चैतू सतपुड़ा के जंगल में रहनेवाला आदिवासी युवक था। एक दिन भोपाल से आये शिकारियों की टोली जंगल में रास्ता भटक गई। उन्हें चैतू गोंड मिल गया। पूछने पर चैतू ने बताया कि रास्ता कठिन है। इतने में चिड़ियों का एक झुण्ड निकला। शिकारियों ने बंदूक उठाई।
चैतू ने रोका- इन्हें मत मारो, साब ये चिड़िया बता रही हैं कि जोरों से बारिश आने वाली है। और, थोड़ी देर बाद बारिश आ गई। सबको आश्चर्य हुआ। उन लोगों ने पूछा, तुमने यह कैसे बता दिया? चैतू बोला- पंछियों को अगर आप अपना भोजन बनायेंगे, तो कैसे समझेंगे? पंछी तो मौसम के दूत हैं। पानी बंद होने पर शिकारी आगे बढ़े, तो कुछ ने पेड़ों के पत्ते व फूल नोंच लिये।
चैतू बोला-ऐसा मत कीजिए इनमें भी जान होती है और आपकी-हमारी जान इनकी वजह से है। इतने में एक शेर आ गया। शिकारी ने गोली दाग दी। चौतू चीखा-आपने मेरे मित्र को घायल कर दिया? आप जंगल छोड़ दीजिए वरना शेर आपको नहीं छोड़ेगा। पशु जंगल की शोभा हैं।
पशु हमें प्रकृति के कई संकेत देते हैं। मनुष्य का शिकारीपन कितना प्रकृति विरोधी है। मनुष्य भी प्रकृति का चैतू की तरह दोस्त हो जाये, तो दुनिया खुशी से भर जायेगी। कितनी बड़ी विडम्बना है कि आज दुनिया के चार लाख वैज्ञानिक युद्ध के लिए हथियारों की खोज में लगे हैं, जबकि शांति की खोज के लिए केवल एक सौ वैज्ञानिक ही काम कर रहे हैं।
ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं– Indradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)
