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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

जिस तैंतीस साला आदमी ने काली टी-शर्ट पहनी हुई थी, वह मजबूत कद काठी का था और धारीदार कमीज वाला अपनी चाल से ही कमजोर दिखता था। पैंतीस के ऊपर दिखते उस आदमी ने पुरानी काट की सिलवाई हुई पतलून पहनी हुई थी और उसे देख कर लगता था कि रेडीमेड के इस जमाने में भी वह लगातार अपने कपड़े दर्जी के यहां सिलवाता रहा होगा। टी-शर्ट वाला आदमी जींस पहने हुए था और उसके शरीर की लापरवाही देखकर लगता था कि वह सिलवाए कपड़ों की नजाकत को काफी पीछे कहीं छोड़ आया है।

मोटरसाइकिल खड़ी कर जब वे दोनों उस गली में पहुंचे तो शाम के छह बजे थे और धुंधलका अभी भी दूर था। गर्मियां अप्रैल के पहले हफ्ते से ही मई-जून वाले ठाट में आ गयी थीं और लोगों का भेजा बिना बात गरम होने लगा था। इस बात के मद्देनजर कमीज वाले ने टी शर्ट वाले को समझाया था कि मौसम की गर्मी को दिमाग पर चढ़ने देना गलत बात है। टी-शर्ट वाले ने बदले में यह कहा था कि मंटू भइया आखिर उसके भी पुराने परिचित हैं और वह कोई उनका दुश्मन नहीं लेकिन बात उसूलों की है। उसका कहना था कि जबान की एक कीमत होती है और होनी चाहिए।

दोनों ने एक पुराने मकान के बाहर जाकर जोर से मंटू-मंटू की हांक लगायी और दरवाजा खटकाने का कोई उपक्रम नहीं किया। दोनों उस पतली-सी गली में एक तरफ खड़े थे और सामने से कुछ सांड जा रहे थे। वे दोनों दब कर खड़े रहे। जब सात सांढ़ गुजर गये तो मंटू बाहर निकले। टी शर्ट वाले ने सांड गिनना छोड़ मंटू की ओर आग्नेय नेत्रों से देखा। मंटू की उम्र चालीस साल के आसपास थी और उनके चेहरे पर न की जा सकी राजनीति का शोक था। उनकी कमीज खास ऑर्डर पर सिलवाई हुई थी और खद्दर की यह कमीज, कमीज और कुर्ते का मिलाजुला रूप लगने के कारण अलग प्रभाव छोड़ती थी। टी-शर्ट वाला उस प्रभाव से बिलकुलअछूता रहा और सामने आकर बिना झुके मंटू के पांव इस तरह छुए जैसे उनकी जांघों को छूकर उसका ठोसपन जांच रहा हो।

“कहां चला जाये?” मंटू ने पूछा।

बदले में कमीज वाला चुपचाप कुछ कदम चलने के बाद एक गली की ओर मुड़ गया। टी-शर्ट वाला भी उधर मुड़ा तो मंटू भी उधर ही मुड़ गया। मंटू नाम से उन्हें पूरे मुहल्ले में जाना जाता था और एक जमाने में जब वह विद्यापीठ में छात्रसंघ का चुनाव जीते थे तो अवनीश कुमार सिंह ‘मंटू’ का बनारस में डंका बजता था। न जाने कितने लोगों को उन्होंने मकान पर कब्जा दिलवाया था, कितने लोगों को पुलिस से छुड़वाया था और कितने ही झगड़ों में
पंच बन कर उन्हें शांतिपूर्वक सलटाया था। वह राजनीति में पूरी ईमानदारी से लगे थे और इसे समाज सेवा का माध्यम मानते। उनका स्पष्ट मानना था कि यदि कोई छोटी सोच वाला नेता अध्यक्षी में ही पैसे खाने लगेगा तो वह विधायकी तक कभी पहुंच ही नहीं सकता। वह खुद को बड़ी सोच वाला मानते थे और विधायक न बनने तक पूरे तन-मन-धन से नेतागिरी यानि समाज सेवा करते थे। लेकिन बाद में समस्या यह हो गयी कि पार्टी के आला अधिकारियों, जो उनकी लगातार मेहनती और ईमानदार होती छवि को अपने लिए खतरा मानने लगे थे, ने उनका राजनीति से पत्ता घिसवा दिया। वह घिसते-घिसते खत्म हो गये। उनकी जगह नये रंगरूट आ गये थे और मंटू भइया और उनकी राजनीति धीरे-धीरे अप्रासंगिक हो गयी थी। मंटू को राजनीति खत्म होने से ज्यादा दुख इस बात का था कि ईमानदार यानि कच्चा नेता समझ कर उनको किनारे लगाया गया।

जिस पतली गली से गली-गली होते सब मीरघाट की तरफ बढ़ रहे थे, उसमें सामने से एक मुर्दा मणिकर्णिका की ओर लाया जा रहा था। भीड़ राम नाम के सत्य होने का नारा लगाती हुई तेजी से आगे बढ़ रही थी। तीनों एक तरफ दब गये और मुर्दे के ऊपर फेंके जा रहे लाचीदानों में से एकाध मंटू भइया के चेहरे पर भी पड़े। उन्होंने सकपका कर बाकी दोनों की तरफ देखा। टी-शर्ट वाले के चेहरे पर दृढ़ता के भाव थे।

“गर्मी चालू हो गयल। मरे सुरू हो गइलन लोग।” मंटू भइया ने अपने चेहरे की झेंप को अपने कहे इस वाक्य से मिटाने की कोशिश की। कमीज वाला मुस्कराया लेकिन टी-शर्ट वाले के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया।

“तूं मरबा तऽ हम लचीदाना नाहीं लेंडुआ लुटाइब।” उसने ताना मारती आवाज में कहा तो मंटू फिर से अपने रास्ते पर चल पड़े। वहां बैठे एक भिखारी ने लड्डू लुटाए जाने की आशा में नजर उठायी और सेहतमंद मंटू को देख कर दूसरी ओर देखने लगा।

तीनों बाकी रास्ते चुपचाप रहे। मंटू के चेहरे पर तनाव के भाव थे जिन्हें वह छिपाने की पूरी कोशिश कर रहे थे। टी-शर्ट वाले के चेहरे पर गुस्से के भाव थे जिन्हें वह जाहिर करने की ताक में था। कमीज वाला चेहरे से ही शांतिप्रिय लग रहा था और उसके चेहरे पर भाव था कि यहां-वहां से लेकर पूरी दुनिया तक में शांति कायम रहनी चाहिए।

“किचाइन न होये चाही गुरु।” उसका प्रिय वाक्य था और यही उसकी जीवनशैली भी थी। इसी कारण वह अक्सर ऐसी जगहों पर पाया जाता था, जहां मामला बिगड़ने की आशंका हुआ करती थी।

तीनों चलते-चलते मीरघाट पहुंच गये। टी-शर्ट वाला घटियारा था और उसे घाट के स्थायी निवासी अच्छी तरह पहचानते थे। मंटू का चेहरा भी घाट के बाशिंदों में खासा लोकप्रिय था। यहीं घाट पर उन्होंने अपने लिए दुनिया की सबसे दुखदायी बात सुनी थी।

“कुछ नेता लोग होलन जेनकर नेतागिरी घाटे तक रहेला, जइसे मंटू।” किसी मल्लाह ने मंटू के बारे में बताते हुए उनका परिचय किसी छुटभैये को दिया था और गलती से मंटू ऊधर से ही निकले थे। इस एक वाक्य के परिचय से उनके आत्मविश्वास में गजब का ह्रास आया था और उन्होंने घर से निकलना कुछ कम कर दिया था, खासकर दूसरों के काम से। अब कोई दोस्त ही चला आता तो वह मना नहीं कर पाते। दोस्तों के परिवार में उन्हें दोस्त से अधिक सम्मान और प्यार मिलता। दोस्त उन्हें अच्छे दिनों की याद की तरह सहेज कर रखना चाहते। वे दोस्तों की घरेलू समस्याओं को सुलझाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते।

दोनों मीर घाट पर कुछ सीढ़ियां चढ़ कर एक मंदिर के ऊपर वाले हिस्से में जाकर बैठ गये। मंटू काफी देर तक खड़े रहे तो कमीज वाले ने उन्हें बैठने का इशारा किया, “बइठिये भइया।” वह इधर-उधर देखने लगे तो टी शर्ट वाले ने तंज कसा, “सोफा मंगवा दी का तोहरे बदे?”

अबकी मंटू चुपचाप बैठ गये। तीनों घाटों की तरफ देखते रहे। नीचे की ओर देखने पर ढेर सारे देसी-विदेशी गंगा आरती देखने दशाश्वमेध घाट की ओर जाते दिखायी दे रहे थे। धरम के धंधे का वक्त हो गया था और ढेर सारे प्रकाश के बीच गंगा आरती शुरू होने वाली थी। कुछ पर्यटक गंगा में नाव लगवा कर दूसरी ओर से आरती का आनंद ले रहे थे। मंटू जानबूझ कर चुपचाप आरती की ओर ही देखते रहे। बात शुरू करने की जल्दबाजी किसी ने नहीं दिखायी। टी-शर्ट वाले ने जेब में कुछ निकालने के लिए हाथ डाला पर अचानक रूक गया।

“ग लेबा कि च?” वह मंटू से मुखातिब था। इतने समय में उसका पहला वाक्य सहज होकर आया था और मंटू को जरा भी उम्मीद नहीं थी कि यह उनसे पूछा गया है। वह तुरंत चौकन्ने नजर आने लगे। टी-शर्ट वाले के दोस्ताना रवैये ने उन्हें उत्साहित कर दिया था।

“च च च।” मंटू ने उत्साह में एक अक्षर का जवाब कई बार दोहरा दिया।

टी-शर्ट वाले ने अपनी जेब से एक छोटी-सी पन्नी निकाली। उसमें गंदले रंग की एक कागज की पुड़िया थी जिसमें एक काली गोली रखी थी। उसने गोली पर अपने मोटरसाइकिल की चाबी का किनारा गड़ाया तो वह उसमें चिपक गयी। उसने माचिस जलायी और चाबी का वह सिरा गरम करने लगा। कमीज वाले ने एक सिगरेट बीचोबीच फाड़ दी थी और उसमें से निकले तंबाकू को हथेली पर मसल रहा था।

चाबी के सिरे पर लगी गोली ने आग पकड़ ली थी। टी-शर्ट वाले ने आग को फूंक मार कर बुझाया और जल्दी से कमीज वाले की हथेली पर उस गोली को गिरा दिया जहां तंबाकू की एक परत बिछी थी। कमीज वाला जल्दी जल्दी गोली को तंबाकू के साथ मिला कर मलने लगा। ठोस गोली गरम होने के कारण नरम हो गयी थी और उसका अस्तित्व धीरे-धीरे तंबाकू के साथ मिल रहा था। काफी देर तक मलने के बाद उस चूर्ण को एक सफेद पारदर्शी कागज पर बिछा दिया गया जिसके पीछे सिगरेट की डिब्बी से बनी फिल्टरनुमा चीज लगायी गयी थी। कागज को गोल मोड़ा गया और एक किनारे पर थूक लगा कर उसका सिरा चिपकाया गया। सिगरेट को जला कर टी शर्ट वाले ने तीन लंबे कश खींचे और उसे मंटू को थमाया। मंटू ने उसे क्रांति की मशाल वाले अंदाज से थामा। उन्हें उम्मीद थी कि इसी चीज से बात का कोई सिरा खुलेगा जिसे पकड़ कर माहौल सहज बनाया जा सकेगा। उन्होंने पहला ही कश खींचते हुए माहौल को दोस्ताना बनाने की कोशिश की।

“बहुत सही माल है रे, कहां से लियाए?” वह मुस्करा कर टी-शर्ट वाले की ओर देख रहे थे। टी-शर्ट वाला जरा भी प्रभावित नहीं हुआ।

“कैलास परवत गये थे। वहीं शंकर भगवान पी रहे थे, उनसे छोर लेहली।” टी-शर्ट वाला हिंदी में संयत रहने की कोशिश कर रहा था लेकिन आक्रोश की काशिका संभाल के बाहर चली जाती थी। वह दूसरी तरफ देखने लगा। सिगरेट जब कमीज वाले के हाथ में पहुंची तो उसने धुंए को खींचना और बात को छोड़ना शुरू किया।

“अबे तुम्हारे बड़े भाई जइसे हैं।” उसने टी-शर्ट वाले को नैतिकता का पहाड़ा पढ़ाने की कोशिश की। टी-शर्ट वाला सामने से उठा और मंटू भइया के पास जाकर खड़ा हुआ। उनकी ओर एक अश्लील मुद्रा बनाता कमीज वाले को दिखाते हुए गुस्से से भर कर कहा, “हमार लांड़ हउवन।”

यह एक अपमानजक बात थी। सामने खड़ा यह उजड्ड लड़का उनके घनिष्ठ मित्र का छोटा भाई था जो शुरू शुरू में उनके पांव छुआ करता था और उनसे डरता था। बाद में कुछ छिटपुट बदमाशों के चक्कर में उसकी लाइन लेंथ बिगड़ गयी और वह धीरे धीरे अपने परिवार से अलग थलग हो गया था। उसको किसी बात के लिए कोई समझा नहीं सकता था क्योंकि वह सबके संपर्क से बाहर रहता था। मंटू चुपचाप गंगा की लहरों को देखने लगे जो जिनमें दूधिया रोशनी के कारण एक आनोखी चमक थी। गंगा आरती पर कैमरों के फ्लैश खटाखट चमक रहे थे। कमीज वाले ने टी शर्ट वाले को हाथ दबाकर इशारा किया तो उसे भी लगा, यह कुछ ज्यादा ही हो गया। उसे लगा गुस्से का इजहार थोड़ा दबा कर करना चाहिए। आखिर कुछ भी हो, बड़े भाई के दोस्त हैं। उसने खुद को थोडा नियंत्रित किया। मंट की ओर जाकर बैठा और अब तक की सबसे सहज और मधुर आवाज में पूछा जो फिर भी कड़वी ही थी।

“कहिया?”

मंटू ने उसके ऊपर नजर डाली। उन्हें याद आया कि इस खतरनाक लड़के ने समय पर सूद या मूल न चुकाने वाले कितने ही लोगों के मुंह तोड़ डाले हैं और आंखें फोड़ डाली हैं। वह जानते थे कि वह उनके उपर हाथ नहीं उठायेगा लेकिन यही ख्याल उन्हें परेशान करता था कि अगर हाथ नहीं उठायेगा तो क्या करेगा? उन्होंने अपने भीतर एक सिहरन-सी महसूस की और कुछ कहने के लिए मुंह खोला तो पाया कि आवाज बाहर ही नहीं आयी। उन्होंने दुबारा ऊंची आवाज में कहा, “सनिच्चर के।”

एक खामोशी थोड़ी देर के लिए फैल आयी। घाट पर विदेशी सैलानियों की चहल-पहल जारी थी। दो चरसी अंग्रेज वहां से गुजरे तो माहौल की महक ने कुछ पलों के लिए उनके पैर अजगर कर दिए। उन्होंने धुएं की दिशा में गरदन घुमायी तो टी-शर्ट ने आंखों में आगे बढ़ने का इशारा किया। वह उन विदेशियों को खूब जानता था जो दशाश्वमेध घाट से खरीदी हुई बीड़ी के बदले गांजा चरस पीने के लिए निवेदन किया करते थे। विदेशी दोस्ताना माहौल न देख कर आगे बढ़ गये। सिगरेट बारी-बारी सबके हाथों में जाती रही और धुंआ उड़ता रहा। सबकी आंखें लाल हो गयीं और भारी होने लगीं। नशा पानी में रंग की तरह धीरे-धीरे घुल रहा था।

मंटू ने अब दोनों को भर नजर देखा। उनका आत्मविश्वास वापस लौट आया था। उन्होंने थोड़ी देर टी-शर्ट वाले की आंखों में देखा जो अब सहज हो गया था। गुस्से से तने स्नायुओं को उसने आराम दे दिया था और अब परिचित भाव से मंटू की ओर देख रहा था। उसकी आंखों में मंटू ने पढ़ा कि वह अब भी उनकी इज्जत करता है लेकिन उसे भी पैसों की सख्त जरूरत है। मंटू अब फॉर्म में आ गये थे और वह उससे उसी तरह मुखातिब हुए जैसे वह बतौर छात्रसंघ अध्यक्ष अवनीश कुमार सिंह ‘मंट’ हुआ करते थे।

“बियहवा क्यों नहीं कर लेते बे? तुम्हारे भइया केतना परेसान हैं।” उन्होंने मुस्कराते हुए पूछा। टी शर्ट वाला न चाहते हुए भी मुस्कराया।

“काहें, अपने बरबाद हो गइला त चाहत हउवा कि हमहूं हो जाई?” टी-शर्ट वाले के इस बार बोलने से लगा कि यही उसका असली लहजा और आवाज है। शादी का नाम सुनते ही उसके चेहरे पर उलझन के भाव आने लगे। वह कश लंबे लेने लगा और धुंए को मुंह फुला कर देर तक मुंह में रोकने लगा।

“सादी कर लो गुरु, तुम्हारे बड़े भाई जैसे हैं, इसलिए ऐसी राय दे रहे हैं जो तुम्हें दूसरा कोई झांट नहीं देगा। पूरी दुनिया खुद सादी करके घूमत रही लेकिन जब पूछबा त कहीहन लोग कि नाहीं बे सादी मत करे, बहुत नरक चीज हौ।” मंटू भैया ने अपने स्टाइल में कहा। उन्होंने टांगें छितरा ली थीं और आराम से टेक लेकर बैठ गये थे। कमीज वाले ने भी चर्चा में हिस्सा लिया।

“गुरु आज नहीं तो कल, करना तो पड़ेगा, बिना सादी किये जिंदगी तो नहीं बीत सकती। बुढ़ौती बहुत नरक चीज है।” टी-शर्ट वाले ने एक नजर उसकी ओर देखा फिर एक नजर मंटू की तरफ। उसके चेहरे की उलझन और बढ़ गयी।

“बै भइया सादी कर लें तो रक्खें कहां मेहरारू को और खिलाएं क्या? आप ही जइसे तो लोग हैं जो पइसा तो उठा लेते हैं लेकिन मूल त मूल, सूद देने तक में गांड फटती है।” बात खत्म करते-करते वह फिर से पुराने अवतार में जाने लगा लेकिन फिर खुद को संभाला। उसने तय किया कि यह बात खत्म होने के बाद वह फिर एक बार मंटू भैया को शनिवार को पैसे देने के लिए धमकाएगा। मंटू ने देखा कि गुस्से में ही सही, उसने उन्हें काफी समय बाद भैया कहा है।

“बेकार चीज हौ सादी-फादी।” टी-शर्ट वाले ने झल्लाहट में कहा। गोया उसकी आवाज में इस बात को लेकर पूरा विश्वास नहीं था।

मंटू पर नशे का जादुई असर हुआ था। वह खड़े हो गये। उनका शरीर हल्का हो गया था। ये लोग जहां ऊंचाई पर बैठे थे, वहां से घाट का नजारा काफी नीचे और दिलकश था। मंटू को लग रहा था कि वह अगर दोनों बांहें फैला कर नीचे कूद जाएं तो हवा में तैरते हुए पहुंचेंगे। नशा उन पर पैराशूट की तरह हावी था। वह कुछ कदम चलकर टी-शर्ट वाले के पास गये। उनका इशारा समझ कर वह उठ खडा हुआ। मंटू उसके कंधे पर हाथ रखे हुये उसे किनारे पर ले आये और उड़ने का इरादा स्थगित कर उसे समझाने लगे।

“गुरु हमारी जिंदगी के बयालीस साल गुजर गये हैं। तुमको आज जइसा लग रहा है न कि तुम दुनिया की मां-बहिन एक कर दोगे, तुम्हारे आगे कोई नहीं है, हमको भी वइसा ही लगता था। चुनाव जीते, पूरे सहर में डंका था, लगता था हम ही हम हैं। अध्यक्ष बस एक साल के लिए रहता है लेकिन हमको लगता था, वह एक साल कभी खतमे नहीं होगा। अगले साल हम हार गये, फिर अगले साल लड़े फिर हार गये तो जइसे साला सब कुछ खतम, फिर पूरा दुनिया बेकार लगने लगा। सादी के लिए घर वाले दउड़ाए तो सादी बिना मन के कर डाले कि हेडेक खतम हो। लेकिन गुरु आज सोचते हैं तो अध्यक्षी का बहुत कम बात याद आता है और सादी का एक-एक चीज याद आता है।”

बोलते बोलते मंटू की आवाज में भारीपन आ गया था। व्यक्तिगत बातें वह कम ही करते थे। कमीज वाला भी इस दुर्लभ मौके को सम्मान देता उनके पास खिसक आया।

“लगातार दो साल चुनाव हार गये तो पता चला कि हम एक-दो कौड़ी के पूर्व अध्यक्ष हैं जिसका बिना जोगाड़ राजनीति में दो कदम चलना मुश्किल है। हमको कोई कुछ समझता ही नहीं था। जो साले पहिले पैलग्गी करते थे, वे पहचनबे नहीं करते थे। हमको लगने लगा कि हमारा कोई कीमत ही नहीं है लेकिन उसी समय सादी हुई। हमको सादी से कोई उम्मीद नहीं थी गुरु लेकिन सादी के बाद जब तुम्हारी भउजाई आयी तो हमको लगा कि का झांट जइसन जिंदगी बितावत रहला अवनीस कुमार सिंह। हमारा भी कोई कदर है, अगर से राती को बारह बजे तक हम नहीं पहुंचे तो एक मिली हमरे बदे बिना खाना खइले बइठल रही। एकर मतलब समझेला? लांड़ समझबा तूं? सादी कर ला गुरु नाहीं त जिंदगी में कुछ हौ नाहीं।” उन्होंने अंतिम पंक्ति जनसभा स्टाइल में कही थी।

टी-शर्ट वाला उनकी बात को गंभीरता से सुनता रहा। “पिछली दोनों तीनों बार भी समझाये थे लेकिन ऐसे तो कभी नहीं समझाए।” वह मन ही मन सोच रहा था। मंटू अपनी बात का सकारात्मक असर देख और जोश में आ रहे थे।

“गुरु हम दोनों एक-दूसरे को देखे बिना नहीं रह पाते थे। माई बाउ कहे लगलन कि हो गयल एनकर नेतागिरी लेकिन बाद में देखो नगर निगम का टेंडर हमको कितना जादा मिलने लगा। नक्करऽबा सादी त कइसे जनबा कि एक-दूसरे से झगड़ा करे में अउर दू दिना बिना बतियइले रहले के बाद मनावे में जवन मजा आवडला उ अउर कउनो चीज में ना हौ।”

वह चुप हो गये थे। टी-शर्ट वाला वहीं बैठ गया था। तीनों की नजरें कहीं दूर टिकी हुई थी जहां से बीता हुआ समय गुजर रहा था। मंटू की आवाज में अब ठहराव और इत्मिनान आ गया था।

“देख रहे हो टाइम कितना तेज भाग रहा है। तुम्हारे हमारे जैसे लोग चालीस-पैंतालिस का होने के बाद आराम चाहते हैं। चालीस के बाद गाली गुफ्ता देवल, मारपीट करल, पुलिस से बेइज्जती करावल अच्छा ना लगऽला गरु, यहीं से हम नेतागिरी छोड देहली। सादी करके जो लोग त्रस्त हैं उनको क्यों देख रहे हो। जिनकी सादी अच्छी चल रही है, उनको देखो। हमको देखो। गुरु एक चीज जान लो सादी में जादू है लेकिन तोहरे पल्ले जादू समझे के समझ होवे के चाही। केतने बेचारे दोस्त रहलन जो सादी के बाद हर समय मेहरारू से झगड़ही में लगऽल रहऽलन लेकिन हम लोग हमेशा एक-दूसरे के लिए टाइम निकालते रहे, एक-दूसरे को प्यार करते रहे। बेटा ए उमर में जइबा त पता चली जेतना बढ़िया टाइम बीतल हौ, या त बचपने में हौ या त फिर सादी के बाद हौ। जहां-जहां हम लोग एक साथ घूमने गये, जानते हो उसका फोटो हम लोग दुबारा बइठ के देखते हैं तो फिर से वहीं पहुंच जाते हैं। फीरी में घूम आते हैं फिर से वहीं। बच्चा होने वाला था तो क्या-क्या प्लानिंग किये थे हम लोग, और बच्चा होने के बाद जब उ हमको पहिली बार पापा बोला, तोहरे भउजाई के अम्मा कहलस। इस सब कइसे समझबा? टाइम बहुत तेज भागता है गुरु, अब देखो हमारा लउंडवा आठवीं में चला गया धीरे-धीरे। इस टाइम हम किस काम लायक रहते, कउनो नहीं। अगर हम सादी नहीं किये रहते तो हमारे हाथ में आज इस उमर में क्या रहता? बताओ। तो कुल मतलब ई कि बुढ़ौती में कउनो काम न रही करे बदे तक कम से कम परिवार त रही, समझ में आयल?” मंटू भइया एक साधारण सिगरेट सुलगा कर पी रहे थे और टी-शर्ट वाले के कंधे पर उनका हाथ था। वह उनकी बातों से काफी प्रभावित दिख रहा था। उसे लग रहा था इस बात पर सोचने की एक और भी दिशा थी जो न उसके दिमाग में अब तक आयी और न ही इसके बारे में किसी ने बताया था। कमीज वाले ने शिगूफा छोड़ा जिसे किसी ने नहीं पकड़ा।

“अभी त जवान हउवा मंटू भइया, चालीस-बयालिस कउनो उमर होला?”

टी-शर्ट वाले के मन में मंटू की बातें लगातार गूंज रही थीं।

“पहिले त एतऽरे ना समझउला भइया।” मंटू की बातों का असर उसकी आवाज और उसके लहजे से जाहिर था।

“कर लो गुरु कर लो। कई बार मेहरारू की किस्मत से अपनी किस्मत चमक जाती है।” मंटू ने उपसंहार दिया। टी-शर्ट वाला धीमे से उठा और जाने का उपक्रम करते हए उनके पांव छने लगा।

“चलत हई।” वह पलटा।

“खुश रहा।” मंटू ने आशीर्वाद दिया। टी-शर्ट वाले के पीछे जाने के लिए कमीज वाला भी उठ खड़ा हुआ। थोड़ी दूर जाकर टी-शर्ट वाला पलटा।

“पइसवा दे दा भइया, दउड़ावा मऽत। ई सूद पर पइसा वाला काम हम बंद करब, हमें फलत ना हो।”

“सनीच्चर के एकदम।” मंटू ने आश्वस्त किया।

दोनों सीढ़ियां चढ़ते हुए किसी गली में गुम हो गये। मंटू ने सिगरेट मसल कर फेंकी। उनके चेहरे पर मुस्कान थी। उन्होंने काफी पहले सोच लिया था कि जो हुआ सो हुआ, अब भी वह समाज सेवा पूरे मन और ईमानदारी से ही करेंगे। यह ख्याल आने के बाद वह यह दूसरा ख्याल आने से मुस्करा उठे थे कि कई लोग इसलिए भी ईमानदार रह जाते होंगे कि उन्हें मनचाही बेइमानी करने का मौका ही नहीं मिल पाता होगा।

घाट का एक पुराना साधू काफी देर से बैठा उनकी बातें सुन रहा था। उसने मंटू से चिल्ला कर कहा, “काहे बदे ओकर जिनगी बिगाड़त हउवा नेता जी?”

मंटू ने उसे एक नजर देखा और घर की ओर चल पड़े। मोबाइल में उन्होंने अपने दोस्त का नंबर मिला लिया था ताकि उसे खुशखबरी दे सकें।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’