सदियों से व्रत और उपवास कर जीवन के मूल्यों को समझने का प्रयास किया जा रहा है। व्रत एक ऐसा नियम है, जो हमारे शरीर को किसी खास चीज़ से नियंत्रित करता है। हिंदू धर्म में व्रत का एक खास महत्व है। लोग अपनी मान्यताओं औश्र पूजा पाठ के हिसाब से अलग अलग देवी और देवताओं के लिए साप्ताहिक यां फिर वार्षिक उपवास करते हैं। उपवास के लिए भी अलग अलग नियम तय किए गए हैं। ऐसे में उन नियमों का पालन करना भी बेहद आवश्यक माना जाता है। उपवाय आस्था का एक केन्द्र है, मगर साथ ही साथ आयुवेंद में भी इसे हमारे शरीर के लिए बेहद स्वास्थ्यवर्धक और एक प्रैक्टिस बताया गया है, जिससे हम अपनी इंन्द्रियों पर काबू पा सकते है। व्रत हमारी जीवनशैली को उज्जवल बनाने में कारगर ससाबित होता है। आइए जानते है, कुछ ऐसे व्रत और त्योहारों के बारे में ,जो हर महीने आते हैं। 

 

एकादशी 

हर महीने में दो बार एकादशी आती हैं। अगर हम बारह महीनों कह ताब करें, तो साल में  24 और अधिकमास के वक्त 26 एकादशी आती है। फर्क सिर्फ इतना है कि इन्हें महीनों कें हिसाब से अलग अलग नाम दे दिए गए हैं। 

 

प्रदोष

एकादशी के समाज हर महीने में प्रदोष के भी दो व्रत आते हैं। आमतौर पर सालभर में चौबीस और अगर अधिकमास पड़ता है, तो उस वक्त 26 प्रदोष व्रत होते हैं। इनका नाम सप्ताह के दिवस के हिसाब से अलग होता है।

 

चतुर्थी 

ऐसे ही हर महीने की शुरूआत के साथ ही  दो चतुर्थियां भी होती हैं, जिसमें व्रत का विधान है। जहां एक तरफ शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। तो वहीं कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है।

 

अमावस्या और पूर्णिमा 

इसी प्रकार हर महीने में  एक बार अमावस्या और एक बार पूर्णिमा आती है, जिसपर व्रत किए जाते हैं अर्थात एक वर्ष में इनकी कुल संख्या 24 और अधिकमास होने पर 26 होती हैं। परंतु इनके नाम अलग अलग होते हैं।

 

संक्रांति 

हर महीने सूर्य अपनी परिक्रमा करते हुए एक राशि से गुज़रकर दूसरी राशि में प्रवेश करता है। इस तरीके से हर साल बारह संक्रांतियां होती है। मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण होता है तो वहीं कर्क संक्रांति पर यह दक्षिणायन हो जाता है।

 

दूज, पंचमी, छठ, सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथियां

हर महीने होने वाली दूज, पंचमी, छठ, सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथियों पर भी व्रत रखने का विशेष विधान हैं। इन व्रत की पूरे  विधि विधान से पूजा भी होती हैं। यह सभी तिथियां सनातन धर्म के विभिन्न देवी.देवताओं को समर्पित होती हैं।