जयपुर और शिमला जैसे शहरों में पली बढ़ी सरीता माथुर एक लेखिका होने के साथ-साथ चित्रकार, रेकी थेरेपिस्ट और मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं। बचपन से कविता लिखने की शौकीन सरीता ने बड़े होते हुए ये समझ लिया था कि वो लिखना बहुत पसंद करती हैं और किसी भी परिस्थिति में लेखनी नहीं छोड़ेंगी। हाल ही में उनकी किताब रिनेक्टिंग विद द हार्ट रिलीज़ हुई है।
इस किताब को लिखने के बारे में कैसे सोचा?
दरअसल लिखती तो मैं बहुत कम उम्र से ही हूं, लेकिन कुछ समय पहले मेरी सर्जरी हुई थी, और इसके ठीक बाद दवाइयों के असर से मैं बहुत ज्यादा डिप्रेशन में चली गई थी। उसके बाद नकारात्मक एहसास के उस दौर से खुद को निकालना और फिर सकारात्मकता की ओर बढ़ने के मेरे सफर ने मुझे इस किताब को लिखने की प्रेरणा दी।
आमतौर पर लेखक कुछ भी नया लिखने के लिए एकांत ढूंढता है। लेकिन एक लेखिका घर पर रहकर लिखते हुए ऐसा एकांत नहीं महसूस करती है। आपने कैसे मैनेज किया?
नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता कि मुझे कुछ भी नया लिखने के लिए सबसे अलग रहना या बैठने की जरूरत पड़ती है। मैं हमेशा अपने पास एक डायरी रखती हूं और जो भी ख्याल, शब्द या लाइन्स मेरे मन में आनते हैं उन्हें मैं लिखती हूं। अगर मेरे दिमाग में कुछ है तो मैं उसे सबके बीच भी बैठकर लिख सकती हूं।
आपको लिखने की प्रेरणा कहां से मिलती है?
मुझे लिखने की प्रेरणा हमेशा से प्रकृति से मिलती रही है। मेरे पापा सेना में थे और मैं बचपन में कई शहरों में रही हूं। मैंने अपनी पढ़ाई जयपुर और शिमला में की है और इन दोनों ही जगहों की प्राकृतिक सुन्दरता मेरे अंदर बसी है। आज भी जब पिछले कई सालों से मैं डरबन में रह रही हूं तो समुद्र की ऊंची लहरों को देखना मैं बहुत पसंद करती हूं। जैसे प्रकृति हर किसी को हवा, पानी, फल, फूल देती है, मुझे लगता है कि इंसानों में भी जीवन के प्रति इसी तरह का रवैया होना चाहिए।
आजकल युवा पीढ़ी किंडल, आईपैड के साथ -साथ ऑनलाइन कहानियां पढ़ रही है। आपको क्या लगता है?
हां, लेकिन ऐसा नहीं है कि वो हार्ड कॉपी बिलकुल नहीं खरीद रहे हों। आप बुक फेस्टिवल्स में किताब खरीजने वालों के देखेंगे तो पाएंगे कि सभी लोग आज भी किताबें खरीदना, पढ़ना उतना ही पसंद करती हैं। ऐसे भी युवा पीढ़ी का पढ़ना ज़रूरी है, फिर चाहे वो ऑनलाइन पढ़े या हार्ड कॉपि लेकर पढ़े। हमारे जेनरेशन के लोग तो किताब हाथ में लेकर ही शुरू से पढ़ना एन्जॉय करते आएं हैं।
गृहलक्ष्मी की सभी रीडर्स को क्या संदेश देना चाहेंगी?
मैं सभी को यही संदेश देना चाहूंगी कि चाहे आप किसी भी क्षेत्र में काम कर रही हों, हमेशा अपनी कमियों पर काम करें और कुछ नया सीखते रहे। हर इंसान में, कई कमियां होती हैं, सबको बदल पाना संभव नहीं होता है, लेकिन किसी एक चीज़ पर काम करने से इंसान खुद ही अच्छा महसूस करता है।
सरीता माथुर की किताब से मिलते हैं ये जीवनमंत्रा
1. प्यार ऐसी भावना है जिसे बिना शर्तों के रखने से ही ये बढ़ता और सुकून देने वाला होना चाहिए।
2. सामने वाले को जज करने के पहले याद रखें कि उसकी मनोदशा औऱ परिस्थितियों से हम वाकिफ नहीं हैं।
3. अपने जीवन में घटित घटनाओं को हमेशा नकारात्मक नज़रिए से नहीं देखना चाहिए, बल्कि ये हमेशा मानना चाहिए कि भगवान ने हमें खूबसूरत जीवन दिया है। अच्छी, सकारात्मक सोच जीवन में अच्छी चीज़ों को आकर्षित करता है।
4. सरीता कहती हैं, लोग हमेशा अंग्रेजी के वर्ण वी को विक्ट्री यानी जीत के लिए दिखाते हैं, लेकिन मैं समझती हूं कि ये वर्ण यदि उलटा कर दिया जाए तो ये जीवन में हर आदमी ऊंचाइयों को छू सकता है, इस बात को सूचक नज़र आता है।
5. जब किसी पर गुस्सा आए तो उशकी परिस्थिति को समझने की कोशिश करें। चिढ़ना, नाराज़ होना, गुस्सा करना तो प्राकृतिक स्वभाव है, लेकिन अगर हम निरंतर खुद को ये याद दिलाएंगे कि हमें इस नकारात्मक भाव से दूर रहना है तो हम इस पर काबू पाने लगेंगे।
