एक राजा एक बार घूमते-घूमते अपने राज्य के एक गाँव में जा पहुँचा। वहाँ वह एक कुम्हार की झोपड़ी में पहुँचा। वह अपने काम में लगा रहा। राजा ने उसे एक धनी व्यापारी के रूप में अपना
परिचय दिया और कहा कि मुझे प्यास लगी है। कुम्हार ने कोने में रखे मटके की ओर इशारा करते हुए कहा कि उसमें पानी रखा है, जितना चाहे पी लो।
राजा ने पानी तो पी लिया लेकिन कुम्हार के व्यवहार से उसे बहुत आश्चर्य हुआ और वह बोला कि मेरे धनिक होने की बात पता चलने के बावजूद तुम अपने काम में लगे रहे। तुम्हें तो मुझे खुश करने में लग जाना चाहिए था। कुम्हार बोला कि आपने मेरे लिए ऐसा कौन-सा काम किया है, जो मैं आपकी खुशामद करूँ। इस पर राजा बोला कि मेरे पास सौ स्वर्ण मुद्राएं हैं। यदि इनमें से एक चौथाई मैं तुम्हें दे दूं तो क्या तुम मेरी खुशामद करोगे? कुम्हार बोला, पच्चीस मुद्राएं तो इसके लिए कम हैं।
इस पर राजा ने उसे कहा कि आधी मुद्राएं लेकर क्या तुम यह काम कर सकते हो? कुम्हार बोला, तब तो हमारी हैसियत समान होगी, फिर मैं तुम्हारी खुशामद क्यों करूँगा। राजा बोला कि अगर मैं सौ की सौ स्वर्ण मुद्राएं तुम्हें दे दूं तो? कुम्हार हँसा और बोला कि तब तो मेरी बजाए तुम्हें मेरी खुशामद करनी चाहिए, क्योंकि मेरे पास सौ स्वर्ण मुद्राएं होंगी और तुम्हारे पास एक भी हीं।
सारः आत्मसम्मानी व्यक्ति को कोई लोभ नहीं डिगा पाता।
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
