पत्नी को पति की वामांगी क्यों कहा गया, जानें क्या है शिव से जुड़ी कथा: Ardhanarishvara Katha

Ardhanarishvara Katha: हमारी जिंदगी में जो कुछ भी होता है, उसके पीछे कोई ना कोई वजह जरूर होती है, जैसे अक्सर हमने देखा है कि शादी के समय पर सात फेरों के शुरू होने के समय पर लड़की लड़के के सीधी या दाई तरफ़ बैठती है और जैसे ही सात फेरे सम्पन्न होते हैं, पंडित जी लड़की को लड़के के बाई या उल्टी तरफ़ बैठा देते है। क्योंकि लड़की या पत्नी का लड़के के उल्टी तरफ़ बैठना या सोना शुभ माना जाता है।

क्या कहती है पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने जब अर्धनारेश्वर रूप लिया था तब उनके बाएं अंग से ही स्त्री तत्व यानी कि माता पार्वती प्रकट हुईं थीं। जिससे उस समय प्रकति में होने वाले आसमाज्स्य को रोकने के लिए ब्रह्मा के कहने पर शिव ने अपने शरीर से नारी रूप को अलग किया और प्रकति को जननी मिली, क्योंकि जननी ने सृष्टि को नारी रुप में शिव के बाएं अंग से प्रकट होकर बचाया था, क्योंकि शिव और शक्ति हिन्दू धर्म में पति-पत्नी के आदर्श है इसलिए जब से स्त्री तत्व को हिन्दू धर्म में पत्नी को वामांगी कहा गया है। वामांगी का अर्थ है बाएं अंग की अधिकारी। पुरुष का बायां अंग स्त्री के हिस्से का माना जाता है। यही कारण है कि किसी भी शुभ काम में पत्नी को पति के बाईं तरफ का स्थान प्राप्त होता है। इसी में शामिल है पत्नी के पति की बाईं ओर सोना। मान्यता है कि पत्नी का पति की बाईं तरफ सोना बहुत शुभ माना जाता है। इससे वैवाहिक जीवन में सुख, समृद्धि और संपन्नता बनी रहती है। पत्नी का पति के बाईं तरफ सोना वैवाहिक जीवन के लिए उत्तम और पति के लिए शुभ माना जाता है। इससे पति की रक्षा भी होती है।

शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्री पुरुष की वामांगी होती है इसलिए सोते समय और सिंदूरदान, द्विरागमन, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री पति के बायीं ओर रहना चाहिए। इससे शुभ फल की प्राप्ति होती।

वामंगी करती है पति की रक्षा

Ardhanarishvara Katha
Shiv Parvati

मान्यता है कि जब यमराज सत्यवान के प्राण हरने आए थे तब वह बाईं ओर से आए थे और सावित्री ने अपने पति की रक्षा कर उनके प्राण बचाए थे। ऐसे में पत्नी के पति के बाईं ओर सोने से पति की यमराज से रक्षा होती है और किसी भी आपदा से पत्नी अपने पति को बचा सकती है।

इन कामों में पति को बायीं ओर होना चाहिए

वामांगी होने के बावजूद भी कुछ कामों में स्त्री को दायीं ओर रहने के बात शास्त्र कहता है। शास्त्रों में बताया गया है कि कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, जातकर्म, नामकरण और अन्न प्राशन के समय पत्नी को पति के दायीं ओर बैठना चाहिए।

क्यों है यह मान्यता

पत्नी के पति के दाएं या बाएं बैठने संबंधी इस मान्यता के पीछे तर्क यह है कि जो कर्म संसारिक होते हैं उसमें पत्नी पति के बायीं ओर बैठती है। क्योंकि यह कर्म स्त्री प्रधान कर्म माने जाते हैं। यज्ञ, कन्यादान, विवाह यह सभी काम पारलौकिक माने जाते हैं और इन्हें पुरुष प्रधान माना गया है। इसलिए इन कर्मों में पत्नी के दायीं ओर बैठने के नियम हैं।