेद स्फटिक (ओपेल) कम से कम 6 रत्ती वजन की चांदी की अंगूठी में धारण करें।
सावधानी- हीरे के साथ माणिक्य, मोती, मूंगा या पीला पुखराज धारण नहीं करना चाहिए।

नीलम
नीलम को शनिवार के दिन पंच धातु या स्टील की अंगूठी में जड़वाकर विधि अनुसार उसकी उपासनादि करके सूर्यास्त से दो घंटे पूर्व मध्य उंगली में धारण करना चाहिए। रत्न का वजन चार रत्ती से कम नहीं होना चाहिए तथा मंत्र का 23 हजार बार जप करना चाहिए।
मंत्र- ऊं शं शनैश्चराय नम:।
जो व्यक्ति नीलम खरीदने में अमसर्थ हो बदले में नीलम, जिरकन, कटैला या लाजवन्ति धारण कर सकते हैं।
सावधानी- नीलम के साथ माणिक्य, मोती, पीला पुखराज या मूंगा कभी भी धारण नहीं करना चाहिए।
गोमेद
शनिवार के दिन अष्ट धातु की (यह संभव न हो तो चांदी की) अंगूठी के गोमेद जड़वाकर सांयकाल के दो घंटे बाद विधि अनुसार रत्न की उपासना, जपादि करके मध्यमा उंगली में धारण करना चाहिए। गोमेद का वजन 6 रत्ती से कम नहीं होना चाहिए। राहु के मंत्र की जप संख्या 18000 है। मंत्र इस प्रकार है-
ऊं रां राहुवे नम:।
गोमेद एक अल्पमोली रत्न हैं। इसके बदले मे कोई दूसरा रत्न आप धारण नहीं करें तो ही अच्छा होगा यदि आपको दूसरा ही रत्न धारण करना हो तो गोमेद के रंग का हकीक पत्थर इस्तेमाल कर सकते हैं।
गोमेद के साथ माणिक्य, मूंगा और मोती कभी नहीं धारण करना चाहिये, हो सके तो पीला पुखराज भी इसके साथ न धारण करें।
लहसूनिया (वैदूर्य)
चांदी की अंगूठी में शनिवार को तैयार करवा करके, विधिपूर्वक उसकी उपासना जपादि करें और फिर श्रद्धा सहित इसको अर्द्ध रात्रि के समय मध्यमा या कनिष्ठा उंगली में धारण करें। निम्नलिखित केतु के मंत्र की जप संख्या 17000 है। रत्न का वजन तीन रत्ती से कम नहीं होना चाहिए।
मंत्र- ऊं के केतवे नम:।
वैदूर्य के बदले में स्फटिक वर्ग का लहसुनिया या दरियाई लहसुनिया पहना जा सकता है। कुछ विद्वानों का मत है कि चंद्रकांत वैदूर्य के बदले में धारण किया जा सकता है, परंतु हम इस मत से सहमत नहीं है। जब चंद्रकांत चंद्र का रत्न है तो उसके शत्रु केतु का रत्न वह कैसे बनाया जा सकता है?
सावधानी- केतु के रत्न के साथ माणिक्य, मूंगा, मोती और पीला पुखराज नहीं धारण करना चाहिए।
रत्नों का उपयोग कब प्रारंभ करें?
रत्नों का उपयोग कब प्रारंभ किया जाये, यह प्रश्न महत्त्व का है। किसी भी वस्तु का उपयोग करने का एक निश्चित समय होता है, उचित समय पर रत्नों का उपयोग किया जाना शुभ फल प्रदान करने में सहायक होता है। देखिए कि किस रत्न को किस समय धारण करना चाहिए।
चन्द्रमा
मोती की अंगूठी का उपयोग प्रारंभ करने के लिए शुक्ल पक्ष की अष्टमी का मुहूर्त्त माना गया है, क्योंकि प्रतिपदा को चन्द्र क्षीण होता है और पूर्णिमा के दिन वह वृद्ध हो जाता है। अष्टमी को वह बलवान बनता है। उसी प्रकार पत्रिका में कर्क या वृषभ राशि में, जिस दिन चन्द्र प्रवेश करता है वह दिन चन्द्र की अंगूठी धारण करने का शुभ मुहूर्त्त माना गया है।
मंगल
पत्रिका में कर्क राशि का मंगल जिस समय व्यय भाव में जाता है, वह दिन मुहूर्त्त का माना जाये। चन्द्र-मंगल, शुक्र-मंगल या बुध-मंगल के प्रति योग में, मंगल के रत्न का उपयोग नहीं करना चाहिए।
बुध
बुध-मंगल या बुध-शनि के प्रतियोग का समय, बुध की अंगूठी का उपयोग करने के लिए अनुकूल रहता है। इस योग के सिवाय अन्य किसी समय में पन्ने की अंगूठी का उपयोग, प्रारम्भ न किया जाये।
गुरु
गुरु की अंगूठी का उपयोग किसी भी शुभ मुहूर्त्त पर किया जाये। गुरु पुष्यामृत योग के समय पर धारण की हुई अंगूठी अधिक लाभकारी होती है। उसी प्रकार गुरु-शनि या गुरु-मंगल का प्रतियोग अथवा जब नवपंचम् योग हो, वह दिन भी इस काम के लिए मुहूर्त्त माना जाए।
शुक्र
शुक्र-चन्द्र या शुक्र-बुध युति जिस दिन लाभस्थान में हो, वह दिन शुक्र की अंगूठी का उपयोग प्रारम्भ करने के लिए शुभ माना जाता है। शुक्र के अस्तकाल में अंगूठी का उपयोग प्रारम्भ न किया जाये।
शनि
पहले बताया जा चुका है उसके अनुसार, जिस समय अष्टम् या व्यय स्थान में शनि आता है, वही दिन मुहूर्त्त का माना जाये। इसके लिए अन्य कोई भी दिन अनूकूल नहीं है।
सूर्य
यह ग्रह अत्यन्त प्रखर और अन्य सभी ग्रहों का स्वामी होने के कारण सूर्य की अंगूठी का उपयोग प्रारम्भ करने के लिए किसी खास मुहूर्त्त की आवश्यकता नहीं रहती। किन्तु यदि सिंह राशि का सूर्य, लग्न या दशम् स्थान में हो तो संक्रांति के बाद 3 दिनों के पश्चात् माणिक्य रत्न की अंगूठी का प्रयोग किया जा सकता है।

इस प्रकार समझ सकते हैं कि विभिन्न ग्रहों के विभिन्न रत्नों को अंगूठी में जड़वाकर या अन्य विधियों से धारण करने से पूर्व शास्त्रोक्त विधि अनुसार मंत्र सिद्ध करके शुद्ध किया जाना चाहिए उसके पश्चात् ही धारण करना चाहिए। इससे संबंधित ग्रह प्रसन्न होकर अतिशीघ्र शुभ फल प्रदान करते हैं और जातक को समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है।
रत्नों के विशिष्ट गुण
रत्नों में रंग तीव्रता की उपस्थिति उनके रूप और चमक को प्रभावित करती है।
एक ही रत्न में विभिन्न रंगों की उपस्थिति, विभिन्न कोणों से उसका भिन्न रंग दिखाई देना कौतूहलवर्धक भले ही हो, उस रत्न को सदोश बनाता है।
जिस रत्न से ज्योति-रश्मियां निकल रही हों, ऐसा किरणयुक्त रत्न बहुत मूल्यवान होता है। माणिक्य और नीलम में यह गुण प्राय: मिलता है। सूर्य के प्रकाश में इस प्रकार के रत्नों से किरणें निकलने लगती है।
चमक की तरह दमक भी रत्नों के लिए एक महत्त्वपूर्ण गुण है। दमक का अर्थ छटा (आभा) होता है। दमक (द्युति) की अधिकता उस रत्न को अत्यधिक मूल्यवान बना देती है। पर यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक रत्न में द्युति हो ही। नहीं भी हो सकती अथवा कम या ज्यादा भी हो सकती है। हीरे का मूल्यांकन उसकी दमक (आभा) के आधार पर ही होता है। देश की कितनी ही देव-प्रतिमाओं में ऐसे जाज्वल्मान हीरे जड़े हुए है, जिनकी दमक से आंखें चौंधिया जाती है। पुराने रजवाड़ों के पास आज भी इस कोटि के रत्न सुरक्षित हैं। गोला गोकर्णनाथ और बद्रीनाथ के दर्शन करने वालों को अनुभव है कि उन मंदिरों में मौजूद हीरे (देव-प्रतिमाओं के अलंकरण-रूप में प्रयुक्त) ठीक उसी प्रकार दमकते रहते हैं, जैसे आकाश में शुक्र ग्रह।
रत्नों का एक गुण पारदर्शिता भी है।
रत्नों में ताल-चालकता भी होती है। किंतु यह प्रभाव सब रत्नों में एक जैसा न होकर भिन्नतापूर्ण होता है। कुछ रत्न ताप के सुचालक होते हैं। उनका स्पर्श करने पर शीतलता की अनुभूति होती है। दूसरी श्रेणी में वे रत्न आते हैं जो ताप के कुचालक कहे जाते हैं। उन्हें छूने पर गर्मी मालूम होती है। भौतिक एवंम्ï वैज्ञानिक दृष्टि से हीरा एक ताप सुचालक रत्न है, जबकि कुछ अन्य रत्न पुखराज और मूंगा) ताप के कुचालक माने जाते हैं।
सारांश यह है कि रत्न स्वयं में अद्ïभुत पदार्थ हैं, जोकि भौतिक और दैविक दोनों दृष्टियों से गुण संपन्न, प्रियदर्शी, अद्ïभुत प्रभावशाली और मूल्यवान होते हैं।
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