बालमन की कहानियां
Subh Dipawali-Balman ki Kahaniyan

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

घर में दिन-रात धमाचौकड़ी करते रहने वाले गौरव को इन दिनों गुमसुम देखकर उसके माता-पिता बड़े ही चिंतित रहने लगे थे। वे कई बार इस बारे में अपने बेटे से बात भी कर चुके थे, लेकिन वह हर बार टाल-मटोल कर जाता।

वैसे उसके माता-पिता को इस बात का विश्वास था कि उनका बेटा कोई गलत काम नहीं कर सकता और ना ही किसी गलत संगति में पड़ सकता है। लेकिन बेटे की खुशी एवं उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए उनकी चिंता तो जायज थी।

गौरव माँ-बाप का इकलौता बेटा था। वह पाँचवीं का छात्र था। घर में अकेले होने के बावजूद वह कभी भी उदास नहीं रहता था। स्कूल से लौटने के बाद अपना अधिकांश समय वह घर में ही बिताता था। घर पर रहकर वह या तो अपना होम वर्क करने में व्यस्त रहता, या फिर पेंटिंग करने में या टीवी पर कार्टून शो देखने में मन लगाता रहता।

स्कूल में आयोजित पेंटिंग कंपीटीशन में कई बार वह पुरस्कार भी प्राप्त कर चुका था। एक बार तो जिला स्तरीय पेंटिंग प्रतियोगिता में वह प्रथम स्थान प्राप्त कर जिलाधिकारी के हाथों से सम्मानित भी हो चुका था। यही कारण था कि गौरव के माता-पिता बेटे से खूब प्यार करते थे और उसकी हर खुशी के लिए सदैव तत्पर रहते थे।

लेकिन इन दिनों वे देख रहे थे कि गौरव दिन-रात जाने किस सोच में डूबा रहता है। माता-पिता से भी वह बहुत कम बातचीत करता है। पूछने पर कुछ बताता भी नहीं है। यहाँ तक कि अब वह न तो कार्टून शो ही देखता और न अपने पेंटिंग के सामानों को ही छूता। चिंता की बात ये भी थी कि अब वह घर में कम और बाहर अधिक समय देने लगा है। क्या करता है और कहाँ जाता है, इस बारे में वह सही-सही कुछ बताता भी नहीं है। स्कूल भी वह समय से पहले निकल जाता है और स्कूल से घर भी देर से लौटता है।

एक दिन गौरव की माँ उसके पिता से उसके गुमसुम रहने के बारे में पता लगाने की जिद कर बैठी।

अगले दिन गौरव के पिताजी उसकी टोह लेने लगे। उन्होंने देखा कि गौरव सुबह-सुबह घर के पिछवाड़े बने हुए किशुन की झोपड़ी से बाहर निकल रहा है। उसके हाथ भीगे हुए हैं। उसकी नजर अपने पिताजी से मिली, तो वह उनसे कतराता हुआ जल्दी से अपने घर के अंदर घुस गया।

पिताजी को अपने बेटे की इस तरह की हरकत जरा भी अच्छी नहीं लगी। अभी पिछले महीने किशुन की घरवाली से उनका जबरदस्त झगड़ा हुआ था और इस कारण उन्हें वे फूटी आँख नहीं सुहा रहे थे और आज उनका बेटा उनके दुश्मन के घर से पता नहीं भोजन करके निकल रहा था या जाने कौन-सा काम करके निकल रहा था, जो उसके हाथ भीगे हुए थे!

किशुन की घरवाली ने उनपर ये इल्जाम लगाया था कि उन्होंने अपनी छत पर से अधजली सिगरेट उनके फूस की छप्पर की ओर उछाल दी थी। इस कारण उनकी झोपड़ी में आग लग गयी थी और उनकी आर्थिक स्थिति, जो पहले से तो खराब थी ही, अब फाँके की स्थिति पैदा हो गयी थी।

किशुन पहले ट्रेन में झालमूढ़ी बेचा करता था। एक दिन ट्रेन पर चढ़ते समय उसका पैर फिसल गया। ट्रेन से पैर कट जाने से वह एक पैर से विकलांग हो गया। वह अक्सर बीमार भी रहता था। उसका बेटा अब स्कूल छोड़कर अपने पिता की जगह पर काम करने लगा था।

अब स्टेशन पर वही झालमूढ़ी एवं पकौड़े बेचने लगा था। किशुन की पत्नी घर का सारा काम करने के साथ-साथ झालमूढी एवं पकौड़े भी बना देती थी, ताकि बेटा उसे बेचकर घर चलाने के लिए दो पैसे ला सके।

लेकिन ये गौरव उनके दुश्मन के घर में क्या कर रहा था, इस बात का पता लगाने के लिए उन्होंने गौरव के कुछ दोस्तों को लगा दिया।

अगले दिन गौरव के दोस्तों से उन्हें जब इस बात का पता चला कि वह किशुन के घर जाकर मिट्टी के दीये बनाता है, तो उनके पाँव तले से जमीन खिसक गयी। वे गुस्से से तिलमिला गए। उन्हें ये सुनकर बहुत दु:ख हो रहा था कि उनका होनहार बेटा कैसे अपने भविष्य को चौपट करने में लग गया है। आखिर उसे अपनी पढ़ाई, पेंटिंग आदि छोड़कर उन दो कौड़ी के लोगों के घर जाकर ऐसा गलीज काम करने की क्या जरूरत पड़ गयी?

उन्होंने तय कर लिया कि आज वे गौरव के साथ-साथ किशुन की पत्नी की भी अच्छी तरह से खबर लेंगे।

अगले दिन वे गौरव का पीछा करते हुए किशुन के घर तक पहुंच गए। वहाँ पहुँचकर उन्होंने छुपकर देखा कि किशुन का बेटा सिर पर खोमचों से भरा एक बड़ा-सा परात और अपनी काँख में उसे टिकाने के लिए एक लंबा-सा मोढ़ा लेकर घर से निकल रहा है। गौरव पर नजर पड़ते ही उसने उसे ‘प्रणाम भैया’ कहा। गौरव ने प्रेम से उसकी पीठ थपथपा दी और उसके घर के अंदर चला गया।

गौरव के पिताजी भी बेटे के पीछे-पीछे बड़ी सावधानी से किशुन के घर के अंदर चले गए। उन्होंने देखा कि गौरव ने गीली मिट्टी गूंथ रही किशुन की पत्नी के पाँव छूए और उसने उसे ‘खुश रहो बेटा’ कहकर आशीर्वाद दिया। इस दृश्य को देखकर गौरव के पिताजी ने गुस्से में दाँत पीस लिए। उन्होंने सोच लिया कि मुझसे बदला लेने के लिए जरूर इस औरत ने मेरे बेटे को अपने मोहपाश में बाँध लिया है। वह इससे अपने घर का काम करवा रही है और ये नालायक बेटा इसके फेर में पड़कर अपनी पढ़ाई-लिखाई को ताक पर रखकर अपना भविष्य बर्बाद कर रहा है।

उन्होंने देखा कि गौरव भी मिट्टी के दीये बनाने में लग गया है। उसकी एक तरफ गीली मिट्टी का ढेर पड़ा हुआ था, जबकि दूसरी तरफ मिट्टी के बने हुए ढेर सारे दीये धूप में सूख रहे थे। यह देखकर वे अपना आपा खो बैठे और उन सबके सामने आ गए।

उन्हें अपने सामने देखकर गौरव की तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी, लेकिन किशुन की पत्नी उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी और कहने लगी-“आप देवता हैं गौरव के पापा…देवता। हमको माफ कर दीजिए जो आपको पहचानने में हम भूल कर दिए। हमने आपको इतना भला-बुरा कहा और आपने हमारी भुखमरी दूर कर हमें मदद करने के लिए अपने गौरव को भेज दिया और आज खुद हम गरीब के दुआरे पर आ गए। धन्य भाग हमारे हुजूर।”

तब तक किशुन भी लाठी के सहारे लँगड़ाता-लँगड़ाता वहाँ आ गया और पत्नी से कहने लगा-“अरी रोहित की माँ, हम साधारण आदमी देवता को एक ही नजर में कैसे पहचान सकते हैं? आपकी लंबी उमर हो हुजूर, जो हमारी गरीबी दूर करने के लिए अपने पढ़ने-लिखने वाले बेटे को ये कहकर हमारे पास मदद करने के लिए भेज दिया कि गौरव मिट्टी की कला भी सीख लेगा और इस तरह से हमारी मदद भी हो जाएगी। आपका आभार हुजूर, जो इतने बढ़िया बहाने से हमारी मदद करने का उपाय सोच लिया आपने।” कहते हुए किशुन गौरव के पिता के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।

तब तक गौरव के पिताजी भी सारा मामला समझ गए थे। उन्होंने किशुन को सहारा देकर अपने सीने से लगा लिया और गौरव की ओर देखते हुए कहा-“हाँ किशुन, उस दिन मैं खुद की गलती मानने की बजाय तुम लोगों के उग्र हो जाने पर अपनी बेइज्जती महसूस करने लगा था। लेकिन बाद में मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया। मैं तो गौरव को धन्यवाद देना चाहूँगा, जो मेरी गलती को सत्कार्य में बदलने के लिए आज मेरा साथ दे रहा है और अपनी समझदारी से मेरे पापों को धो रहा है।”

अब तक पिता से भयभीत गौरव उनकी बातों को सुनकर निहाल हो गया और उनसे प्यार से लिपट गया।

वे उसे समझाने लगे-“बेटे गौरव, इस बार की दीपावली में हम अपने घर के साथ-साथ इस घर को भी खूब सजाएँगे और इस तरह से दीये जलाएँगे कि दोनों घरों में कोई अंतर नहीं रह जाएगा। कोई कोना अँधेरा नहीं रह जाएगा।”

“जरूर बाबूजी”-गौरव के कंठ खुशी से भर्रा आए।

किशुन और उसकी पत्नी की आँखें भी खुशी से सजल हो गयीं।

पिताजी ने गौरव से कहा-“धन्यवाद बेटे, जो तुमने मेरी आँखें खोल दीं। मैं पहले भी तुम पर गर्व करता था और आज भी मुझे तुम पर गौरव है।”

किशुन ने भी उनके सुर में सुर मिला कर कहा-“ये बच्चा हम सबका गौरव है।”

सभी खुश थे, तो गौरव ने भी खुशी से चहकते हुए कहा-“…तो पापा, मैं अभी ही कह दूँ….शुभ दीपावली।”

“शुभ दीपावली।”

“शुभ दीपावली।”

सभी एक स्वर में बोल उठे और उनकी हँसी चारों ओर गूंजने लगी।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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