हिंदू धर्म में सोमनाथ मंदिर का बहुत अधिक महत्व है। यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है। यह गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण चंद्रदेव ने किया था। सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग इस धरती का पहला ज्योतिर्लिंग है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा बड़ी विचित्र है। 

शिव पुराण की कथा के हिसाब से प्राचीन काल में राजा दक्ष ने अश्विनी समेत अपनी सत्ताईस कन्याओं का विवाह चंद्रमा से किया था। सत्ताईस कन्याओं का पति बन के चंद्रमा बेहद खुश हुए थे। कन्याएं भी चंद्रमा को वर के रूप में पाकर अति प्रसन्न थीं। लेकिन ये प्रसन्नता ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह पाई। क्योंकि कुछ दिनों के बाद चंद्रमा उनमें से एक रोहिणी पर ज्यादा मोहित हो गए। इस बात की जानकारी जब राजा दक्ष को हुई तो वो चंद्रमा को समझाने उनके पास गए। चंद्रमा ने उनकी सारी बातें ध्यानपूर्वक सुनीं लेकिन कुछ दिनों के बाद फिर रोहिणी पर उनकी आसक्ति और तेज हो गई।

जब राजा दक्ष को ये बात दोबारा पता चली तो वो गुस्से में तिलमिलाते हुए चंद्रमा के पास गए। उनसे कहा कि मैं तुमको पहले भी समझा चुका हूं। लेकिन लगता है शाश्द तुमने मेरी बात पर विचार नहीं किया था। तुम्हारे व्यवहास से रूष्ठ होकर मैं तुम्हें शाप देता हूं कि तुम क्षय रोग के मरीज हो जाओगे।

राजा दक्ष के इस श्राप के तुरंत बाद चंद्रमा क्षय रोग से ग्रस्त होकर धूमिल हो गए और धीरे धीारे उनकी रोशनी भी जाती रही। ये देखकर ऋषि मुनि बहुत परेशान हो गए। इसके बाद सारे ऋषि मुनि और देवता इंद्र के साथ भगवान ब्रह्मा की शरण में गए।

फिर ब्रह्मा जी ने उन्हें एक उपाय बताया। उपाय के हिसाब से चंद्रमा को सोमनाथ के इसी जगह पर आना था। भगवान शिव का तप करना था और उसके बाद ब्रह्मा जी के हिसाब से भगवान शिव के प्रकट होने के बाद वो दक्ष के शाप से मुक्त हो सकते थे।

इस जगह पर चंद्रमा आए। भगवान वृषभध्वज का महामृत्युंजय मंत्र से पूजन किया। फिर छह महीने तक शिव की कठोर तपस्या करते रहे। चंद्रमा की कठोर तपस्या को देखकर भगवान शिव खुश हुए। उनके सामने आए और वर मांगने को कहा। चंद्रमा ने वर मांगा कि हे भगवन अगर आप खुश हैं तो मुझे इस क्षय रोग से मुक्ति दीजिए और मेरे सारे अपराधों को क्षमा कर दीजिए।

भगवान शिव ने कहा कि तुम्हें जिसने शाप दिया है वो भी कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। लेकिन मैं तुम्हारे लिए अवश्य कुछ उपाय करूंगा। इसके बाद भगवान शिव ने चंद्रमा पर जो कृपा बरसाई उसे देखकर चंद्रमा न ज्यादा खुश हो सके और न ही उदास रह सके। दरअसल, भगवान शिव चंद्रमा की कठोर तपस्या से प्रसन्न हो उठे थे और वे उन्हें वर देना चाहते थे लेकिन जिन्होंने चंद्रमा को श्राप दिया है वो भी कोई साधारण हस्ती नहीं थे। असमंजस था ऐसा असमंजस जिसमें भगवान शिव भी पड़ गए थे।

अब भगवान शिव ने इस परिस्थ्तिि से बाहर निकलने का एक रास्ता निकाला। शिवजी चंद्रमा से कहते हैं कि मैं तुम्हारे लिए ये कर सकता हूं एक माह में जो दो पक्ष होते हैं, उसमें से एक पक्ष में तुम निखरते जाओगे। लेकिन दूसरे पक्ष में तुम क्षीण भी होओगे। ये पौराणिक राज है पंचांग का और चंद्रमा के शुक्ल और कृष्ण पक्ष का जिसमें एक पक्ष में वो बढ़ते हैं और दूसरे में वो घटते जाते हैं। भगवान शिव के इस वर से भी चंद्रमा काफी खुश हो गए। उन्होंने भगवान शिव का आभार प्रकट किया उनकी स्तुति की।

यहां पर एक बड़ा अच्छा रहस्य है। अगर आप साकार और निराकर शिव का रहस्य जानते हैं तो आप इसे समझ जाएंगे, क्योंकि चंद्रमा की स्तुति के बाद इसी जगह पर भगवान शिव निराकार से साकार हो गए थे। और साकार होते ही देवताओं ने उन्हें यहां सोमेश्वर भगवान के रूप में मान लिया। यहां से भगवान शिव तीनों लोकों में सोमनाथ के नाम से विख्यात हुए। जब शिव सोमनाथ के रूप में यहां स्थापित हो गए तो देवताओं ने उनकी तो पूजा की ही चंद्रमा को भी नमस्कार किया। क्योंकि चंद्रमा की वजह से ही शिव का ये स्वरूप इस जगह पर मौजूद है।

समय गुजरा। इस जगह की पवित्रता बढ़ती गई। शिव पुराण में कथा है कि जब शिव सोमनाथ के रूप में यहां निवास करने लगे तो देवताओं ने यहां एक कुंड की स्थापना की। उस कुंड का नाम रखा गया सोमनाथ कुंड।

कहते हैं कि कुंड में भगवान शिव और ब्रह्मा का साक्षात निवास है। इसलिए जो भी उस कुंड में स्नान करता है। उसके सारे पाप धुल जाते हैं। उसे हर तरह के रोगों से निजात मिल जाता है।

मान्यता है कि सावन के महीने में जो व्यक्ति प्रतिदिन इन ज्योतिर्लिंग के नामों का जाप करता है, तो उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। लोक परलोक दोनों में इसका लाभ प्राप्त होता है। सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। किसी भी कार्य को करने से पहले यदि सभी ज्योतिर्लिंग का नाम लिया जाता है तो उस कार्य के सफल होने की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं। साथ ही भगवान शिव का आर्शीवाद प्राप्त होता है।

सोमनाथ मंदिर गुजरात पर्यटन का एक विश्वविख्यात केंद्र है। सोमनाथ मंदिर के प्रांगड़ में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है। इस शो में सोमनाथ मंदिर के इतिहास का सचित्र वर्णन किया जाता है। सोमनाथ मंदिर को इतिहास में कई बार तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया है। वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण स्वतंत्रता के बाद लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 1951 में करवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया था। बता दें कि जूनागढ़ रियासत को भारत का हिस्सा बनाने के बाद तत्कालीन भारत के गृहमंत्री सरदार पटेल ने जुलाई 1947 में सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का आदेश दिया था।

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