shaap
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Hindi Katha: एक बार अग्निदेव ने राजा कार्तवीर्य से भिक्षा माँगी। परम दानी कार्तवीर्य ने सातों द्वीप, नगर, गाँव तथा सारा राज्य उन्हें भिक्षा में दे दिए। भिक्षा पाकर अग्निदेव सर्वत्र प्रज्वलित हो उठे और सभी पर्वतों और वनों को जलाने लगे। उन्होंने महर्षि वसिष्ठ का आश्रम भी जला दिया।

तब वसिष्ठ क्रुद्ध होकर बोले – “कार्तवीर्य ! तेरे कारण ही अग्निदेव ने मेरा आश्रम जलाया है। इसलिए मैं तुझे शाप देता हूँ कि परम तेजस्वी और प्रतापी महर्षि परशुराम तेरा मान-मर्दन कर दें। वे तेरी सहस्र भुजाएँ काट कर तुझे मौत के घाट उतार दें।” कार्तवीर्य ने मस्तक झुकाकर उनका शाप स्वीकार कर लिया।

एक दिन कार्तवीर्य शिकार खेलते हुए महर्षि जमदग्नि के आश्रम पर जा पहुँचे। महर्षि जमदग्नि ने भोजन, फल और विभिन्न पदार्थों से उनका भरपूर स्वागत किया। कार्तवीर्य महर्षि का ऐश्वर्य देखकर बड़े विस्मित हुए। उन्होंने महर्षि जमदग्नि से इसका रहस्य पूछा।

तब जमदग्नि बोले – “राजन ! यह समस्त ऐश्वर्य कामधेनु की कृपा से है। वे ही हमारा और आश्रम में आए अतिथियों का भरण-पोषण करती हैं।

कामधेनु के बारे में सुनकर कार्तवीर्य बोले- “मुनिवर ! आपके ऐश्वर्य के समक्ष स्वर्ग का ऐश्वर्य भी क्षीण प्रतीत होता है। किंतु आप वन में रहने वाले तपस्वी हैं, जो समस्त भोगों का त्याग कर प्रभु-भक्ति में लीन रहते हैं। फिर आपके लिए ऐश्वर्य और विषय-भोगों का क्या औचित्य ? इसलिए कामधेनु को मैं अपने साथ ले जाऊँगा।’

यह कहकर उन्होंने महर्षि जमदग्नि की आज्ञा प्राप्त किए बिना ही अपने सैनिकों से कामधेनु को साथ ले चलने के लिए कहा। महर्षि जमदग्नि ने सहस्रबाहु कार्तवीर्य को रोकने का बहुत प्रयास किया, किंतु उनके सामने उनकी एक न चली और वे कामधेनु को अपनी राजधानी माहिष्मतीपुरी ले गए।

उनके जाने के बाद जब परशुराम आश्रम में आए तो उन्हें कार्तवीर्य की धृष्टता ज्ञात हुई। वे क्रोध से काँपने लगे। उन्होंने अपना फरसा, धनुष, तरकस और ढाल उठा लिए और कार्तवीर्य का संहार करने के लिए उनके पीछे दौड़ पड़े।

कार्तवीर्य अभी स्वनगर में प्रवेश कर ही रहे थे कि उन्होंने क्रुद्ध परशुराम को पीछे आते देखा। यह जानकर कि शाप के सिद्ध होने का समय आ गया, वे वहीं ठिठक गए और अपनी सेना को परशुराम से युद्ध करने की आज्ञा दे दी। आदेश पाते ही सैनिक उन पर टूट पड़े। किंतु परशुराम भगवान् श्रीविष्णु के अंशावतार थे, फिर भला वे साधारण सैनिक उनके सामने कैसे टिक पाते। शीघ्र ही उन्होंने कार्तवीर्य की समूल सेना का संहार कर दिया।

सैनिकों का अंत देख कार्तवीर्य स्वयं युद्ध करने आए। किंतु परशुराम ने फरसे के प्रहार से उनकी समस्त भुजाएँ काट कर उनका मस्तक धड़ से अलग कर दिया। इस प्रकार महर्षि वसिष्ठ के शाप के कारण कार्तवीर्य काल का ग्रास बन गए।