changes in depression
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डिलीवरी के बाद थकान या अनिंद्रा नहीं पोस्टपार्टम डिप्रेशन के हैं ये गंभीर लक्षण

डिलीवरी के बाद होने वाले डिप्रेशन को पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहा जाता है।इसके बारे में बहुत से लोगों को आज भी जानकारी नहीं है।कई लोग तो यहाँ तक कहते देखे जाते हैं ये सारी परेशानी नींद पूरी ना होने और थकान की वजह से है।अगर आप किसी ऐसी महिला को जानते हैं,जिन्हे डिलीवरी के बाद इस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो कोशिश करें आप उनकी हर संभव मदद कर पाएं।

Postpartum Depression: प्रेग्नेंसी एक महिला के लिए उसकी ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत समय होता है।शरीर में इतने सारे बदलाव,होर्मोनेस का चेंज होना,अलग अलग तरह कि तकलीफों का सामना करने के बावजूद भी उसके मन में अपने आने वाले बच्चे के लिए ढेर सारा प्यार और ममता भरी होती है।अनगिनत उतार चढ़ाव का सामना कर के एक महिला को माँ बनने का सुख मिलता है। इस खुशी और एहसास को वो शब्दों में बयान नहीं कर सकती है।नौ महीने का ये सफर पूरा करने के बाद जब माँ पहली बार बच्चे को अपने सीने से लगाती है तो वो अपनी सारे दुःख तकलीफ भूल जाती है।

वो खुद को भूल कर सिर्फ बच्चे के बारे में सोचना शुरू कर देती है।अचानक ही उसके मन में अनचाहा डर बैठने लगता है।वो बच्चे कि ठीक से देखभाल नहीं कर पायी तो, क्या वो एक अच्छी माँ बन पाएगी। इस तरह के हज़ारों सवाल हर वक़्त उसके मन में रोलर कोस्टर राइड की तरह घूमते हैं।

बस यहीं से जन्म लेता है पोस्टपार्टम डिप्रेशन।ये लगभग हर महिला के साथ होता है।

पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण

Postpartum Depression
It leads to depression

भूख ना लगना या जरुरत से ज़्यादा खा लेना।

चिड़चिड़ापन।

गुस्से में बेकाबू हो जाना।

बिना वजह बेचैन हो जाना,घबराना या चिंता से घिरे रहना।

बच्चे के साथ भावनात्मक रूप से ना जुड़ पाना।

 Depression
Stay connected with the women

हर समय नींद आना या नींद गायब हो जाना।

अत्यधिक थकान महसूस करना।

भावनाओं पर काबू न रख पाना।

बिना वजह या छोटी छोटी बातों पर रोने लगना।

सबसे सामजिक दूरी बना लेना।

हर बात के लिए खुद को दोषी ठहराना।

अकेला महसूस करना।

किसी भी काम में मन ना लगना।

कितने समय तक रहता है पोस्टपार्टम डिप्रेशन

Depression Reason
Last upto 3 years

बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं को इसका सामना करना पड़ता है।पहले हर कोई यहीं सोचता है इतने समय तक अलग अलग तरह की तकलीफों से गुजरने के बाद महिला के स्वभाव में थोड़ा बदलाव आ गया है या बच्चे के आने के बाद उसकी नींद पूरी नहीं हो पा रही है तो चिड़चिड़ापन और बेवजह का गुस्सा उस पर हावी है।इसी ग़लतफहमी में ये डिप्रेशन और बढ़ता चला जाता है।वैसे तो कहा जाता ही ये लगभग 4  से 6  हफ्ते में सामान्य होने लगता है।लेकिन इस से हैट कर कुछ महिलाओं में तो ये प्रेग्नेंसी के समाय से ही देखने को मिल जाता है और बच्चे के जन्म के लगभग 1  साल तक बना रहता है।कुछ महिलाओं को ये 3  से 4  साल तक भी अपने कब्जे में रखता है।

इन्हें है ज़्यादा खतरा

Emotional disbalance
Emotional disbalance

प्रेग्नेंसी में किसी तरह का कम्प्लीकेशन, या पहले बच्चे का ख़राब हो जाना,ज़्यादा उम्र में माँ बनने पर इस तरह कि परेशानी का सामना करना पड़ता है। यदि किसी महिला को पहले से कोई मानसिक बीमारी रह चुकी है या उसने परिवार में कुछ बुरा होते हुए देखा है तो भी ये इसकी एक वजह हो सकती है। साथी का सपोर्ट न मिलना या परिवार से पूरी तरह सहारा ना मिलने पर भी डिप्रेशन खतरनाक रूप ले लेता है।

इस तरह करें मदद

Take care of your spouse

इस समय महिला को अपने पति की सबसे जयादा जरुरत होती है।पति को थोड़ा समय निकाल कर अपने हमसफ़र के साथ बैठ कर ढेर साड़ी बातें करनी चाहिए।पुराने फोटोज़ निकाल कर उनसे जुडी यादें ताज़ा करें।उसे यकीन दिलाएं वो एक अच्छी इंसान होने के साथ साथ अच्छी लाइफ पार्टनर और माँ भी है।उसे धन्यवाद आँखें उसने जिंदगी के हर उतार चढ़ाव में आपका साथ दिया है और आगे भी आपको हमेशा उनकी जरुरत होगी।वो आपकी जिंदगी का अनमोल हिस्सा हैं।उनके पसंद का खाना बन कर उन्हें खिलाएं। किसी अच्छी जगह पर उनके साथ डेट प्लान करें।उनके सबसे पसंदीदा इंसान को उनसे मिलवाएं।

डॉक्टर से सलाह लें

Cosult with your doctor
Cosult with your doctor

पोस्टपार्टम डिप्रेशन को मामूली बीमारी समझ कर अनदेखा ना करें।इसमें डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।अगर ये सारे लक्षण यूँ ही बने रहे तो किसी भी तरह की लापरवाही ना बरतें।किसी एक महिला से दूसरी महिला की तुलना ना करें। हर महिला का पोस्टपार्टम डिप्रेशन अलग अलग तरह का होता है।किसी के लक्षण सामान्य होते है जिसे बेबी ब्लूज के नाम से जाना जाता है और ये कुछ ही हफ्तों में अपने आप चला जाता है। यहीं बेबी ब्लूज जब खत्म ना हो और बढ़ता ही चला जाए तो इसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहा जाएगा।किसी भी तरह की देरी ना करें समय रहते डॉक्टर से सलाह लें और उचित समय पर इलाज करवाएं।

खासकर इन स्तिथियों में डॉक्टर से परामर्श जरूर लें

Depression Symptoms
Never ignore these symptoms

अगर महिला के मन में बच्चे को या खुद को चोट पहुंचाने का ख्याल आ रहा है,या आपने उन्हें ऐसा करते हुए देखा है तो इसे नज़रअंदाज़ ना करें।

बच्चे पर जरा भी ध्यान ना होना।

किसी भी काम में मन ना लगना।

बोलचाल बंद कर देना।

पैनिक अटैक्स आना।

बिना वजह लगातार रोते रहना।

महिला को कुछ ऐसा दिखाई या सुनाई दे रहा हो जो उसके आस पास के लोगों को जरा भी महसूस ना हो रहा हो।

इस अवसाद का क्या है इलाज

Partner
Support your partner

परिवार का साथ

घर के सभी सदस्य महिला के साथ प्यार से पेश आएं। किसी भी स्तिथि में अपना आपा ना खोएं।इमोशनल सपोर्ट भी एक तरह से थेरेपी का काम करता है। जरुरी है इस स्थिति में महिला के पति को उनके साथ रहने की हिदायत दी जाए ताकि महिला को सुरक्षित महसूस हो।

थेरेपी

Therapy
Therapies can really help

इस तरह की परेशानी के लिए डॉक्टर कई तरह की थेरेपी की सलाह देते हैं,जिनमे से एक है टॉक थेरेपी।ये काफी कारगर थेरेपी है जो अवसाद के लक्षणों से मरीज को राहत दिलाती है।समय रहते ये थेरेपी दी जाए तो महिला के अवसाद से बाहर निकल आने में काम से काम समय लगता है और उसकी सेहत भी अच्छी बानी रहती है।इसकी मदद से वो अपने बच्चे के साथ अच्छा बॉन्ड बना पाती है। डिलीवरी के बाद महिला के शरीर में एस्ट्रोजन हॉर्मोन की कमी होने लगती है और इसी कमी को पूरा करने के लिए इसका इलाज हॉर्मोन थेरेपी से किया जाता है। इस से डिप्रेशन का असर धीरे धीरे काम होने लगता है और महिला सामान्य जीवन जीने लगती है।

उत्तराखंड से ताल्लुक रखने वाली तरूणा ने 2020 में यूट्यूब चैनल के ज़रिए अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद इंडिया टीवी के लिए आर्टिकल्स लिखे और नीलेश मिश्रा की वेबसाइट पर कहानियाँ प्रकाशित हुईं। वर्तमान में देश की अग्रणी महिला पत्रिका...