एक लड़का अपने पिता के पास आया और बोला कि वह उसे कुछ नए और महंगे कपड़े दिलाए, क्योंकि उसके कॉलेज में कपड़ों की वजह से सब उसे हीन दृष्टि से देखते हैं। पिता ने अपनी उंगली से एक अंगूठी निकाल कर उससे कहा कि, बेटे, मैं तुम्हे तुम्हारे पसंदीदा कपड़े दिलवा दूँगा, लेकिन पहले इस अंगूठी को बाजार में बीस हजार रुपए में बेच कर पैसे ले आओ। बेटे ने उस सीधी-सादी सी दखिने वाली चांदी की अंगूठी को देखकर कहा कि उस अंगूठी को तो कोई एक हजार रुपए में भी नहीं खरीदेगा।
इस पर पिता ने कहा कि वह पहले बाजार जाकर कोशिश तो करे। बाजार में बेटे ने वह अंगूठी बहुत व्यापारियों को दखिाई पर उनमें से कोई भी उस अंगूठी के लिए पांच सौ रुपए से ज्यादा देने को तैयार नहीं हुआ। उसने आकर अपने पिता को यह बात बताई। पिता ने मुस्कुराते हुए उससे कहा, अब तुम हमारे घर के पीछे वाली गली में मौजूद सुनार की दुकान पर ले जाकर उसे यह अंगूठी दखिाओ। लेकिन तुम उसे अपनी कीमत मत बताना। बेटा उस दुकान पर गया और वापस आकर उसने पिता से कहा, आप सही थे। बाजार में किसी को भी पता ही नहीं था कि इसमें नग के स्थान पर बेशकीमती हीरा जड़ा है। इसलिए वे अंगूठी की सही कीमत का अंदाजा नहीं लगा सके।
सुनार ने इस अंगूठी के लिए पचास हजार रुपए की पेशकश की है। यह तो आपकी माँगी कीमत से भी पांच गुना है। पिता ने मुस्वु््फ़राते हुए उससे कहा, यही तुम्हारे सवाल का जवाब है। किसी भी इंसान की कीमत उसके कपड़ों से नहीं आकनी चाहिए, नहीं तो तुम बाजार के उन दुकानदारों की तरह बेशकीमती नगीनों से हाथ धो बैठोगे। अगर तुम उस सुनार की आंखों से चीजों को परखने लगोगे तो तुम्हें मिट्टी और पत्थरों में सोना और जवाहरात दखिाई देंगे।
सारः बाहरी व्यक्तित्व के आधार पर कई बार हम योग्य व्यक्तियों के सान्निध्य से वंचित रह जाते हैं।
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