Vikram or Betaal Story in Hindi : काली अंधेरी रात थी और जोरों से वर्षा हो रही थी। चारों ओर से विचित्र स्वर सुनाई दे रहे थे, किंतु विक्रमादित्य बिल्कुल भी भयभीत नहीं था। उसने हमेशा की तरह शव को कंधे पर लादा व चुपचाप चल दिया।
बेताल राजा की इस दृढ़ता से प्रभावित होकर बोला :- “राजा! तू तो बड़ा जिम्मेदार इंसान है, किंतु हर कोई इतना जिम्मेदार नहीं होता। मैं तुझे एक गैरजिम्मेदार राजकुमार की कहानी सुनाता हूं”
और बेताल कहानी सुनाने लगा :
एक बार, जयपुरी राज्य में जयदेव नामक बुद्धिमान व भला राजा शासन करता था। उसके राज्य में प्रजा शांत व खुशहाल जीवन व्यतीत कर रही थी।
हालांकि राजा प्रसन्न नहीं था। ज्यों-ज्यों वह बूढ़ा होने लगा तो काफी चिंतित दिखने लगा व बीमार भी रहने लगा। इकलौते पुत्र का गैरजिम्मेदार रवैया ही उसकी चिंता का विषय था। उसका पुत्र अपना अधिकतर समय शिकार खेलने या शराब व जुए में पिता की संपत्ति उड़ाने में लगाता।
एक बार ज्योतिदित्य नामक साधु महल में पधारे। राजा से भेंट के दौरान, वे उनके मन की चिंता भांप गए। उन्होंने राजा से पूछा :- “हे धीर राजन! आप इतने उदास क्यों दिख रहे हैं?”
राजा ने उत्तर दिया :- “महात्मन्! मेरे इकलौते पुत्र का गैरजिम्मेदार रवैया ही मेरी उदासी का कारण है। मैं हमेशा यही सोच-सोच कर चिंता करता रहता हूं कि मेरी मृत्यु के बाद मेरा राज्य कौन संभालेगा? मैं अपने पुत्र पर भरोसा नहीं कर सकता, क्योंकि वह उत्तरदायित्व संभालने लायक नहीं है।”
यह सुनकर साधु बोले :- “चिंता मत करो। मैं राजकुमार को सुधारने का जिम्मा लेता हूं। उसे बस मेरे पास भेज दो।”

अगली सुबह राजकुमार साधु के पास गया। उसने उनके पांव छूकर कहा :- “महात्मन! पिताजी ने मुझे आपके पास भेजा है।”
साधु ने उसे आशीर्वाद दे कर कहा :- “तुम तो बुद्धिमान युवक दिखते हो। मैं चाहता हूं कि तुम मेरा छोटा-सा कार्य कर दो। मुझे पूरा यकीन है कि तुम उसे कर पाओगे।”
“जरूर महाराज।” राजकुमार ने कहा। साधु उसके आत्मविश्वास से भरपूर उत्तर को सुनकर प्रसन्न हो गए। वे बोले :- “यह जड़ी-बूटियों के रस से भरा पात्र है। मैंने काफी समय व कड़े प्रयत्नों से बूटियां पीसकर इसे तैयार किया है, मैं चाहता हूं कि तुम इसे राज्य के दूसरे छोर पर स्थित आश्रम में ले जाओ। यह कार्य आज ही सूर्यास्त से पहले हो जाना चाहिए।”

उन्होंने यह चेतावनी भी दी “ध्यान रहे, इस पात्र से एक भी बूंद इस जमीन पर नहीं छलकनी चाहिए, क्योंकि इससे तुम्हारे पिता व राज्य पर दुर्भाग्य का साया पड़ जाएगा।”
राजकुमार बहुत उत्साहित हुआ व कार्य करने की हामी भर दी। उसने रस का पात्र गले में लटका लिया। घोड़े पर सवार हुआ व आश्रम की ओर चल दिया। उसे वहां पहुंचने से पहले, एक घना वन पार करना था।
ज्योंही वह आगे बढ़ा तो सामने से हिरणों का खूबसूरत झुंड आ गया। वह उनका शिकार करना चाहता था, किंतु रस गिरने के भय से, उसने अपनी इच्छा पर काबू पा लिया। फिर वह शिकार करने के बजाय तेजी से आगे बढ़ा।

काफी लंबी दूरी तय करने के बाद, राह में ठंडे पानी का सरोवर आया। वह काफी थका हुआ व भूखा था। वह कुछ देर सुस्ताना चाहता था, किंतु साधु की दी हुई समय सीमा भी याद थी। उसे हर हाल में, शाम से पहले आश्रम पहुंचना था। उसने भूख पर काबू पाया व काम पूरा होने से पहले, कहीं न रुकने का फैसला कर लिया। फिर तो वह कहीं नहीं रुका।
वह दिन ढलने से पहले ही आश्रम जा पहुंचा। पात्र से रस की एक भी बूंद नहीं गिरी।
यह कार्य सफलतापूर्वक करने के बाद, वह आश्रम लौटा तो काफी हद तक बदल चुका था। अचानक ही उसे अपने कर्तव्यों का अहसास हुआ और वह एक जिम्मेदार इंसान बन गया।
राजा अपने पुत्र में अचानक आए इस बदलाव से प्रसन्न था। उसने साधु को धन्यवाद दिया। उसे इस बात की प्रसन्नता थी कि राज्य की देख-रेख करने वाला व्यक्ति उसे मिल गया था। उसे पूरा भरोसा हो गया था कि पुत्र के हाथों में राज्य की बागडोर सौंपी जा सकती थी।

बेताल ने कहानी समाप्त कर, विक्रम से पूछा :- “बता, राजकुमार कैसे सुधरा?” राजा ने उत्तर दिया :- “साधु ने राजुकमार की प्रशंसा की व उस पर भरोसा जताते हुए पात्र ले जाने का उत्तरदायित्व सौंपा। इससे राजकुमार को पूरी जिम्मेवारी से पात्र ले जाने की प्रेरणा मिली। उसे अपने कर्तव्यों का अहसास हुआ और वह एक सुधरा हुआ इंसान बन गया।”
बेताल ने व्यंगपूर्ण स्वर में कहा :- “राजा तेरी न्याय की परख तो बहुत अच्छी है।” फिर वह पीपल के पेड़ की ओर उड़ चला। विक्रम एक बार फिर, उसका पीछा करने लगा।

