मम्मा मैं जा रही हूं, बाय मम्मा बाय मम्मा बाय…..। भारती का जवाब न पाकर इस बार जरा तेज आवाज में विधि बोली।
अगर मैं बाय नहीं बोलुगीं तो क्या तुम पार्टी में नहीं जाओगी”? किचन में काम करते हुए ही भारती ने कहा।
“आपकी प्रोब्लम क्या है? देख रही हूं, जब मैं अपने किसी दोस्त के घर पार्टी में जाती हुं, आपका मूड ऑफ हो जाता है, क्यूँ ……क्यूँ मम्मा ?” चिढ़ते हुए विधि ने कहा।
“वो सब छोड़ो, यह बताओ की अगर मैं बाय नहीं बोलुंगी तो क्या सच मैं तुम पार्टी में नहीं जाओगी, जाओगी न? तो फिर मुझ से पूछने का नाटक क्यों कर रही हो तुम?”
माँ-बेटी के बढ़ते तकरार को देख, नवीन कहने लगा, “अच्छा छोड़ो न, तुम भी क्या बच्चे के साथ बच्चा बन जाती हो। वैसे कब तक आ जाओगी। बेटा?
“सुबह तक आ जाऊंगी पापा।”
सुनते ही भारती उबल पड़ी। कहने लगी, “देखो ….देखो इसकी मनमानी, क्यों पार्टी क्या सुबह तक चलेगी?”
“अब पार्टी खत्म होते-होते बारह से एक तो बज ही जाएगें न, फिर उतनी रात को क्या घर आना उचित होगा? इसलिए सिम्मी ने कहा कि आज रात मैं उसके घर ही नाइटस्टे कर लूं” भारती कुछ कहती, उससे पहले ही नवीन बोल पड़ा, “ठीक जाओ पर अपना ध्यान रखना और पहुंचते ही फोन कर देना औके बेटा?”
“हाँ पापा नवीन बोला, “तुम्हारी माँ का गुस्सा पानी के बुलबुले की तरह है अभी उत्तर जाएगा। अपने गुस्से पर कट्रोल कर भारती पूछने लगी, “और कौन-कौन आ रहा है पार्टी में?”
“हम सब फ्रेंडस ही हैं और सिम्मी के मम्मी पापा बस। अगर आपको मेरी बात पर भरोसा न हो तो आप नकुल से पूछ सकती हो, अभी वो आ ही रहा है मुझे लेने”।
“कोई जरुरत नहीं है किसी नकुल-फकुल के साथ जाने की, तुम्हारे पापा तुम्हें छोड़ आएगें। वैसी भी मुझे वह लड़का जरा भी पसंद नहीं है।”
“अब ये क्या बात हुई मम्मा ? और क्यूँ मैं उसके साथ न जाऊं? बात-बात पर आप मुझ पर शंका करती रहती हो। ठीक है अगर आपको मुझ पर भरोसा ही नहीं है तो मैं नहीं जाती कोई पार्टी-वार्टी में खुश ?” कह कर विधि ने अपना बैग वहीं टेबल पर पटक दिया।
बात कहीं और न बढ़ जाए यह सोच कर नवीन बोला, ठीक है……ठी्क है जाओ, पर फोन करना मत भूलना,” विधि के जाते ही, नवीन कहने लगा, कभी-कभी तुम्हें क्या हो जाता है। क्यूं तुम उसके साथ अजीब सा व्यवहार करने लगती हो? अरे वो हमारी बेटी है, हमारा संस्कार है उस में और मुझे भरोसा है वो कभी कुछ गलत नहीं करेगी। सिम्मी भी तो कभी-कभार रात में हमारे घर ठहर जाती हैं तो इसमें क्या हो गया। जो विधि आज रात उसके घर ठहर जाएगी तो ? अरे यही तो उम्र हैं मौज-मस्ती का, करने दो न।”
“और यही उम्र बिगड़ने की भी है नवीन, देखते नहीं कितनी जिद्दी हो गयी है, अपनी हर बात मनवा कर ही दम ले लेती है। डर लगता है मुझे उसकी जिद से और क्या जरुरत है उसे उ……उस नकुल के साथ जाने की? पता नहीं कहीं ये भी अपनी माँ की तरह ही…….कहते-कहते भारती चुप हो गयी।
सुनते ही नवीन भड़क उठा। कहने लगा, “कितनी बार मैंने तुम्हें कहा है कि उसे अतीत की बातों से जोड़ना बंद करो, फिर भी। अरे तुम समझती क्यूँ नहीं हो कि वो सिर्फ हमारी बेटी है और क्या हो गया जो वह नकुल के साथ चली गयी तो”?
खाना खा कर नवीन और पलक तो सो गए, पर भारती के आँखों से नींद कोसो दूर थी, वह अपने पति की तरफ देखते हुए अपने मन में ही कहने लगी। नवीन कैसे मैं आपके एहसानों का कर्ज चुका पाऊंगी नहीं पता। अपना खून न होते हुए भी आपने विधि को अपने बच्चे की तरह पाल-पोस कर बड़ा किया । उसकी हर इच्छा को पहले देखा, कभी भी आपने पलक और विधि में पक्षपात नहीं किया। लेकिन क्या मेरी चिंता नाहक है? पापा भी तो वैशाली दीदी से कितना प्यार करते थे। आंखे मूंद कर उस पर भरोसा किया था। पर दीदी ने क्या किया, पापा को कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। माँ ने कितना समझाया था पापा को कि इतनी छूट मत दो उसे, आखिर लड़की जात है और लड़की अपनी मर्यादा में रहे तो ही अच्छी लगती है।
लेकिन पापा कहते, गंगा, हमारा कोई बेटा नहीं हैं तो क्या हम बेटियों को ही बेटे जैसा नहीं बना सकते हैं? देखना एक दिन हमारी बेटियाँ हमारा नाम रौशन करेगी। उस जमाने में जब लड़कियां मुशि्कल से साईकिल चला लिया करती थी। पापा ने दीदी को मोटरसाईकिल खरीद कर दे दिया था। जिसे लेकर वह हमेशा फिरंट रहती थी। और यही बात माँ के दिल को दर्द देता था।
मुहल्ले की सारी औरतें यह कह कर माँ का मजा़क बनाती थी, भई वाह बेटी हो तो बैशाली जैसी देखो तो कैसे अपनी फटफटिया पर लड़कों को बैठा कर घुमती-फिरती है। उनकी बातें सुनकर माँ शर्म से गड़ जाती थी, कितनी बार उन्होनें को समझाया कि लड़कों से ज्यादा दोस्ती अच्छी नहीं होती है, लेकिन हर बार पापा दीदी के पक्ष में खड़े हो जाते और कहते।
‘क्यूं भई! लड़कों से दोस्ती करने में क्या बुराई है? अरे गंदगी दिमाग में होती है और मुहल्ले की औरतें तो कुछ भी कहती रहती हैं, तुम उनकी बातों पर ध्यान मत दिया करो।
पापा की बातों पर माँ झुझला उठती और कहती, देखो जी, आँख होते हुए भी अंधे बनने का नाटक मत करो और क्या गलत बोल रही थी। मुहल्ले की औरतें? अच्छे घरों की लड़कियां क्या ऐसे दिन-दहाड़े लड़कों के साथ घूमती-फिरती रहती है? पछताओगे एक दिन, मैं कहे देती हुँ,
पापा ने कभी भी माँ की बातों को गंभीरता से नहीं लिया, बस सुन भर लेते थे, पापा के सह मिलने से ही दीदी, दिन-प्रतिदिन ज्यादा बद्तमीज और जिद्दी होने लगी थी। हमेशा अपनी मनमानी करती, घर में कुछ भी आता, पहले दीदी पसंद करती फिर बाद में मेरा नंबर आता था। पापा का कहना था, वैशाली दीदी मुझ से बड़ी हैं इसलिए हर चीज पर पहले उनका हक बनता है और माँ कहती कि पापा बेटियों में पक्षपात करते है, लेकिन मुझे कभी इन सब बातों का बुरा नहीं लगा, बुरा इस बात का लगता शा कि क्यूं पापा, दीदी की गलतियों को अनदेखा करते रहते हैं? अगर माँ कुछ कहती है तो सुनने-समझने के बजाय, क्यूं उन्हें ही चुप करा देते हैं?
हमारे पापा की शिफ्ट ड्यूटि होती थी। और इसी बात का फायदा दीदी उठती थी। पापा के घर से जाते ही, वह लड़कों के संग घूमने-फिरने निकल जाती थी। माँ का तो बिल्कुल भी भय नहीं था। उन्हें एक लड़के से कुछ इस तरह देखा कि मैं ही शर्म से गड़ गयी। शर्म के मारे पूछा भी नहीं जा रहा था। लेकिन हिम्मत कर के बस इतना कहा कि कौन था वो लड़का ? कहने लगी कि मैं ज्यादा बड़बड़ न करुं और अगर मैंने वह बात घर में किसी को भी बताई न तो मेरी खैर नहीं होगी। डर के मारे मैं चुप ही रही, लेकिन एक रोज माँ ने ही दीदी को एक लड़के के साथ देख लिया कि उन्हें अपने आंखों पर भरोसा नहीं हुआ। जब उन्हो्नें उस लड़के के बारे में दीदी से पूछा तो वो ऐसे अंजान बन गयी जैसे वह कुछ जानती ही नहीं हो, पापा के सामने माँ को उसने झूठा साबित कर दिया। समझ गयी माँ कि दीदी हाथ से निकल चुकी है और अगर जल्द से जल्द उसकी शादी नहीं कराई गयी तो कुछ अनर्थ हो सकता है। एक रोज माँ कहने लगी। ‘क्यूं न अच्छा घर-वर देखकर बैशाली का ब्याह कर दे? अब शादी की उम्र तो हो ही चुकी है उसकी।”
“शादी कोई बच्चों का खेल नहीं जो जब मन किया कर दिये। धर्य रखो वक्त आने पर वह भी हो जाएगा। अभी हमारी बेटी आगे और पढ़ना चाहती है तो पढ़ने दो न,”पापा के तर्क के आगे माँ भी चुप हो गयी।
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